"अष्टांग योग": अवतरणों में अंतर

→‎योग के अष्टांगों का परिचय: पतंजलयोग दर्शन के अनुसार अहिंसा सूत्र
→‎यम: पातंजलयोगदर्शन के अनुसार अहिंसा सूत्र
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पांच सामाजिक नैतिकता
 
(क) '''अहिंसा''' - '''अहिंसाप्रतिष्ठायांतत्सन्निधौ वैरत्याग: ।। पातंजलयोगदर्शन 2/35।।'''
 
अर्थात अहिंसा से प्रतिष्ठित हो जाने पर उस योगी पास वैरभाव छूट जाता है ।
 
शब्दों से, विचारों से और कर्मों से किसी को अकारण हानि नहीं पहुँचाना
 
(ख) '''सत्य''' -'''सत्यप्रतिष्ठायां क्रियाफ़लाश्रययत्वम् ।। पातंजलयोगदर्शन 2/36 ।।'''
(ख) '''सत्य''' - विचारों में सत्यता, परम-सत्य में स्थित रहना, जैसा विचार मन में है वैसा ही प्रामाणिक बातें वाणी से बोलना
 
अर्थात सत्य से प्रतिष्ठित (वितर्क शून्यता स्थिर) हो जाने पर उस साधक में क्रियाओं और उनके फलों की आश्रयता आ जाती है ।
 
अर्थात जब साधक सत्य की साधना में प्रतिष्ठित हो जाता है तब उसके किए गए कर्म उत्तम फल देने वाले होते हैं और इस सत्य आचरण का प्रभाव अन्य प्राणियों पर कल्याणकारी होता है ।
 
(ख) '''सत्य''' - विचारों में सत्यता, परम-सत्य में स्थित रहना, जैसा विचार मन में है वैसा ही प्रामाणिक बातें वाणी से बोलना
 
(ग) '''अस्तेय''' - चोर-प्रवृति का न होना