"प्रलाक्ष": अवतरणों में अंतर
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=== लेप उत्पन्न करनेवाले पदार्थ ===
सेलुलोस नाइट्रेट, सेलुलोस ऐसीटेट, सेलुलोस एसीटो ब्यूटिरेट और रेजिन लेप उत्पन्न करनेवाले पदार्थ हैं। इनमें सेलुलोस नाइट्रेट और सेलुलोस ऐसीटो ब्युटिरेट और रेजिन हैं। इनमें सेलुलोस नाइट्रेट और सेलुलोस ऐसीटेट अधिक प्रयुक्त होते हैं। विभिन्न परिस्थितियों में प्रस्तुत सेलुलोस कुछ विभिन्न गुणवाले होते हैं। उनका वर्गीकरण विलयन की श्यानता और विलेयता पर निर्भर करता है। विलेयता की दृष्टि से नाइट्रोसेलुलोस आर. एस. (R.S. शीघ्र विलेय), ए. एस. आर. एस. के
सेलुलोस ऐसीटेट की विशेषता उसकी अदाह्यता में है। इस कारण इसका प्रयोग वायुयान के डोप (dope) बनाने में अधिक पसंद किया जाता है। इसके लिये कीटोन विलायक की आवश्यकता पड़ती है।
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=== विलायक ===
दो प्रकार के विलायक, एक वास्तविक विलायक और दूसरा तनुकारक उपयुक्त होते हैं। कुछ लोगों ने एक तीसरे प्रकार के विलायक का भी उपयोग बतलाया है। इसे सहविलायक (co-solvent), या गुप्त विलायक (latent solvent) की संज्ञा दी है वास्तविक विलायकों में नार्मल ब्युटिल ऐसीटेट सबसे अधिक
=== सुघट्यकारी ===
विलायकों के उड़ जाने पर नाइट्रोसेलुलोस के पटल सिकुड़ कर तल को छोड़ देते हैं। इसे रोकने के लिये और प्रलाक्षारस को कोमल बनाने के लिये सुघट्यकारी का उपयोग होता है। ये प्रलाक्षारस को तन्य और सभ्य बनाते हैं तथा धीरे धीरे उद्वाष्पित होनेवाले द्रव या ठोस होते हैं। ये प्राकृतिक हो सकते हैं या कृत्रिम। प्राकृतिक सुघट्यकारियों में कपूर और रेंड़ी, अलसी, सोयाबीन आदि के उपचारित तेल हैं। कृत्रिम सुघट्यकारियों में ट्रॉइक्रेसील फॉस्फेट, ट्राइब्युटिल फॉस्फेट, डाइब्युटिल थैलेट, डाइएमिल थैलेट, ब्युटिल स्टीयरेट और सेबेसिक अम्ल के एस्टर
=== रंजक और वर्णक ===
प्रलाक्षारस को रंगीन बनाने के लिये रंजक और वर्णक डाले जाते हैं। सस्ते होने के कारण कृत्रिम रंजक ही आजकल प्रयुक्त होते हैं। आवश्यकतानुसार इनका चुनाव होता है। वर्णकों में उनकी सूक्ष्मता बड़े
=== तनूकारक ===
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