मेरा जीवन, मेरे दायित्व : जीवन जीने के तरीके पर होता भविष्य निर्धारित: ( कोसारे महाराज )
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उसका अपना है, उसे जैसे मर्जी आए वैसे जिया जाए, लेकिन यह सत्य से परे है। वास्तव में एक बालक के उत्तम जीवन निर्माण में माता पिता अथवा परिवार, शिक्षक अथवा विद्यालय एवं आसपास का समाज अथवा आस पास पड़ोस का महत्वपूर्ण योगदान रहता है। बालक जहां उक्त तीनों संस्थाओं के सहयोग से अपने जीवन को आगे बढ़ाता है, वहां वह इनसे अपने दायित्व के बारे में सीखता है। समय समय पर बालक को दिशा निर्देश मिलता रहता है। एक बालक अपने जीवन को खुद की संपत्ति समझ कर आगे बढ़ता है। वहां जीवन निर्माण करने वाली महत्वपूर्ण संस्थाओं के प्रति, राष्ट्र के प्रति, अपनी सामाजिक मान्यताओं एवं परंपराओं के प्रति, पर्यावरण के प्रति, नारी सम्मान के प्रति तथा दीन दुखियों के प्रति अपने कर्तव्य को पहचानकर अपना आचरण सुनिश्चित करना ना भूले। 'मेरा जीवन, मेरा दायित्व' के महत्वपूर्ण विषय का ध्यान करते हुए हम सब एक बालक अथवा विद्यार्थी से बहुत सी अपेक्षाएं करते हैं, यह स्वाभाविक भी है क्योंकि व्यक्ति निर्माण में अनगिनत शक्तियां एवं अपार संसाधन खर्च होते हैं। इस सब में हम यह भूल जाते हैं कि जिन महत्वपूर्ण तीन कड़ियों द्वारा जीवन को आगे बढ़ाने तथा दायित्व बोध का काम किया जाता है वह कड़ियां किसी स्थिति में हैं यह जानना व समझना भी आवश्यक है। वर्तमान में पहली और अत्यंत महत्वपूर्ण कड़ी माता पिता को माना जाता है लेकिन सर्वविदित है कि बालक के जीवन निर्माण में तथा कर्तव्यों के बारे में मार्गदर्शन करने की सही स्थित में माता पिता नहीं हैं। वे तो केवल धनोपार्जन के काम में ही अपनी समस्त ऊर्जा को खर्च कर रहे हैं। उनके पास अपने बच्चे के जीवन के लिए संस्कार देने तथा उसके फर्ज के बारे में शिक्षा देने का समय ही नहीं है। यदि बालक बड़ा होकर रास्ते से भटकता है, अपने जीवन के बारे में समाज विरोधी धारणा को पुष्ट करता है तथा अपने कर्तव्यों के बारे में नकारात्मक दृष्टिकोण अपनाता है, तो फिर उसका दोष ही नहीं है। माता पिता का काम होता है कि वह बच्चों का मार्गदर्शन करें। इसी तरह दूसरी महत्वपूर्ण कड़ी है शिक्षक अथवा विद्यालय। प्राचीन समय वाली आचार्य एवं गुरुकुल परंपरा तो समाप्त हो गई है। वर्तमान में तो सबकुछ व्यवसायिक हो चला है। न तो शिक्षक की ही पात्रता ऐसी है जो कि अपने जीवन से बालक को जीवन व दायित्वों के बारे में दिशा दे सके। जो दीपक स्वयं जल रहा होगा वही तो दूसरों को रोशन कर सकता है। ठीक इसी प्रकार बालक के जीवन एवं दायित्वों के बारे में पथ परामर्श करने का काम समाज भी करता है। दुर्भाग्य से समाज के वातावरण एवं परिस्थितियों का ध्यान करते हैं तो दिखाई देता है कि बालक को जीवन को ठीक दिशा में जीने की तथा उसके कर्तव्यों के बारे मे बोध कराने की दिशा में समाज सफल नहीं हो पा रहा है। बच्चों को उनके जीवन के दायित्व बोध करवाने का काम तीनों कड़ियां, समाज, अध्यापक व अभिभावक ही मिलकर बेहतर तरीके से कर सकते हैं। बच्चों को यह बताना अत्यंत आवश्यक है कि उनके साथ अच्छा या बुरा उनके अपने आचरण के कारण होता है। ऐसे में वे बजाए दूसरों को कोसने के अपने अंदर झांके और देखें कि उन्हें किस कर्म का फल मिला है। इसके लिए समय बीत जाने पर कुछ नहीं होगा और बच्चों को पहले से ही उनका दायित्व बोध कराना होगा।