"सूरज मल": अवतरणों में अंतर

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'''महाराजा सूरजमल''' या '''सूजान सिंह''' (13 फरवरी 1707 – 25 दिसम्बर 1763) [[राजस्थान]] के [[भरतपुर]] के [[हिन्दू]] [[जाट]] शासक थे। उनका शासन जिन क्षेत्रों में था वे वर्तमान समय में भारत की राजधानी [[दिल्ली]], [[उत्तर प्रदेश]] के [[आगरा जिला|आगरा]], [[अलीगढ़ जिला|अलीगढ़]], [[बुलन्दशहर जिला|बुलन्दशहर]], [[ग़ाज़ियाबाद ज़िला|ग़ाज़ियाबाद]], [[फ़िरोज़ाबाद ज़िला|फ़िरोज़ाबाद]], [[इटावा जिला|इटावा]], [[हाथरस जिला|हाथरस]], [[एटा जिला|एटा]], [[मैनपुरी जिला|मैनपुरी]], [[मथुरा जिला|मथुरा]], [[मेरठ जिला|मेरठ]] जिले; राजस्थान के [[भरतपुर जिला|भरतपुर]], [[धौलपुर जिला|धौलपुर]], [[अलवर जिला|अलवर]], जिले; [[हरियाणा]] का [[गुरुग्राम जिला|गुरुग्राम]], [[रोहतक जिला|रोहतक]], [[झज्जर जिला|झज्जर]], [[फरीदाबाद जिला|फरीदाबाद]], [[रेवाड़ी जिला|रेवाड़ी]], [[मेवात जिला|मेवात]] जिलों के अन्तर्गत हैं। राजा सूरज मल में वीरता, धीरता, गम्भीरता, उदारता, सतर्कता, दूरदर्शिता, सूझबूझ, चातुर्य और राजमर्मज्ञता का सुखद संगम सुशोभित था। मेल-मिलाप और सह-अस्तित्व तथा समावेशी सोच को आत्मसात करने वाली भारतीयता के वे सच्चे प्रतीक थे। राजा सूरज मल के समकालीन एक इतिहासकार ने उन्हें 'गुर्जरोजाटों का प्लेटों' कहा है। इसी तरह एक आधुनिक इतिहासकार ने उनकी स्प्ष्ट दृष्टि और बुद्धिमत्ता को देखने हुए उनकी तुलना ओडिसस से की है।<ref>R.C.Majumdar, H.C.Raychaudhury, ''Kalikaranjan Datta: An Advanced History of India'', fourth edition, 1978, {{ISBN|0-333-90298-X}}, Page-535</ref>
 
सूरज मल के नेतृत्व में गुर्जरोजाटों ने आगरा नगर की रक्षा करने वाली मुगल सेना (गैरिज़न) पर अधिकार कर कर लिया। २५ दिसम्बर १७६३ ई में [[दिल्ली]] के [[शाहदरा]] में मुगल सेना द्वारा घात लगाकर किए गए एक हमले में सूरजमल की मृत्यु हो गयी। उनकी मृत्यु के समय उनके अपने किलों पर तैनात सैनिकों के अलावा, उनके पास 25,000 पैदल सेना और 15,000 घुड़सवारों की सेना थी।<ref name="Chaudhuri">{{cite book |last1=Chaudhuri |first1=J. N. |editor1-last=Majumdar |editor1-first=R. C. |editor1-link=R. C. Majumdar |title=The History and Culture of the Indian People. Vol. 8: The Maratha Supremacy |date=1977 |publisher=[[Bharatiya Vidya Bhavan]] |page=157 |chapter-url=https://books.google.co.in/books?id=dl4HxwEACAAJ |accessdate=20 December 2019 |chapter=Disruption of the Mughal Empire: The Jats |oclc=1067771105}}</ref>
 
[[चित्र:Bharatpur Fort.JPG|right|thumb|300px|[[भरतपुर दुर्ग]]]]
[[File:Temple_of_Kishn_Soraba,_Gobardun_-View_across_the_Kusum_Sarovar_Tank_towards_Suraj_Mal%27s_Cenotaph,_Gobardhan-;_a_photo_by_William_Henry_Baker,_1860%27s.jpg|thumb|400px|right| [[गोवर्धन]] में [[सूरज मल]] का चित्र जिसे विलियम हेनरी बेकर ने १८१८६० में बनाया था।]]
 
भरतपुर जहां स्थित है, वह इलाका सोघरिया चेची गुर्जरजाट सरदार रुस्तम के अधिकार में था। यहां पर सन 1733 में भरतपुर नगर की नींव डाली गई। सन 1732 में बदनसिंह ने अपने 25 वर्षीय पुत्र सूरजमल को डीग के दक्षिण-पश्चिम में स्थित सोघर गांव के सोघरियों पर आक्रमण करने के लिए भेजा। सूरजमल ने सोघर को जीत लिया। वहाँ राजधानी बनाने के लिए किले का निर्माण शुरू कर दिया। भरतपुर में स्थित यह किला लोहागढ़ किला ( Iron fort ) के नाम से जाना जाता है। यह देश का एकमात्र किला है, जो विभिन्न आक्रमणों के बावजूद हमेशा अजेय व अभेद्य रहा। बदन सिंह और सूरजमल यहां सन 1753 में आकर रहने लगे।{{cn}}
 
भरतपुर के किले का निर्माण-कार्य शुरू करने के कुछ समय बाद बदनसिंह की आंखों की ज्योति क्षीण होने लगी। अतः उसने विवश होकर राजकाज अपने योग्य और विश्वासपात्र पुत्र सूरजमल को सौंप दिया। वस्तुतः बदनसिंह के समय भी शासन की असली बागडोर सूरजमल के हाथ में रही।{{cn}}
 
मुगलों, मराठों व सीखोराजपूतों से गठबंधन का शिकार हुए बिना ही सूरजमल ने अपनी धाक स्थापित की। घनघोर संकटों की स्थितियों में भी राजनीतिक तथा सैनिक दृष्टि से पथभ्रांत होने से बचता रहा। बहुत कम विकल्प होने के बावजूद उसने कभी गलत या कमजोर चाल नहीं चली। उसने यत्न किया कि संघर्ष का पथ अपनाने से पहले सब शांतिपूर्ण उपायों को अवश्य आज़माया जाए।{{cn}}
 
नवजात गुर्जरजाट राज्य की रक्षा करने और उसे सुरक्षित बनाए रखने के लिए उसने साहस तथा सूझबूझ का परिचय दिया।{{cn}}
 
== शक्ति का उदय ==
महाराजा सूरजमल राजनीतिकुशल, दूरदर्शी, सुन्दर, सुडौल और स्वस्थ थे। उन्होने [[जयपुर]] के [[महाराजा जयसिंह]] से भी दोस्ती बना ली थी। [[२१ सितम्बर]] १७४३ को जयसिंह की मौत हो गई और उसके तुरन्त बाद उसके बेटों [[ईश्वरी सिंह]] और माधोसिंह में गद्दी के लिये झगड़ा हुआ। महाराजा सूरजमल बड़े बेटे ईश्वरी सिंह के पक्ष में थे जबकि [[उदयपुर]] के महाराणा जगत सिंह, माधोसिंह के पक्ष में थे। बाद में [[जहाजपुर]] में दोनों भाईयों में युद्ध हुआ और मार्च [[१७४७]] में ईश्वरी सिंह की जीत हुई। एक साल बाद मई [[१७४८]] में [[पेशवा]]ओं ने ईश्वरी सिंह पर दबाव डाला कि वो माधो सिंह को चार [[परगना]] सौंप दे। फिर [[मराठा|मराठे]], सिसोदिया, राठौड़ वगैरा सात राजाओं की फौजें माधोसिंह के साथ हो गई और ईश्वरीसिंह अकेला पड़ गये।
सीखो राजपूत जाट वगैरा सात राजाओं की फौजें माधोसिंह के साथ हो गई और ईश्वरीसिंह अकेला पड़ गये।
 
मई १७५३ में महाराजा सूरजमल ने फिरोजशाह कोटला पर कब्जा कर लिया। दिल्ली के नवाब गाजी-उद-दीन ने फिर मराठों को सूरजमल के खिलाफ भड़काया और फिर मराठों ने जनवरी [[१७५४]] से मई १७५४ तक भरतपुर जिले में सूरजमल के कुम्हेर किले को घेरे रखा। मराठे किले पर कब्जा नहीं पर पाए और उस लड़ाई में [[मल्हारराव होल्कर]] का बेटा खांडे राव होल्कर मारा गया। मराठों ने सूरजमल की जान लेने की ठान ली थी पर [[महारानी किशोरी]] ने सिंधियाओं की मदद से मराठाओं और सूरजमल में संधि करवा दी।
 
वेंदेल के अनुसार जर्जर मुगल-सत्ता की इसी कालावधि में [[जाट]]-शक्ति उत्तरी भारत में प्रबल शक्ति के रूप में उभरकर सामने आई। [[सवाई जयसिंह]] की मृत्यु के बाद सन् १७४८ के उत्तराधिकार युद्ध में मराठों और राजपूतों सहित सात राजाओं की शक्ति के विरुद्ध कमजोर परन्तु सही पक्ष को विजयश्री दिलाकर सूरजमल ने गुर्जरजाट-शक्ति की श्रेष्ठता सिद्ध की। उसी समय मुगलों का कोई भी अभियान ऐसा नहीं था जिसमें गुर्जरजाट-शक्ति को सहयोग के लिए आमंत्रित न किया गया हो। वजीर सफदरजंग तो पूर्णरूप से अपने मित्र सूरजमल की शक्ति पर अवलम्बित था। अपदस्थ वजीर सफदरजंग के शत्रु मीरबख्शी गाजीउद्दीन खां के नेतृत्व में मुगल-राजपूतों की सम्मिलित शक्ति सन् 1754 में सूरजमल के छोटे किले [[कुम्हेर]] तक को भी नहीं जीत पाई। सन् 1757 में नजीबुद्दौला द्वारा आमंत्रित अब्दाली भी अपने अमानवीय नरसंहार से सूरजमल की शक्ति को ध्वस्त नहीं कर सका। देशद्रोही नजीब ने उस समय वजीर गाजीउद्दीन खां और मराठों के कोप से बचने के लिए अब्दाली को हिन्दुस्तान पर आक्रमण करने के लिए सन् 1759 में पुनः आमंत्रित किया था। पानीपत के अंतिम युद्ध से पूर्व बरारी घाट के युद्ध में मराठों की प्रथम पराजय के बाद सूरजमल के कट्टर शत्रु वजीर गाजीउद्दीनखां ने भी भागकर जाटों के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया था। वेंदेल के अनुसार 'मुगल अहंकार की इतनी कठोर और इतनी सटीक पराजय इससे पहले कभी नहीं हुई थी'। वस्तुतः मुगल सत्ता का गर्वीला और भयावह दैत्य धराशायी हो चुका था जिसके अवशेषों पर महाराजा सूरजमल के नेतृत्व में विलास और आडंबर से दूर, कर्मण्य, शौर्यपरायण, निर्बल की सहायक, शरणागत की रक्षा, प्रजावत्सल, हिन्दू अखंडता की प्रतीक, राष्ट्रवादी गुर्जरजाट-सत्ता की स्थापना हुई।<ref>Excerpts from book "Hindustan mein Jat-Satta" (page 65) - edited by Dr. Jean Deloche (French) and Dr. Vir Singh (Hindi). Published by Radhakrishan Prakashan Pvt. Ltd. G-17, Jagatpuri, Delhi-110051.</ref>
 
== मराठों से मतभेद ==