"ऍक्स किरण": अवतरणों में अंतर
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तीव्रतामापन की तीन मुख्य विधियाँ हैं। प्रतिदीप्त परदे पर एक्सरे से जो दीप्ति आती है उसकी तीव्रता-मर्यादित दीप्ति तक-एक्सरे की तीव्रता की समानुपाती होती है। प्रतिदीप्ति की तीव्रता का अनुमान करके एक्सरे की तीव्रता की तुलना स्थूल रूप से हो सकती है। दूसरी विधि में फोटो पट्टिका के ऊपर एक्सरे की (प्रकाश के ही समान) जो क्रिया होती है, उसका उपयोग किया जाता है। एक्सरे के आपतन से फोटो पट्टिका पर जो कालापन आता है, वह एक्सरे की तीव्रता तथा आपतन काल पर निर्भर रहता है। इस पद्धति से दो एक्सरे पुंजों की तीव्रताओं की तुलना करने के लिए अधिक तीव्रता के एक्सरे पुंज से फोटो पट्टिका पर मर्यादित स्थान पर किसी उपयुक्त काल तक क्रिया होने दी जाती है और तत्पश्चात् उसी पट्टिका पर कुछ नीचे दूसरे एक्सरे पुंज की क्रिया काल t, 2t, 3t आदि तक होने दी जाती है। पट्टिका को विकसित (डेवेलप) करने के पश्चात् दोनों चित्रों के कालेपन की तुलना करने से दोनों पुंजों की सापेक्ष तीव्रता का ज्ञान हो जाता है। तीव्रतामापन की तीसरी रीति अधिक प्रचलित है, क्योंकि इस रीति से तीव्रता ठीक ठीक मापी जा सकती है। जब एक्सरे वायु में से जाती है तब वायु विद्युच्चालक हो जाती है और उसकी चालकता एक्सरे की तीव्रता पर निर्भर रहती है। एक्सरे की क्रिया से वायु के अणुओं के इलेक्ट्रान विस्थापित होते हैं और आयन उत्पन्न होते हैं। उचित विद्युद्विभव की उपस्थिति में आयनों से जो विद्युद्धारा प्राप्त होती है, वह संवेदी विद्युन्मापी से, अथवा अन्य उचित संवेदी उपकरणों से, मापी जा सकती है। एक्सरे की तीव्रता विद्युद्धारा की समानुपाती होती है। हाल में गुणक-प्रकाशनलिका (मल्टिप्लायर फोटो टयूब) और एक्सरे-संवेदी स्फुर के उपयोग से तीव्रता का मापन अत्यंत सुलभ हो गया है। उसी प्रकार, गाइगरगुणक की सहायता से आयनीकरण की धारा का मापन भी सुगमता से हो सकता है। अत: वर्तमानकाल में इन दोनों प्रकार के उपकरणों द्वारा एक्सरे की तीव्रता का मापन अधिक प्रचलित है।
तीव्रतामापन की इन तीनों प्रचलित रीतियों से दो एक्सरे पुंजों की तीव्रताओं की केवल तुलना ही हो सकती है, निरपेक्ष तीव्रता प्राप्त नहीं हो सकती। आपाती एक्सरे के लंबवत् एक वर्ग सेंटीमीटर क्षेत्रफल पर प्रति सेंकड जो ऊर्जा पड़ती है, उसको वस्तुत: हम उस एक्सरे की तीव्रता (निरपेक्ष तीव्रता) कह सकते हैं। इस तीव्रता को अर्ग प्रति वर्ग सेंटीमीटर प्रति सेंकड में व्यक्त करते हैं। तीव्रता का मापन ऊर्जा के रूप में करने के लिए एक्सरे की ऊर्जा को
भौतिकी के प्रायोगिक कार्यो में सदा एककों (units) की आवश्यकता होती है और मापी गई राशि के अनुसार इसका स्वरूप होता है। एक्सरे की मात्रा के एकक को 'रंटजन' कहते हैं और वर्तमान काल में एक रंटजन की परिभाषा निम्नलिखित प्रकार से की जाती है-
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m<sub>mass</sub> = m / घनत्व
संहति-अवशोषण-गुणक का विशेष
एक्सरे नलिका से जो संपूर्ण एक्सरे प्राप्त होते हैं, उन सबका अवशोषण-गुणक मुख्यत: (1) विद्युद्विभव और (2) अवशोषक परदे की धातु का परमाणु-क्रमांक, इन दोनों पर निर्भर रहता है। जैसे जैसे विभव बढ़ता जाता है वैसे ही वैसे उत्पादित एक्सरे की प्रवेशक्षमता अथवा कठोरता बढ़ती जाती है। समीकरण (1) से यह निष्कर्ष निकलता है कि किसी एक ठोस पदार्थ के लिए अवशोषण गुणक सब मोटाइयों के लिए स्थिर रहेगा। किंतु प्रत्यक्ष प्रयोग में एक्सरे नलिका से प्राप्त विकिरण का न्यून प्रवेशक्षमतावाला भाग अवशोषक परदे के प्रथम स्तरों में ही पूर्णतया अवशोषित हो जाता है (कम प्रवेशक्षमता के इस एक्सरे को मृदू एक्सरे कहते हैं)। केवल अधिक प्रवेशक्षमता के एक्सरे (जिनको कठोर एक्सरे कहते हैं) अवशोषण परदे के अंतिम स्तरों तक पहुँच पाते हैं। स्पष्ट है कि अवशोषण परदे में प्रवेश करनेवाले एक्सरे का अवशोषण गुणंक परदे से पार निकले हुए एक्सरे के अवशोषण गुणक से अधिक होता है। जब समस्त एक्सरे का अवशोषण गुणक समान होता है (अथवा भौतिकी की भाषा में, जब समस्त एक्सरे का तरंगदैर्घ्य समान होता है) तब उनको समांग एक्सरे कहते हैं। अत: एक्सरे की मात्रा उनकी तीव्रता से और उनकी विशेषता उनके अवशोषण-गुणक से (अथवा, कहना चाहिए, उनके तरंगदैर्घ्य से) मापित होता है।
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चिकित्सीय उपयोगों के अलावा भी एक्सरे का अनेकों प्रकार से उपयोग किया जाता है। एक्सरे के विशिष्ट गुणों के कारण उनका उपयोग विस्तृत रूप से विज्ञान की अनेक शाखाओं तथा विभिन्न उद्योगों में होता आ रहा है। उद्योगों में, विशेषत: निर्माण तथा निर्मित पदार्थो के गुणों के नियंत्रण में, एक्सरे का बहुत उपयोग होता है। निर्मित पदार्थो की अंतस्य त्रुटियाँ एक्सरे फोटोग्राफों द्वारा सरलता से ज्ञात की जा सकती हैं। विमान तथा उसी प्रकार के साधनों के यंत्रों में अति तीव्र वेग तथा चरम भौतिक परिस्थितियों का सामना करना पड़ता हैं; ऐसे यंत्रों के निर्माण में प्रत्येक अवयव अंतर्बाह्य निर्दोष तथा यथार्थ होना चाहिए। ऐसे प्रत्येक अवयव की परीक्षा एक्सरे से की जाती है और सदोष अवयवों का त्याग किया जाता है। धातु एक्सरे का अवशोषण करते हैं, अत: धातुओं के अंतर्भागों की परीक्षा के लिए मृदु एक्सरे अनुपयुक्त होते हैं। विशाल आकार के धात्वीय पदार्थो के लिए अत्युच्च विभव के एक्सरे की आवश्यकता होती है।
[[धातु विज्ञान]] तथा धातुगवेषणा में एक्सरे अत्यंत उपयोगी हैं। धातु भी मणिभीय होते हैं, किंतु इनके मणिभ सूक्ष्म होते हैं और वे यथेच्छ प्रकार से स्थापित रहते हैं, अत: धातुओं की लावे-प्रतिमा में सामान्यत: संकेंद्र वर्तुल रहते हैं। प्रत्येक वर्तुल एक समान तीव्रता का होता है, किंतु किसी भौतिक क्रिया से कणों के आकारों में वृद्धि हो जाने पर इन वर्तुलों में बिंदु भी आते हैं। अत: एक्सरे व्याभंग द्वारा इसका ठीक ठीक पता चल जाता है कि धात्वीय मणिभों के कण किस प्रकार के हैं और उनका आकार आदि कैसा है। इस ज्ञान का धातुविज्ञान में अत्यंत
एक्सरे के अन्य उपयोगों में एक्सरे सूक्ष्मदर्शी उल्लेखनीय है। एक्सरे के तरंगदैर्घ्य प्रकाश के तरंगदैर्घ्यो से सूक्ष्म होते हैं, अत: एक्सरे सूक्ष्मदर्शी को प्रकाश सूक्ष्मदर्शी से अधिक प्रभावशाली होना चाहिए। 1948 में एक्सरे को केंद्रित करने के कर्कपैट्रिक के प्रयत्न अंशत: सफल हुए। इस रीति से तथा अन्य रीतियों से प्रतिबिंब का आवर्धन करने के प्रयत्न अब प्रायोगिक अवस्था पार कर चुके हैं और अनेक निर्माताओं द्वारा निर्मित कई प्रकार के एक्सरे सूक्ष्मदर्शी सुलभ हैं।
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