"कश्मीरी भाषा": अवतरणों में अंतर

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==इतिहास==
'कश्मीरी' शब्द का उपयोग इस भाषा के रूप में सबसे पहले अमीर खुसरो ने १३वीं13वीं शताब्दी में किया था। परन्तु कश्मीर में १७वीं17वीं शताब्दी तक इसे देशभाषा या भाषा के नाम से ही जाना जाता था। अन्य प्रान्तों या स्थानों के लोग इसे कश्मीरी कहते थे जिसे बाद में कश्मीरियों ने भी अपना लिया। इस भाषा को '''काशुर''' भी कहते हैं।
 
तेरहवीं शताब्दी के शितिकण्ठ की महानयप्रकाश में इस भाषा की बानगी मिलती है जिसे उस समय सर्वगोचर देशभाषा कहा जाता था। वह उस समय [[प्राकृत]] की तुलना में [[अपभ्रंश]] के अधिक निकट थी। चौदहवीं शताब्दी में [[ललद्यद]] की वाणी में कश्मीरी भाषा का लालित्य देखने को मिलता है। [[शैव]] [[सिद्ध|सिद्धों]] ने इस भाषा का उपयोग अपने [[तन्त्र साहित्य]] में किया जिसके बाद यह धीरे-धीरे साहित्य की भी भाषा बनती चली गयी।
 
कश्मीरी भाषा लिखने के लिए [[शारदा लिपि]] का उपयोग दसवीं शताब्दी के आसपास किया गया था। चौदहवीं शताब्दी में [[फारसी]] के कश्मीर की राजभाषा बनने के पहले कश्मीरी [[शारदा लिपि]] में लिखी जाती थी। परन्तु उसके बाद फारसी लिपि में भी कश्मीरी लिखी जाने लगी। पौराणिक कश्मीरी लिपि को केवल शारदा में लिखा गया है<ref>http://www.univarta.com/news/regional/story/176976.html</ref>। शारदा भाषा लिखने का तरीका स्वदेशी है, जो मूल [[ब्राह्मी लिपि|ब्राह्मी]] से विकसित हुआ था। विद्वान, शासक और हिंदूहिन्दू, मुस्लिम, बौद्ध आदि जैसे सभी धर्मों के लोग शारदा लिपि में लिखते थे। लालदा, रुपा भवानी, नंदनन्द ऋषि और अन्य भक्ति कविता शारदा लिपि में ही लिखी गई थीं और अभी भी पुस्तकालय में इन्हे पढ़ा जा सकता हैं। इस लिपि का इस्तेमाल कश्मीरी पंडितोंपण्डितों द्वारा जन्म प्रमाणपत्र बनाने के लिए भी किया जाता है।
 
==वर्त्तमान स्वरुप ==