छो →‎सन्दर्भ: वीर तेजाजी खरनाल मेले का आयोजन - प्रत्येक  वर्ष भाद्रपद  शुक्ल पक्ष की दशवीं  को तेजाजी की याद में  खरनाल गाँव में भारी मेले का आयोजन होता हे जिसमे लाखो लोगो की तादात में लोग गाजे -बाजे के सात आते हे ! सांप के ज़हर के तोड़ के रूप में गौ मूत्र और गोबर की राख के प्रयोग की शुरूआत सबसे पहले तेजाजी ने की थी ! लोक देवता तेजाजी का गौ रक्षा के लिए हुआ मार्मिक बलिदान उनको लोकदेवता की श्रेणी में ले आया । गाँव का चबूतरा ' तेजाजी का थान ' कहलाता है ।
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[[चित्र:Tejaji Mandir Sursura.JPG|300px|thumb|<center>[[सुरसुरा2]] ([[अजमेर]]) में तेजाजी का धाम</center>]]
 
लोक देवता तेजाजी का जन्म एक जाट घराने में हुआ था। उनका जन्म नागौर जिले में खरनाल गाँव में ताहड़जी (थिरराज) और रामकुंवरी को घर माघ शुक्ल चौदस, विक्रम संवत 1130 (29 जनवरी 1074) में हुआ माना जाता था। तथा उस खेत को तेजाजी का धोरा नाम से जाना जाता है | उनके पिता गाँव के मुखिया थे। यह कथा है कि तेजाजी का विवाह बचपन में ही पनेर गाँव में रायमलजी की पुत्री पेमल के साथ हो गया था किन्तु शादी के कुछ ही समय बाद उनके पिता और पेमल के मामा में कहासुनी हो गयी और तलवार चल गई जिसमें पेमल के मामा की मौत हो गई। इस कारण उनके विवाह की बात को उन्हें बताया नहीं गया था। एक बार तेजाजी को उनकी भाभी ने तानों के रूप में यह बात उनसे कह दी तब तानो से त्रस्त होकर अपनी पत्नी पेमल को लेने के लिए घोड़ी 'लीलण' पर सवार होकर अपने ससुराल पनेर गए। वहाँ किसी अज्ञानताअज्ञान के कारण ससुराल पक्ष से उनकी अवज्ञा हो गई। नाराज तेजाजी वहाँ से वापस लौटने लगे तब पेमल से उनकी प्रथम भेंट उसकी सहेली लाछा गूजरी के यहाँ हुई। उसी रात लाछा गूजरी की गाएं मेर के मीणा चुरा ले गए। रास्ते में तेजाजी को एक साँप आग में जलता हुआ मिला तो उन्होंने उस साँप को बचा लिया किन्तु वह साँप जोड़े के बिछुड़ जाने के कारण अत्यधिक क्रोधित हुआ और उन्हें डसने लगा तब उन्होंने साँप को लौटते समय डस लेने का वचन दिया और ससुराल की ओर आगे बढ़े। लाछा की प्रार्थना पर वचनबद्ध हो कर तेजाजी ने मीणा लुटेरों से संघर्ष कर गाएं छुड़ाई। इस गौरक्षा युद्ध में तेजाजी अत्यधिक घायल हो गए। वापस आने पर वचन की पालना में साँप के बिल पर आए तथा पूरे शरीर पर घाव होने के कारण जीभ पर साँप से कटवाया। किशनगढ़ के पास सुरसरा में सर्पदंश से उनकी मृत्यु भाद्रपद शुक्ल 10 संवत 1160 (28 अगस्त 1103) को हो गई तथा पेमल भी उनके साथ सती हो गई। उस साँप ने उनकी वचनबद्धता से प्रसन्न हो कर उन्हें वरदान दिया। इसी वरदान के कारण तेजाजी भी साँपों के देवता के रूप में पूज्य हुए। गाँव-गाँव में तेजाजी के देवरे या थान में उनकी तलवारधारी अश्वारोही मूर्ति के साथ नाग देवता की मूर्ति भी होती है। इन देवरो में साँप के काटने पर जहर चूस कर निकाला जाता है तथा तेजाजी की तांत बाँधी जाती है। तेजाजी के निर्वाण दिवस भाद्रपद शुक्ल दशमी को प्रतिवर्ष तेजादशमी के रूप में मनाया जाता है। तेजाजी का जन्म धौलिया गौत्र के [[जाट]] परिवार में हुआ। धैालिया शासकों की वंशावली इस प्रकार है:- 1.महारावल 2.भौमसेन 3.पीलपंजर 4.सारंगदेव 5.शक्तिपाल 6.रायपाल 7.धवलपाल 8.नयनपाल 9.घर्षणपाल 10.तक्कपाल 11.मूलसेन 12.रतनसेन 13.शुण्डल 14.कुण्डल 15.पिप्पल 16.उदयराज 17.नरपाल 18.कामराज 19.बोहितराव 20.ताहड़देव 21.तेजाजी
 
तेजाजी के बुजुर्ग उदयराज ने खरनाल पर कब्जा कर अपनी राजधानी बनाया। खरनाल परगने में 24 गांव थे। तेजाजी का जन्म खरनाल के [[धौल्या]] गौत्र के [[जाट]] कुलपति ताहड़देव के घर में चौदस वार गुरु, शुक्ल माघ सहस्र एक सौ तीस को हुआ। तेजाजी के जन्म के बारे में मत है-
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:पाछॅ तो जाज्यो सासरॅ
 
पंडित की बात तेजाजी ने नहीं मानी। तेजाजी बोले मुझे तीज से पहले [[Paner|पनेर]] जाना है। शेर को कहीं जाने के लिए मूहूर्त की जरुरतजरूरत नहीं पड़ती-
 
:गाड़ा भरद्यूं धान सूं रोकड़ रुपया भेंट
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प्रत्येक  वर्ष भाद्रपद  शुक्ल पक्ष की दशवीं  को [https://toprajasthani.com/2021/02/07/%E0%A4%B5%E0%A5%80%E0%A4%B0-%E0%A4%A4%E0%A5%87%E0%A4%9C%E0%A4%BE%E0%A4%9C%E0%A5%80-%E0%A4%AE%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%9C तेजाजी] की याद में  खरनाल गाँव में भारी मेले का आयोजन होता हे जिसमे लाखो लोगो की तादात में लोग गाजे -बाजे के सात आते हे !
 
सांप के ज़हर के तोड़ के रूप में गौ मूत्र और गोबर की राख के प्रयोग की शुरूआतशुरुआत सबसे पहले तेजाजी ने की थी !
 
लोक देवता तेजाजी का गौ रक्षा के लिए हुआ मार्मिक बलिदान उनको लोकदेवता की श्रेणी में ले आया ।