"वैदिक स्वराघात": अवतरणों में अंतर
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==परिचय==
[[वेद|वेदों]] में [[मन्त्र|मन्त्रों]] की 20 हजार [[ऋचा|ऋचाएँ]] हैं। इन सभी को विभिन्न [[छंद|छन्दों]] में विभक्त किया गया है। कौन किस प्रकार गाया जायेगा, इसका ऋषिगणों द्वारा उसी समय निर्धारण हो गया है, जब इनका सृजन हुआ है। इन्हें लयबद्ध गाया जाना चाहिए। मोटा विभाजन तो उदात्त, अनुदात्त स्वरित के क्रम में हुआ है। मन्त्रों के नीचे, ऊपर आड़ी टेड़ी लकीरें जो लगाई जाती हैं, उनमें उच्चारण के संकेत हैं। लेकिन जब इन्हें स्वर समेत गाना हो तो उनके सरगम, सामवेद में दिए गये हैं। वहाँ अंकों के
एक छन्द को अनेक ध्वनियों में गाया जा सकता है। इन ध्वनि भिन्नताओं में सरगम के अतिरिक्त आड़ी-टेड़ी लकीरों में संकेत ध्वनि बना देते हैं। इस प्रकार वेद मन्त्रों में जो ऋचा सामगान के रूप में गायी जाती है, तब उनके ऊपर अंक संकेत लगा देते हैं। सामगान की यही परम्परा है। कुछ दिन पूर्ण सामगान की अनेकों शाखाएँ थी, पर अब वे लुप्त हो गई। जो बची हैं मात्र वे ही उपलब्ध हैं।
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