"विष": अवतरणों में अंतर

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अमृतमपत्रिका, ग्वालियर से साभार
आयुर्वेद के अनुसार विष, जहर या poision दो तरह के होते हैं-
स्थावर और जङ्गम
सुश्रुत में लिखा है कि-
स्थावरं जङ्गमं चैव
द्विविधं विषमुच्यते।
दशाधिष्ठानँ .....
स्थावर विष के रहने के 10 स्थान हैं और जङ्गम के 16!
जङ्गम विष 16 इन स्थानों पर रहता है-
【1】दृष्टि
【2】श्वांस
【3】दाढ़
【4】नख यानी नाखूनों में
【5】मूत्र
【6】विष्ठा
【7】वीर्य
【8】आर्तव (माहवारी)
【9】लार
【10】मुख की पकड़
【11】 अपानवायु
【12】गुदा
【13】हड्डी
【14】पित्त
【15】शूक यानि डंक, कांटा या रोम। जैसे-बिच्छू, ततैया, मक्खी के डंक में विष रहता है।
【16】लाश मृत शरीर में
चरक ने लिखा है कि-
नाग, कीड़ा, मकड़ी, बिच्छू, छिपकली, गिरगिट, जौंक, मछली, मेंढक, भौंरा, बर्र, मक्खी, किरकेट, कुत्ता, सिंह, स्यार, चिता तेंदुआ, जरख और नौला (नेवला) एवं बरौरा की दाढ़ी में विष रहता है। इनकी दाढ़ों से उत्पन्न विष जङ्गम कहलाते हैं।
भगवान धन्वंतरि जीवों के मल-मूत्र, श्वास आदि में भी विष बताते हैं।
(१) दिव्यव इच्छाधारी-मणिधारी नागों की दृष्टि और श्वांस में विष होता है।
(२)सिंह बिलाव बिल्ली के पंजो व दांतों में विष होता है।
(३)चिपिट आदि कीड़ों के मल-मूत्र में विष होता है।
(४)जहरीले चूहों के वीर्य में विष होता है।
(५)मकड़ी की लार में विष होता है।
(६)बिच्छू के पिछले डंक में विष होता है।
(७) विष से मरे जीवों की हड्डियों में विष होता है।
(८) कनखजूरे के कांटों में विष होता है।
(९)भौंरे, ततैया, मक्खी के डंक में विष होता है।
 
मकड़ियां अनेक प्रकार की और बहुत विशाल भी होती हैं। इनमें कुछ के नाखून भी होते हैं।
जङ्गम विष के सामान्य कार्य...
भावप्रकाश निघण्टु में लिखा है:-
निंद्रां तन्द्रां क्लमं दाहं,
सम्पाकं लोमहर्षणम्।
शोथं चैवातिसारं च
कुरुते जंगमं विषम्।।
अर्थात-जङ्गम विष निद्रा, तन्द्रा यानी आलस्य, ग्लानि (हीनभावना), दाह पाक, रोमांच, सूजन और अतिसार करता है।
स्थावर विष के रहने की जगह...
मूलं पत्रं फलं पुष्पं
त्वकक्षीरं सार एव च।
निर्यासोधातवश्चैव
कंदश्च दशम: स्मृत:।।
(सुश्रुत सहिंता)
अर्थात- स्थावर विष जड़, पत्ते, छाल, फल-फूल, दूध, सार, गोंद, धातु और कन्द इन दस स्थानों पर रहता है।
विशेष-किसी की जड़ में, किसी के पत्ते में आदि जैसे-वत्सनाभ, भील, हिंगुल में रहता है।
कालकूट विष बहुत प्रसिद्ध होता है। यह पीपल के जैसा वृक्ष का गोंद होता है। यह केवल मलयाचल (मैसूर के जंगल, कोंकण (गोवा) आदि जगह पाया जाता है।
कालकूट विष से स्पर्श ज्ञान नहीं रहता। शरीर में कम्पन्न और स्तम्भ होता है।
हलाहल विष... इस विष को महादेव ने पीकर जहां वमन किया, उन स्थानों पर मिलता है।
हलाहल विष के फल दाखों (मुनक्के) के गुच्छों के जैसे और पत्ते ताड़ वृक्ष की तरह होते हैं। हलाहल वृक्ष के तेज से आसपास के पेड़ मुरझा जाते हैं यह विष हिमालय की तलहटी, दक्षिण अफ्रीका, किष्किंधा (कर्नाटक के हम्पी), मडगांव के वनों में तथा दक्षिण महासागर जैसे-तरँगम बाड़ी अमृतेश्वर शिवालय के नजदीक मिलता है।
हलाहल विष के सेवन से आदमी तुरन्त काला या नीला पड़ जाता है। श्वांस रुक रुककर आती है।
ब्रह्मपुत्र विष- यह मलयाचल पर्वत, मैसूर के चन्दन वनों में मिलता है।
चिकित्सा चंद्रोदय के अनुसार-
कंदजान्युग्र वियाणि....
तेरह विष बड़ी उग्र शक्ति वाले होते हैं, जो तुरन्त प्राण नाश कर देते हैं।
आयुर्वेदिक औषधियों में वत्सनाभ विष और सिंगिया विष वात रोगों की दवाओं में काम में लाते हैं।
ये रसायन के रूप में वीर्यवर्द्धक, प्राणदायक, त्रिदोषनाशक, पुष्टिकारक सिद्ध होते हैं। यदि इन्हें बिना शुद्ध किये उपयोग में लाएं, तो ये प्राण हन्ता बन जाते हैं।
अमृतम द्वारा निर्मित ऑर्थोकी गोल्ड कैप्सूल (Orthokey gold capsule) में इन्हें विशेष विधि से खरल करके मिश्रित किया जाता है।
रुक्ष, उष्ण, सूक्ष्म, आशु, व्यवायी, विकासी, विशद, लघु, तीक्ष्ण और अपाकी ये दस गुण-अवगुण विषयों में होते हैं।
इन सबके अर्थ चरक सहिंता में विस्तार से बताएं है।
वात-पित्त-,कफ को संतुलित बनाने की जानकारी के लिए
अमृतमपत्रिका द्वारा प्रकाशित आयुर्वेद लाइफ स्टाइल किताब का अध्ययन-अमल कर लम्बी उम्र तक स्वस्थ्य रह सकते हैं।
 
 
'''विष''' (Poision) ऐसे पदार्थों के नाम हैं, जो खाए जाने पर श्लेष्मल झिल्ली (mucous membrane), [[ऊतक]] या [[त्वचा]] पर सीधी क्रिया करके अथवा [[परिसंचरण तंत्र]] (circulatory system) में अवशोषित होकर, घातक रूप से स्वास्थ्य को प्रभावित करने, या जीवन नष्ट करने, में समर्थ होते हैं।
 
"https://hi.wikipedia.org/wiki/विष" से प्राप्त