"जीनगर": अवतरणों में अंतर

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जीनगर जाति का इतिहास एक विशाल एवं वैभवशाली जाति का रहा है। जीनगर जाति मूलतः क्षत्रिय जाति ही थी मगर कालान्तर मे देश काल व परिस्थति वश उन्हे विभिन्न शिल्प कार्य, वाणिज्य एवं कारीगरी के धन्धो को अपनाना पडा। जीनगर क्षत्रिय से कब व कैसे जीनगर हो गये ये एक खोज परक विषय था। समाज इस विषय पर काफ़ी खोज करता रहा मगर इस कार्य को सर-अन्जाम दिया डॉ. शैलेन्द्र डाबी, निवासी लूनकरनसर, बीकानेर ने जिन्होने बडी मेहनत और अथक प्रयास कर इतिहास व राजा महाराजाओ के गजट व विभीन्न वन्शावलि व लेखो द्वारा यह सिद्ध किया कि जीनगर जाति वास्तव मे एक क्षत्रिय जाति है। उन्के अनुसार भगवान परशुराम ने धरती से क्षत्रियो का समूल नाश करने की प्रतिज्ञा की तथा धरती से समस्त क्षत्रियो का विनाश करने लगे। जब परशुरामजी ने "नगर-स्थान" के राज वन्शियो का सर्व नाश कर दिया तो वहा से केवल रतन सेन महाराज ही बच कर दधीचि ऋषि के आश्रम केगी मे गुप्त रुप से पहुँच गये। मगर वहा भी उन्हे मार डाला गया। तब रतन सेन के बडे पुत्र ज़य सेन जो बच कर भाग गये थे, के द्वारा पुन: "नगर-स्थान" का राज्य स्थापित करने से इस वन्श का नाम जयनगर क्षत्रिय कहलाया जो कि कालान्तर मे जीनगर क्षत्रिय हो गया जो आज तक प्रचलित है।
 
"https://hi.wikipedia.org/wiki/जीनगर" से प्राप्त