"बद्रीनाथ मन्दिर": अवतरणों में अंतर

छो Link Spamming/Promotional Links/Self Published Links
टैग: वापस लिया
.
टैग: मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन
पंक्ति 1:
बद्रीनाथ में जो प्रतिमा जी है़ वह विष्णु के एक रूप "बद्रीनारायण" की है।
{{निर्वाचित लेख परख}}
{{ज्ञानसन्दूक धार्मिक इमारत
Line 37 ⟶ 36:
| website =
}}
'''बद्रीनाथ''' अथवा '''बद्रीनारायण मन्दिर''' भारतीय राज्य [[उत्तराखण्ड]] के [[चमोली जिला|चमोली जनपद]] में [[अलकनन्दा नदी]] के तट पर स्थित एक [[मन्दिर|हिन्दू मन्दिर]] है। यह [[हिन्दू देवी देवताओं की सूची|हिंदू देवता]] [[विष्णु]] को समर्पित मंदिर है और यह स्थान इस धर्म में वर्णित सर्वाधिक पवित्र स्थानों, [[चार धाम|चार धामों]], में से एक यह एक प्राचीन मंदिर है जिसका निर्माण ७वीं-९वीं सदी में होने के प्रमाण मिलते हैं। मन्दिर के नाम पर ही इसके इर्द-गिर्द बसे नगर को भी [[बद्रीनाथ (नगर)|बद्रीनाथ]] ही कहा जाता है। भौगोलिक दृष्टि से यह स्थान [[हिमालय]] पर्वतमाला के ऊँचे शिखरों के मध्य, [[गढ़वाल हिमालय|गढ़वाल क्षेत्र]] में, समुद्र तल से ३,१३३ मीटर (१०,२७९ फ़ीट) की ऊँचाई पर स्थित है। जाड़ों की ऋतु में हिमालयी क्षेत्र की रूक्ष मौसमी दशाओं के कारण मन्दिर वर्ष के छह महीनों (अप्रैल के अंत से लेकर नवम्बर की शुरुआत तक) की सीमित अवधि के लिए ही खुला रहता है। यह भारत के कुछ सबसे व्यस्त तीर्थस्थानों में से एक है; २०१२ में यहाँ लगभग १०.६ लाख तीर्थयात्रियों का आगमन दर्ज किया गया था।
 
बद्रीनाथ मन्दिर में हिंदू धर्म के देवता विष्णु के एक रूप "बद्रीनारायण" की पूजा होती है। यहाँ उनकी १ मीटर (३.३ फीट) लंबी [[शालीग्राम|शालिग्राम]] से निर्मित मूर्ति है जिसके बारे में मान्यता है कि इसे [[आदि शंकराचार्य]] ने ८वीं शताब्दी में समीपस्थ नारद कुण्ड से निकालकर स्थापित किया था। इस मूर्ति को कई हिंदुओं द्वारा विष्णु के आठ ''स्वयं व्यक्त क्षेत्रों'' (स्वयं प्रकट हुई प्रतिमाओं) में से एक माना जाता है। यद्यपि, यह मन्दिर उत्तर भारत में स्थित है, "रावल" कहे जाने वाले यहाँ के मुख्य पुजारी दक्षिण भारत के [[केरल]] राज्य के नम्बूदरी सम्प्रदाय के ब्राह्मण होते हैं। बद्रीनाथ मन्दिर को ''उत्तर प्रदेश राज्य सरकार अधिनियम – ३०/१९४८'' में ''मन्दिर अधिनियम – १६/१९३९'' के तहत शामिल किया गया था, जिसे बाद में "''श्री बद्रीनाथ तथा श्री केदारनाथ मन्दिर अधिनियम''" के नाम से जाना जाने लगा। वर्तमान में [[उत्तराखण्ड सरकार]] द्वारा नामित एक सत्रह सदस्यीय समिति दोनों, बद्रीनाथ एवं [[केदारनाथ कस्बा|केदारनाथ]] मन्दिरों, को प्रशासित करती है।
 
''[[विष्णु पुराण]]'', ''[[महाभारत]]'' तथा ''[[स्कन्द पुराण]]'' जैसे कई प्राचीन ग्रन्थों में इस मन्दिर का उल्लेख मिलता है। आठवीं शताब्दी से पहले [[आलवार सन्त|आलवार सन्तों]] द्वारा रचित ''[[दिव्य प्रबन्ध|नालयिर दिव्य प्रबन्ध]]'' में भी इसकी महिमा का वर्णन है। बद्रीनाथ नगर, जहाँ ये मन्दिर स्थित है, हिन्दुओं के पवित्र [[चार धाम|चार धामों]] के अतिरिक्त [[छोटा चार धाम|छोटे चार धामों]] में भी गिना जाता है और यह [[विष्णु]] को समर्पित १०८ दिव्य देशों में से भी एक है। एक अन्य संकल्पना अनुसार इस मन्दिर को बद्री-विशाल के नाम से पुकारते हैं और विष्णु को ही समर्पित निकटस्थ चार अन्य मन्दिरों – योगध्यान-बद्री, भविष्य-बद्री, वृद्ध-बद्री और आदि बद्री के साथ जोड़कर पूरे समूह को "पंच-बद्री" के रूप में जाना जाता है।
 
<!-- आवागमन का विस्तार करें -->[[ऋषिकेश]] से यह २९४ किलोमीटर की दूरी पर उत्तर दिशा में स्थित है। मन्दिर तक आवागमन सुलभ करने के लिए वर्तमान में [[चार धाम महामार्ग]] तथा [[चार धाम रेलवे]] जैसी कई योजनाओं पर कार्य चल रहा है।