"यमुनोत्री": अवतरणों में अंतर

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[[File:Yamuna at Yamunotri.JPG|thumb|यमुनोत्री में यमुना का शिशुरूप]]
'''यमुनोत्री''' [[उत्तरकाशी]] जिले में समुद्रतल से 3235 मी. ऊंचाईऊँचाई पर स्थित एक [[मन्दिर|मंदिर]] है। यह मंदिर देवी यमुना का मंदिर है।
 
== अवस्थिति ==
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अर्थात ''(जहाँ से [[यमुना नदी|यमुना]] (नदी) निकली है वहां स्नान करने और वहां का जल पीने से मनुष्य पापमुक्त होता है और उसके सात कुल तक पवित्र हो जाते हैं!)''
== सूर्य-पुत्री ==
[[सूर्यतनया]] का शाब्दिक अर्थ है [[सूर्य]] की पुत्री अर्थात् [[यमुना नदी|यमुना]]। पुराणों में यमुना सूर्य-पुत्री कही गयी हैं। [[सूर्य]] की [[छाया]] और [[संज्ञा]] नामक दो पत्नियों से यमुना, [[यम]], [[शनि]]देव तथा [[वैवस्वत मनु]] प्रकट हुए। इस प्रकार यमुना [[यमराज]] और [[शनि (ज्योतिष)|शनिदेव]] की बहन हैं। [[भ्रातृ द्वितीया]] ([[भैयादूज]] | [[यम द्वितीया|भाई दूज]]) पर यमुना के दर्शन और [[मथुरा]] में स्नान करने का विशेष महात्म्यमाहात्म्य है। यमुना सर्वप्रथम जलरूप से [[कलिंद]] पर्वत पर आयीं, इसलिए इनका एक नाम [[कालिंदी नदी|कालिंदी]] भी है। [[सप्तर्षि|सप्तऋषि]] कुंड, सप्त सरोवर कलिंद पर्वत के ऊपर ही अवस्थित हैं। यमुनोत्तरी धाम सकल सिद्धियों को प्रदान करने वाला कहा गया है। पुराणों में उल्लेख है कि भगवान [[कृष्ण|श्रीकृष्ण]] की आठ पटरानियों में एक प्रियतर पटरानी कालिंदी यमुना भी हैं। यमुना के भाई [[शनि]]देव का अत्यंत प्राचीनतम मंदिर [[खरसाली]] में है।
 
''प्रयागकूले यमुनातटे वा सरस्वती पुण्यजले गुहायाम्।
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== इतिहास ==
एक पौराणिक गाथा के अनुसार यह असित मुनीमुनि का निवास था। वर्तमान मंदिर जयपुर की महारानी गुलेरिया ने 19वीं सदी में बनवाया था। भूकम्प से एक बार इसका विध्वंस हो चुका है, जिसका पुर्ननिर्माण कराया गया। यमुनोत्तरी तीर्थ, उत्तरकाशी जिले की राजगढी(बड़कोट) तहसील में ॠषिकेश से251किलोमीटर उत्तर-पश्चिम में तथा उत्तरकाशी से131किलोमीटरपश्चिम -उत्तर में 3185मीटर की ऊँचाई पर स्थित है।यह तीर्थ यमुनोत्तरी हिमनद से5मील नीचे दो वेगवती जलधाराओं के मध्य एक कठोर शैल पर है।यहाँ पर प्रकृति का अद्भुत आश्चर्य तप्त जल धाराओं का चट्टान से भभकते हुए "ओम् सदृश "ध्वनि के साथ नि:स्तरण है।तलहटी में दो शिलाओं के बीच जहाँ गरम जल का स्रोत है,वहीं पर एक संकरे स्थान में यमुनाजी का मन्दिर है।वस्तुतः शीतोष्ण जल का मिलन स्थल ही यमुनोत्तरी है।(यमुनोत्तरी का मार्ग) हनुमान चट्टी (2400मीटर)यमुनोत्तरी तीर्थ जाने का अंतिम मोटर अड्डा है।इसके बाद नारद चट्टी,फूल चट्टी व जानकी चट्टी से होकर यमुनोत्तरी तक पैदल मार्ग है।इन चट्टीयों में महत्वपूर्ण जानकी चट्टी है,क्योंकि अधिकतर यात्री रात्रि विश्राम का अच्छा प्रबंध होने से रात्रि विश्राम यहीं करते हैं।कुछ लोग इसे सीता के नाम से जानकी चट्टी मानते हैं,लेकिन ऐसा नहीं है।1946में एक धार्मिक महिला जानकी देवी ने बीफ गाँव में यमुना के दायें तट पर विशाल धर्मशाला बनवाई थी,और फिर उनकी याद में बीफ गाँव जानकी चट्टी के नाम से प्रसिद्ध हो गया।यहीं गाँव में नारायण भगवान का मन्दिर है।पहले हनुमान चट्टी से यमुनोत्तरी तक का मार्ग पगडंडी के रूप में बहुत डरावना था,जिसके सुधार के लिए खरसाली से यमुनोत्तरी तक की 4मील लम्बी सड़क बनाने के लिए दिल्ली के सेठ चांदमल ने महाराजा नरेन्द्रशाह के समय50000रुपए दिए।पैदल यात्रा पथ के समय गंगोत्री से हर्षिल होते हुए एक "छाया पथ "भी यमुनोत्तरी आता था।यमुनोत्तरी से कुछ पहले भैंरोघाटी की स्थिति है।जहाँ भैंरो का मन्दिर है।अनेक पुराणों में यमुना तट पर हुए यज्ञों का तथा कूर्मपुराण(39/9_13)में यमुनोत्तरी महात्म्यमाहात्म्य का वर्णन है।केदारखण्ड(9/1-10)में यमुना के अवतरण का विशेष उल्लेख है।इसे सूर्यपुत्री,यम सहोदरा और गंगा- यमुना को वैमातृक बहने कहा गया है।ब्रह्मांड पुराण में यमुनोत्तरी को"यमुना प्रभव"तीर्थ कहा गया है।ॠग्वेद (7/8/19)मे यमुना का उल्लेख है।महाभारत के अनुसार जब पाण्डव उत्तराखंड की तीर्थयात्रा में आए तो वे पहले यमुनोत्तरी,तब गंगोत्री फिर केदारनाथ-बद्रीनाथजी की ओर बढ़े थे,तभी से उत्तराखंड की यात्रा वामावर्त की जाती है।हेमचन्द्र ने अपने "काव्यानुशान "मे कालिन्द्रे पर्वत का उल्लेख किया है,जिसे कालिन्दिनी(यमुना) के स्रोत प्रदेश की श्रेणी माना जाता है।डबराल का मत है कि कुलिन्द जन की भूमि संभवतः कालिन्दिनी के स्रोत प्रदेश में थी।अतः आज का यमुना पार्वत्य उपत्यका का क्षेत्र, जो रंवाई,जौनपुर जौनसार नामों से जाना जाता है,प्राचीनकाल में कुणिन्द जनपद था।"महामयूरी"ग्रंथ के अनुसार यमुना के स्रोत प्रदेश में दुर्योधन यक्ष का अधिकार था।उसका प्रमाण यह है कि पार्वत्य यमुना उपत्यका की पंचगायीं और गीठ पट्टी में अभी भी दुर्योधन की पूजा होती है।यमुना तट पर शक और यवन बस्तियों के बसने का भी उल्लेख है।काव्यमीमांसाकार ने 10वीं शताब्दी में लिखा है कि यमुना के उत्तरी अंचलों में जहाँ शक रहते हैं,वहाँ यम तुषार- कीर भी है।इस प्रकार यमुनोत्तरी धार्मिक और ऐतिहासिक दोनों दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण रही।(तप्तकुण्ड व अन्य कुण्ड) यमुनोत्तरी पहुँचने पर यहाँ के मुख्य आकर्षण यहाँ के तप्तकुण्ड हैं।इनमें सबसे तप्त जलकुण्ड का स्रोत मन्दिर से लगभग 20फीट की दूरी पर है,केदारखण्ड वर्णित ब्रह्मकुण्ड अब इसका नाम सूर्यकुण्ड एवं तापक्रम लगभग195डिग्री फारनहाइट है,जो कि गढ़वाल के सभी तप्तकुण्ड में सबसे अधिक गरम है।इससे एक विशेष ध्वनि निकलती है,जिसे "ओम् ध्वनि"कहा जाता है।इस स्रोत में थोड़ा गहरा स्थान है।जिसमें आलू व चावल पोटली में डालने पर पक जाते हैं,हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले की पार्वती घाटी में मणिकर्ण तीर्थ में स्थित ऐसे ही तप्तकुण्ड को "स्टीम कुकिंग"कहा जाता है।सूर्यकुण्ड के निकट दिव्यशिला है।जहाँ उष्ण जल नाली की सी ढलान लेकर निचले गौरीकुण्ड में जाता है,इस कुण्ड का निर्माण जमुनाबाई ने करवाया था,इसलिए इसे जमुनाबाई कुण्ड भी कहते है।इसे काफी लम्बा चौड़ा बनाया गया है,ताकि सूर्यकुण्ड का तप्तजल इसमें प्रसार पाकर कुछ ठण्डा हो जाय और यात्री स्नान कर सकें। गौरीकुण्ड के नीचे भी तप्तकुण्ड है।यमुनोत्तरी से 4मील ऊपर एक दुर्गम पहाड़ी पर सप्तर्षि कुण्ड की स्थिति बताई जाती है।विश्वास किया जाता है कि इस कुण्ड के किनारे सप्तॠषियों ने तप किया था।दुर्गम होने के कारण साधारण व्यक्ति यहाँ नहीं पहुँच सकता।स्थानीय लोगों का कहना है कि आजसे लगभग 60साल पहले विष्णुदत्त उनियाल वहाँ गए थे।लौटते समय उन्होंने वहाँ एक शिवलिंग देखा।जैसे ही वह उसे उठाने के लिए हुए वह गायब हो गया।
 
== भूगोल ==
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मंदिर प्रांगण में एक विशाल शिला स्तम्भ है जिसे दिव्यशिला के नाम से जाना जाता है। यमुनोत्री मंदिर परिशर 3235 मी. उँचाई पर स्थित है। यँहा भी मई से अक्टूबर तक श्रद्धालुओं का अपार समूह हरवक्त देखा जाता है। शीतकाल में यह स्थान पूर्णरूप से हिमाछादित रहता है। मोटर मार्ग का अंतिम विदुं हनुमान चट्टी है जिसकी ऋषिकेश से कुल दूरी 200 कि. मी. के आसपास है। हनुमान चट्टी से मंदिर तक 14 कि. मी. पैदल ही चलना होता था किन्तु अब हलके वाहनों से जानकीचट्टी तक पहुँचा जा सकता है जहाँ से मंदिर मात्र 5 कि. मी. दूर रह जाता है।
 
देवी यमुना की तीर्थस्थली, यमुना नदी के स्रोत पर स्थित है। यह तीर्थ गढवाल हिमालय के पश्चिमी भाग में स्थित है। इसके शीर्ष पर बंदरपूंछ चोटी (3615 मी) गंगोत्री के सामने स्थित है। यमुनोत्री का वास्तविक स्रोत बर्फ की जमी हुई एक झील और हिमनद (चंपासर ग्लेसियर) है जो समुद्र तल से 4421 मीटर की ऊँचाई पर कालिंद पर्वत पर स्थित है। इस स्थान से लगभग 1 किमी आगे जाना संभव नहीं है क्योंकि यहां मार्ग अत्यधिक दुर्गम है। यही कारण है कि देवी का मंदिर पहाडी के तल पर स्थित है। देवी यमुना माता के मंदिर का निर्माण, टिहरी गढवाल के महाराजा प्रताप शाह द्वारा किया गया था। अत्यधिक संकरी-पतली युमना काजल हिम शीतल है। यमुना के इस जल की परिशुद्धता, निष्कलुशता एवं पवित्रता के कारण भक्तजनों के ह्दय में यमुना के प्रति अगाध श्रद्धा और भक्ति उमड पड़ती है। पौराणिक आख्यान के अनुसार असित मुनि की पर्णकुटी इसी स्थान पर थी। देवी यमुना के मंदिर तक चढ़ाई का मार्ग वास्तविक रूप में दुर्गम और रोमांचित करनेवाला है। मार्ग पर अगल-बगल में स्थित गगनचुंबी, मनोहारी नंग-धडंग बर्फीली चोटियां तीर्थयात्रियों को सम्मोहित कर देती हैं। इस दुर्गम चढ़ाई के आस-पास घने जंगलो की हरितिमाहरीतिमा मन को मोहने से नहीं चूकती है। सड़क मार्ग से यात्रा करने पर तीर्थयात्रियों को ऋषिकेश से सड़क द्वारा फूलचट्टी तक 220 किमी की दूरी तय करनी पड़ती है। यहां से 8 किमी की चढ़ाई पैदल चल कर अथवा टट्टुओं पर सवार होकर तय करनी पड़ती है। यहां से तीर्थयात्रियों की सुविधाओं के लिए किराए पर पालकी तथा कुली भी आसानी से उपलब्ध रहते हैं।
 
== यमुनोत्री का प्रधान मंदिर ==