"वैज्ञानिक विधि": अवतरणों में अंतर

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* (४) अब प्रयोग करके भी देखिये कि उक्त भविष्यवाणियाँ प्रयोग से प्राप्त आंकड़ों से सत्य सिद्ध होती हैं या नहीं। यदि आंकड़े और प्राक्कथन में कुछ असहमति (discrepancy) दिखती है तो परिकल्पना को तदनुसार परिवर्तित करिये,
 
* (५) उपरोक्तउपर्युक्त चरण (३) व (४) को तब तक दोहराइये जब तक सिद्धान्त और प्रयोग से प्राप्त आंकड़ों में पूरी सहमति (consistency) न हो जाए ।
 
[[तार्किक प्रत्यक्षवाद|तार्किक प्रत्यक्षवादियों]] का विचार था कि किसी सिद्धान्त के 'वैज्ञानिक' होने की कसौटी यह है कि उसे (कभी भी, किसी के द्वारा) जाँचा जा सके।<ref>Mach, Ernst (1905, 1926) 1976. ''Knowledge and error: sketches on the psychology of enquiry''. Dordrecht: Reidel.</ref><ref>Schlick, Moritz (1925) 1974. ''General theory of knowledge''. Vienna: Springer-Verlag.</ref><ref>Ayer A.J. 1936 [2nd ed 1946]. ''Language, truth and logic''. Gollancz, London.</ref> लेकिन [[कार्ल पॉपर]] का विचार था कि यह सोच गलत है। कॉर्ल पॉपर का कहना था कि कोई सिद्धान्त तब तक 'वैज्ञानिक सिद्धान्त' नहीं है, जब तक उस सिद्धान्त को किसी भी एक तरीके से गलत सिद्ध किया जा सके। <ref>Popper, Karl 1959. ''The logic of scientific discovery''. London & New York: Routledge Classics. {{ISBN|0-415-27844-9}}</ref><ref>Kuhn T.S. 1970. ''The structure of scientific revolutions''. 2nd ed, University of Chicago Press. p206 {{ISBN|0-226-45804-0}}</ref><ref name=Bunge>Bunge, Mario 1967. ''Scientific research''. Volume 1: The search for system; volume 2: The search for truth. Springer-Verlag, Berlin & New York. Reprinted as ''Philosophy of science'', Transaction, 1998.</ref><ref>Ziman, John 1978. ''Reliable knowledge: an exploration of the grounds for belief in science''. Cambridge University Press. {{ISBN|0-521-22087-4}}</ref>
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प्रश्न यह है कि विज्ञान की द्रुत गति से जो उन्नति हुई, उसका श्रेय किसे है? क्या प्राचीन काल के मनुष्य इन अर्वाचीन वैज्ञानिकों की अपेक्षा बुद्धि कम रखते थे? यदि ऐसी बात है, तो [[दर्शनशास्त्र|दर्शन]], [[साहित्य]] एवं [[ललित कला]]ओं की उन्नति प्राचीन समय में इतनी अधिक क्यों हुई? संभवत: इसका रहस्य उन '''वैज्ञानिक विधियों''' में निहित है, जिनका प्रश्रय पाकर विज्ञान इतनी उन्नति कर सका है।
 
अर्वाचीन विज्ञान का आरंभ लगभग तीन सौ वर्ष पूर्व हुआ। जैसा ऊपर कहा गया है, प्राचीन काल में भी विज्ञान की कुछ उन्नति हुई, किंतु उसका क्रम आगे न बढ़ पाया। इसलिए कुछ बात इसके पीछे अवश्य रही होगी। वस्तुत: प्राचीन काल के मनीषियों ने जो भी ज्ञान अर्जित किया, उसे बुद्धिवादी कहना ठीक होगा। अपनी बुद्धि और तर्क के बल पर ज्ञान की उच्च कोटि की बातें उन्होंने बताईं, किंतु उनके प्रकार और वर्धन की व्यवस्था नहीं थी और संसार भर में उनका व्यापक प्रचार और प्रसारण नहीं हो पाया अर्वाचीन विज्ञान इसके विपरीत प्रायोगिक ज्ञान है, जिसका आरंभ में बड़ा विरोध हुआ। इसी के फलस्वरूप गैलिलियो जैसे अग्रगामी वैज्ञानिकों को कड़ी यातनाएँ सहनी पड़ीं। फिर भी प्रयोग द्वारा सत्यापन विधि के भीतर ही प्रसारण का बीज भी छिपा हुआ था। इस प्रकार जो ज्ञान मिलता गया, वह एक शृंखला में आबद्ध हो चला, जिसका क्रम आगे भी जारी रहा। इस ज्ञान से शक्ति के नए नए स्रोतों का पता चला और परिणामस्वरूप न केवल इसका विरोध कम होता गया अपितु एक बहुत बड़ी क्रांति समाज में हुई। मशीन युग का सूत्रपात हुआ और संसार मेमें आशा की एक नई किरण सामने आई। किंतु जिस प्रकार सभी वस्तुओं के साथ अच्छाई और बुराई दोनों के पहलू जुड़े हुए हैं, विज्ञान भी मानव के लिए केवल वरदान ही न रहा, उसका पैशाचिक रूप हिरोशिमा में ऐटम बम के रूप में विश्व ने देखा, जिसके विस्फोट के कारण संसार के विनाश तथा प्रलय की लीला का दृश्य उपस्थित हो गया। इस प्रकार संसार के सामने "सत्य को केवल सत्य के लिए" खोज न करने की आवश्यकता जान पड़ी और "सत्यं शिवं सुंदरम्" के अदर्श को विज्ञान जगत् में भी अपनाना ही श्रेयस्कर मालूम हुआ। विज्ञान इस प्रकार नियंत्रित होकर ही मानव कल्याण में योगदान कर सकता है। इसी नियंत्रण के फलस्वरूप परमाण्वीय भट्ठियाँ बनीं, जो एक प्रकार से नियंत्रित ऐटम बम मात्र हैं, किंतु जिनसे अपार सुविधाएँ मिल सकती हैं। इस प्रकार हम देखते हैं कि अल्प काल में ही विज्ञान ने बड़ी उन्नति की और इसका सब श्रेय प्रयोगविधि को है, जिसका उपयोग प्राचीन समय में नहीं किया गया था। इस प्रयोगविधि में प्रयोग का महत्वमहत्त्व सर्वोपरि है, फिर भी अन्य और विधियों का उपयोग भी एक विशेष ढंग और क्रम से किया जाता है, जिन्हें हम वैज्ञानिक विधियाँ कह सकते हैं।"(वैज्ञानिक विधि ज्ञान प्राप्त करने का एक अनुभवजन्य तरीका है जो कम से कम 17 वीं शताब्दी के बाद से विज्ञान के विकास की विशेषता है। इसमें सावधानीपूर्वक अवलोकन शामिल है, जो कि मनाया जाता है, इसके बारे में कठोर संदेह को लागू करना, यह देखते हुए कि संज्ञानात्मक मान्यताएं एक को कैसे व्याख्या करती हैं, इसमें शामिल हैं, इसमें प्रेरणों के माध्यम से, प्रेरणों के माध्यम से, अवधारणाओं से उत्पन्न कटौती के माध्यम से; संवेदनाओं से उत्पन्न कटौती के प्रयोगात्मक और माप-आधारित परीक्षण; और प्रायोगिक निष्कर्षों के आधार पर अवधारणाओं (परिमाण), ये वैज्ञानिक पद्धति के सिद्धांत हैं, जैसा कि सभी वैज्ञानिक उद्यमों के लिए लागू की निश्चित सीमा से अलग है। "वैज्ञानिक अनुसंधान" यहां रीडायरेक्ट है। प्रकाशक के लिए, वैज्ञानिक अनुसंधान प्रकाशन देखें।)"
 
== प्रमुख वैज्ञानिक विधियाँ ==
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(2) '''वर्णन''' (description)- निरीक्षण के साथ ही साथ, या तुरंत बाद, निरीक्षित वस्तु या घटना का वर्णन लिखना चाहिए। इसके लिए नपे-तुले शब्दों का प्रयोग करना चाहिए, जिससे पढ़नेवाले के सामने निरीक्षित वस्तु का चित्र खिंच जाए। जहाँ कहीं आवश्यकता हो, अनुमान के द्वारा अंकों में वस्तु के गुणविशेष की माप दे देनी चाहिए, कितु यह तभी करना चाहिए जब वैसा करना बाद में उपयोगी सिद्ध होनेवाला हो। फूलों के रंग का वर्णन करते समय अनुमानित तरंगदैर्घ्य देना व्यर्थ है, किंतु किसी वस्तु की कठोरता की तुलना अन्य वस्तु की अपेक्षा अंकों में देना ही ठीक है। व्यर्थ के ब्यौरे न दिए जाएँ और भाषा सरल तथा सुबोध हो। देश, काल एवं वातावरण का वर्णन दे देना चाहिए ताकि वस्तु किन परिस्थितियों में उपलब्ध हो सकती है, यह ज्ञात हो सके।
 
(3) '''कार्य-कारण-विवेचन''' (cause and effect) - प्रकृति के रहस्योद्घाटन में कार्यकारण का विवेचन महत्वपूर्ण है। वर्षा का होना, बादल की गरज, बिजली की चमक, आँधी और तूफान आदि घटनाएँ साथ हो सकती हैं। इनमें कौन कितना कारण हैं? प्राय: कारण पहले आता है, किंतु केवल क्रम ही कारण का निश्चय नहीनहीं करता। इसलिए इन बातों पर थोड़ा विचार कर लेना चाहिए, ताकि आगे किसी प्रकार का भ्रम न पैदा हो। साथ ही विभिन्न कारणों का तारतम्य भी बाँध रखना चाहिए। ये सब बातें घटना को समझने में सहायक होती हैं।
 
(4) '''प्रयोगीकरण ''' (experimentation) - विज्ञान की इस युग में जो भी शीघ्र उन्नति हो पाई, उसका एकमात्र श्रेय इस विधि को ही है, क्योकि अन्य विधियाँ तो इसी मुख्य विधि के इर्द गिर्द संजोई गई हैं। यह तकनीक इस युग की देन है। प्राचीन समय में इसी के अभाव में विज्ञान की प्रगति नहीं हो पाई थी। अंतरिक्षयात्रा एव पारमाण्वीय शक्ति का विकास, इसी प्रयोगीकरण के कारण, संभव हो सका है।