"पुरुषार्थ": अवतरणों में अंतर
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[[हिन्दू धर्म]] में '''पुरुषार्थ''' से तात्पर्य मानव के लक्ष्य या उद्देश्य से है ('पुरुषैर्थ्यते इति पुरुषार्थः')। [https://www.keshavyogi.online/2021/04/%20%20%20%20%20%20%20%20%20%20%20%20%20%20%20%20%20.html पुरुषार्थ] = पुरुष+अर्थ =पुरुष का तात्पर्य विवेक संपन्न मनुष्य से है अर्थात विवेक शील मनुष्यों के लक्ष्यों की प्राप्ति ही पुरुषार्थ है। प्रायः मनुष्य के लिये [[वेद|वेदों]] में चार '''पुरुषार्थों''' का नाम लिया गया है - [[धर्म]], [[अर्थ]], [[काम]] और [[मोक्ष]]। इसलिए इन्हें 'पुरुषार्थचतुष्टय' भी कहते हैं। महर्षि [[मनु]] पुरुषार्थ चतुष्टय के प्रतिपादक हैं।
[[चार्वाक दर्शन]] केवल दो ही पुरुषार्थ को मान्यता देता है- अर्थ और काम। वह धर्म और मोक्ष को नहीं मानता।
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== बाहरी कड़ियाँ ==
* [https://www.keshavyogi.online/2021/04/%20%20%20%20%20%20%20%20%20%20%20%20%20%20%20%20%20.html वैदिक धर्म में पुरुषार्थ व आश्रम व्यवस्था तथा वैदिक साहित्य व वेदांग आदि का वर्णन]
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* [https://web.archive.org/web/20160304134352/http://www.hindigaurav.com/index.php?option=com_content&view=article&id=646:2011-04-14-12-27-28&catid=17:2011-02-27-10-33-29&Itemid=19 चार पुरुषार्थ को जानें] (हिन्दी गौरव)
*[http://shodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/180269/5/05_chapter%202.pdf पुरुषार्थ चतुष्टय]
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