"सांख्यकारिका": अवतरणों में अंतर

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पंक्ति 10:
:; ''दुःखत्रयाऽभिघाताज्जिज्ञासा तदभिघातके हेतौ। ''
:; ''दुष्टे साऽपार्था चेन्नैकान्तात्यन्ततोऽभावात ॥''
: ''(तीन प्रकार के दुखदुःख से (प्राणी) पीड़ित रहते हैं। अतः उसके अभिघातक (विनाशक) कारण को जानने की इच्छा करनी चाहिये। "दृष्ट (प्रत्यक्ष-लौकिक) उपायों से ही उस जिज्ञासा की पूर्ति हो जायेगी?" नहीं, (दृष्ट उपायों से) निश्चित रूप से और सदा के लिये दुःखों का निवारण नहीं होता।'')
 
सांख्यकारिका, सांख्यदर्शन का बहुत ही महत्त्वपूर्ण प्रकरण ग्रन्थ है जिसने अत्यधिक लोकप्रियता प्राप्त की है। आज सांख्यदर्शन के जो ग्रन्थ प्राप्त होते हैं, उनमें व्याख्या-ग्रन्थ ही अधिक हैं। मूल ग्रन्थ तो केवल तीन ही प्राप्त होते हैं- सांख्यकारिका, तत्त्वसमास एवं सांख्यप्रवचनसूत्र। आज प्राप्त होने वाले सांख्यदर्शन के अन्य ग्रन्थ इन तीन मूल ग्रन्थों की ही टीका या व्याख्या के रूप में हैं। इन व्याख्या-ग्रन्थों में से अधिकांश ‘सांख्यकारिका’ की ही व्याख्याओं और इन व्याख्याओं की भी अनुव्याख्याओं के रूप में हैं। इस प्रकार ईश्वरकृष्ण की ‘सांख्यकारिका’ सांख्यदर्शन का प्रमुख प्रतिनिधि ग्रन्थ है।