"दशरूप": अवतरणों में अंतर

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सर्वलक्षण से सर्वांग से परिपुष्ट दृश्य को प्रकृतिरूपक कहा गया है जैसे नाटक; और प्रकृतिरूपक के ढाँचे में ढले हुए परन्तु अपनी अपनी कुछ विशेषता लिए हुए दृश्य काव्य विकृतिरूपक कहे गए हैं। सामान्य नियम है- "प्रकृतिवद् विकृतिः कर्त्तव्या"।
 
उभय प्रकार के रूपकों में [[भरतमुनि|भरत]] द्वारा सविशेष महत्वमहत्त्व के दस रूप माने गए हैं जो '''दशरूप''' के नाम से [[संस्कृत]] नाट्यपरम्परा में प्रसिद्ध हैं। उनकी पगिणना करते हुए [[भरत मुनि|भरतमुनि]] ने कहा है-
 
:''नाटकं सप्रकरणमंको व्यायोग एव च। ''
"https://hi.wikipedia.org/wiki/दशरूप" से प्राप्त