"मरुस्थलीकरण": अवतरणों में अंतर

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मरुस्थलीकरण का सबसे गहरा प्रभाव है जैव विविधता और उत्पादक क्षमता में कमी, उदाहरण के लिए संक्रमण से झाड़ियों से भरे ज़मीनों के गैर देशीय चरागाह {{Citation needed|date=May 2010}} में तब्दील होना. उदाहरण के लिए, दक्षिणी कैलिफोर्निया के अर्द्ध-शुष्क क्षेत्रों में, कई तटीय वृक्षों और झाड़-झंखाड़ों वाले पारितंत्रों की जगह नियमित अंतराल पर आग की वापसी से गैर देशीय, आक्रामक घास भर गयी हैं। इसकी वजह से वार्षिक घास की ऐसी श्रृंखला पैदा हो सकती है जो कभी मूल पारितंत्र में पाये जाने वाले जानवरों को सहारा नहीं दे सकती{{Citation needed|date=May 2010}}. [[मेडागास्कर]] की केंद्रीय उच्चभूमि के पठार {{Citation needed|date=May 2010}} में, स्वदेशी लोगों द्वारा काटने और जलाने की कृषि पद्धति की वजह से पूरे देश का 10% हिस्सा मरुस्थलीकरण में तब्दील हो गया है{{Citation needed|date=May 2010}}.
 
== शिकार बनाने का प्रयास करेगा, इस प्रकार मनुष्यों में वन्य जीवों में प्रतिस्पर्धा प्रारम्भ हो जायेगी। पिछले पचास वर्षों से सड़कों के किनारे व शहरों के मध्य सौन्दर्यकरण हेतु विदेशी पादपों को ==
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== उगाया जा रहा है। एक ही जाति के वनवृक्षों को उगाने से मृदा में जहरीले तत्व एकत्रित हो रहे हैं जो अन्य पेड़ पौधों के लिये प्रतिस्पर्धा पैदा करते हैं तथा उन्हें विषैले पदार्थों के कारण पनपने नहीं देते। युकेलिप्टस ऑस्ट्रेलिया का पादप है, लेण्टाना छोटे छोटे नारंगी लालपीले फूलों वाला अमेरिका से आया है, पानी में बड़े-बड़े पत्ते व नीले पुष्पों वाली तैरती हुई जलकुंभी भी विदेशी है। खुजली व अस्थमा पैदा करने वाली कांग्रेस घास पाधनियम भी बहुत नुकसान पहुंचाती है। विलायती कीकर भी आसपास के पेड़-पौधों को नुकसान पहुंचाता है। इस तरह बाहरी देशों से आयी बनस्पति हमारे देश की वन्य संपदा व जीव विविधता को नुरुसान पहुंचा रही है। अत: इसके लिये हमें इन बाहरी देशों से आयी जातियों को नष्ट करना होगा अगर अपनी जैव संपदा को बचाना है। ==
 
== प्रकृति के तन्त्र में उपस्थित समुदाय की प्रत्येक जाति का अपना-अपना महत्व व भूमिका होती है। जिसे निभाकर तन्त्र गतिशील रहता है। अतः मानव को सभी जातियों को स्वतन्त्रता पूर्वक जीने देने के लिये वातावरण व माहौल पुनः बनाना ही होगा जिसके लिये आज उपलब्ध जैव विविधता का संरक्षण अत्यन्त आवश्यक है। ==
 
== 11.8 राजस्थान की जैवविविधता (Desert biodiversity of Rajasthan) ==
 
== भारतीय मरूस्थल को मरू– प्रदेश भी कहते है, जिसका अर्थ है मृत्यु की भूमि। इसका मुख्य कारण है— अपरदन व जैवविविधता का हास। भारतीय मरूस्थल 32 मिलियन sq km तक फैला हुआ है जो कि भारत के कुल क्षेत्रफल का 12 प्रतिशत है। राजस्थान प्रदेश में पाये जाने वाली जैव विविधता निम्न प्रकार है। राजस्थान में विभिन्न भौगोलिक स्थितियां है, पश्चिम में मरूस्थल, दक्षिण–पश्चिम में पहाड़ी क्षेत्र तथा पूर्व व दक्षिण पूर्व में मैदान है। जैव विविधता के आधार पर राजस्थान प्रदेश को निम्न तीन क्षेत्रों में वर्गीकृत किया गया है – ==
 
== (i) दक्षिण-पूर्वी मैदानी क्षेत्र - यह क्षेत्र अरावली श्रृंखला के पूर्व व दक्षिण-पूर्व भाग में मैदानी भाग है, यहां का क्षेत्र काफी उपजाऊ है व इस क्षेत्र में बाणगंगा तथा गंभीरी नदी है। बनास व चंबल नदी भी इसी क्षेत्र में हैं। यहां इस क्षेत्र में अधिकांशत सागवान, बांस, सफेदा, तेंदु महुआ आदि वृक्ष 18 मिलते हैं। यहां की जीव संपदा में लकड़बग्घा, उड़नगिलहरियां है। , सांभर तेंदुआ, जंगली सुअर चौसिंगा तथा ==
 
== (ii) पहाड़ी क्षेत्र प्रदेश के उत्तर-पूर्व से दक्षिण-पश्चिम तक अरावली पर्वत श्रृंखला है जो विंध्याचल से मिलकर सवाईमाधोपुर में दोनों की सन्धि बनाती है। पहाड़ी क्षेत्र के बाघ, जरख सियार, सांभर, भालू चीतल, नीलगाय, जंगली सुअर प्रमुख है। ==
 
== (iii) मरूस्थलीय क्षेत्र - यह क्षेत्र बहुत कम वर्षा वाला क्षेत्र है जहां वर्षा नगण्य होती है। इस क्षेत्र में लवणीय जल पाया जाता है। यहां पर अत्यन्त विशिष्ट प्रजातियों की वनस्पति पायी जाती है। जिनके पत्ते मोटे होते हैं या तनों में विभिन्न रूपान्तरण पाये जाते हैं। यहां सेवण घास, खेजड़ी, फोग ==
[[चित्र:Nouakchott SandDunesEncroaching.jpg|thumb|350px|नौआकशॉट, मॉरिटानिया की राजधानी में रेत का टीला.]]