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| religion = [[यहूदी धर्म]] पन्थ, [[ईसाई धर्म|मसीही धर्म]] पन्थ
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'''बाइबिल''' ([[:en:Bible|Bible]]), [[ईसाई धर्म]] (मसीही) धर्म)पन्थ की आधारशिला तथा ईसाइयों (मसीहियों) का पवित्रतम [[धर्म ग्रंथ|धर्मग्रन्थ]] है। इसके दो भाग हैं : [[पुराना नियम|पूर्वविधान]] (ओल्ड टेस्टामैंट) और [[नया नियम|नवविधान]] (न्यू टेस्टामेंट)। बाइबिल का पूर्वार्ध [[यहूदी धर्म|यहूदियों]] का भी धर्मग्रंथधर्मग्रन्थ है, तथा उत्तरार्द्ध [[यीशु|ईसा मसीह]] व उनकी शिक्षाओं पर आधारित है। बाइबिल ईश्वरप्रेरित (इंस्पायर्ड) है किंतुकिन्तु ईश्वर ने बाइबिल के विभिन्न लेखकों को इस प्रकार प्रेरित किया है कि वे ईश्वरकृत होते हुए भी उनकी अपनी रचनाएँ भी कही जा सकती हैं। ईश्वर ने बोलकर उनसे बाइबिल नहीं लिखवाई। वे अवश्य ही ईश्वर की प्रेरणा से लिखने में प्रवृत्त हुए किंतु उन्होंने अपनी [[संस्कृति]], [[शैलीविज्ञान|शैली]] तथा विचारधारा की विशेषताओं के अनुसार ही उसे लिखा है। अत: बाइबिल ईश्वरीय प्रेरणा तथा मानवीय परिश्रम दोनों का सम्मिलित परिणाम है।
 
 
मानव जाति तथा यहूदियों के लिए ईश्वर ने जो कुछ किया और इसके प्रति मनुष्य की जो प्रतिक्रिया हुई उसका इतिहास और विवरण ही बाइबिल का वण्र्य विषय है। बाइबिल गूढ़ दार्शनिक सत्यों का संकलन नहीं है बल्कि इसमें दिखलाया गया है कि ईश्वर ने मानव जाति की मुक्ति का क्या प्रबंधप्रबन्ध किया है। वास्तव में बाइबिल ईश्वरीय मुक्तिविधान के कार्यान्वयन का इतिहास है जो ओल्ड टेस्टामेंट में प्रारंभ होकर ईसा के द्वारा न्यू टेस्टामेंट में संपादित हुआ है। अत: बाइबिल के दोनों भागों में घनिष्ठ संबंध है। ओल्ड टेस्टामेंट की घटनाओं द्वारा ईसा के जीवन की घटनाओं की पृष्ठभूमि तैयार की गई है। न्यू टेस्टामेंट में दिखलाया गया है कि मुक्तिविधान किस प्रकार ईसा के व्यक्तित्व, चमत्कारों, शिक्षा, मरण तथा पुनरुत्थान द्वारा संपन्नसम्पन्न हुआ है; किस प्रकार ईसा ने चर्च की स्थापना की और इस चर्च ने अपने प्रारंभिकप्रारम्भिक विकास में ईसा के जीवन की घटनाओं को किस दृष्टि से देखा है कि उनमें से क्या निष्कर्ष निकाला है।
 
बाइबिल में प्रसंगवश लौकिक ज्ञान विज्ञान संबंधीसम्बन्धी बातें भी आ गई हैं; उनपर तात्कालिक धारणाओं की पूरी छाप है क्योंकि बाइबिल उनके विषय में शायद ही कोई निर्देश देना चाहती है। मानव जाति के इतिहास की ईश्वरीय व्याख्या प्रस्तुत करना और धर्म एवं मुक्ति को समझना, यही बाइबिल का प्रधान उद्देश्य है, बाइबिल की तत्संबंधीतत्सम्बन्धी शिक्षा में कोई भ्रांतिभ्राँति नहीं हो सकती। उसमें अनेक स्थलों पर मनुष्यों के पापाचरण का भी वर्णन मिलता है। ऐसा आचरण अनुकरणीय आदर्श के रूप में नहीं प्रस्तुत हुआ है किंतुकिन्तु उसके द्वारा स्पष्ट हो जाता है कि मनुष्य कितने कलुषित हैं और उनको ईश्वर की मुक्ति की कितनी आवश्यकता है।
 
== [[पुराना नियम]] ==