"हिन्दी एवं उर्दू": अवतरणों में अंतर

, गुलशन कुमार वर्मा बहादुरगंज
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हिंदी और उर्दू के एक मिले जुले रूप को हिंदुस्तानी कहा गया है। भारत में अँगरेज शासकों की कूटनीति के फलस्वरूप हिंदी और उर्दू एक दूसरे से दूर होती गईं। एक की संस्कृतनिष्ठता बढ़ती गई और दूसरे का फारसीपन। [[लिपि]]भेद तो था ही। सांस्कृतिक वातावरण की दृष्टि से भी दोनों का पार्थक्य बढ़ता गया। ऐसी स्थिति में अँगरेजों ने एक ऐसी मिश्रित भाषा को हिंदुस्तानी नाम दिया जिसमें अरबी, फारसी या संस्कृत के कठिन शब्द न प्रयुक्त हों तथा जो साधारण जनता के लिए सहजबोध्य हो। आगे चलकर देश के राजनयिकों ने भी इस तरह की भाषा को मान्यता देने की कोशिश की और कहा कि इसे फारसी और नागरी दोनों लिपियों में लिखा जा सकता है। पर यह कृत्रिम प्रयास अंततोगत्वा विफल हुआ। इस तरह की भाषा ज्यादा झुकाव उर्दू की ओर ही था।
 
== हिं9693903886दीहिंदी और उर्दू का अद्वैत ==
भाषाविद [[हिन्दी]] एवं [[उर्दू भाषा|उर्दू]] को एक ही [[भाषा]] मानते हैं। हिन्दी [[देवनागरी]] लिपि में लिखी जाती है और शब्दावली के स्तर पर अधिकांशत: [[संस्कृत भाषा|संस्कृत]] के शब्दों का प्रयोग करती है। उर्दू [[उर्दू लिपि]] में लिखी जाती है और शब्दावली के स्तर पर उस पर [[फ़ारसी भाषा|फ़ारसी]] और [[अरबी भाषा|अरबी]] भाषाओं का प्रभाव अधिक है। [[व्याकरण|व्याकरणिक]] रूप से उर्दू और हिन्दी में लगभग शत-प्रतिशत समानता है - केवल कुछ विशेष क्षेत्रों में शब्दावली के स्रोत (जैसा कि ऊपर लिखा गया है) में अंतर होता है। कुछ विशेष ध्वनियाँ उर्दू में अरबी और फ़ारसी से ली गयी हैं और इसी प्रकार फ़ारसी और अरबी की कुछ विशेष व्याकरणिक संरचना भी प्रयोग की जाती है।
अतः उर्दू को हिन्दी की एक विशेष शैली माना जा सकता है।