"गरुड़ पुराण": अवतरणों में अंतर

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महर्षि कश्यप के पुत्र पक्षीराज [[गरुड़]] को भगवान विष्णु का वाहन कहा गया है। एक बार गरुड़ ने भगवान विष्णु से मृत्यु के बाद प्राणियों की स्थिति, जीव की यमलोक-यात्रा, विभिन्न कर्मों से प्राप्त होने वाले नरकों, योनियों तथा पापियों की दुर्गति से संबंधित अनेक गूढ़ एवं रहस्ययुक्त प्रश्न पूछे। उस समय भगवान विष्णु ने गरुड़ की जिज्ञासा शान्त करते हुए उन्हें जो ज्ञानमय उपदेश दिया था, उसी उपदेश का इस पुराण में विस्तृत विवेचन किया गया है। गरुड़ के माध्यम से ही भगवान विष्णु के श्रीमुख से मृत्यु के उपरान्त के गूढ़ तथा परम कल्याणकारी वचन प्रकट हुए थे, इसलिए इस पुराण को ‘गरुड़ पुराण’ कहा गया है। श्री विष्णु द्वारा प्रतिपादित यह पुराण मुख्यतः वैष्णव पुराण है। इस पुराण को 'मुख्य गारुड़ी विद्या' भी कहा गया है। इस पुराण का ज्ञान सर्वप्रथम ब्रह्माजी ने महर्षि वेद व्यास को प्रदान किया था। तत्पश्चात् व्यासजी ने अपने शिष्य सूतजी को तथा सूतजी ने नैमिषारण्य में शौनकादि ऋषि-मुनियों को प्रदान किया था।
 
===पूर्वखण्ड===
इस पुराणखण्ड को आचार खण्ड भी कहते हैं। इस खण्ड में सबसे पहले पुराण को आरम्भ करने का प्रश्न किया गया है, फ़िरफिर संक्षेप से [[सृष्टि]] का वर्णन है। इसके बाद सूर्य आदि की पूजा, पूजा की विधि, दीक्षा विधि, श्राद्ध पूजा नवव्यूह की पूजा विधि, वैष्णव-पंजर, योगाध्याय, विष्णुसहस्त्रनाम कीर्तन, विष्णु ध्यान, सूर्य पूजा, मृत्युंजय पूजा, माला मन्त्र, शिवार्चा गोपालपूजा, त्रैलोक्यमोहन, श्रीधर पूजा, विष्णु-अर्चा पंचतत्व-अर्चा, चक्रार्चा, देवपूजा, न्यास आदि संध्या उपासना दुर्गार्चन, सुरार्चन, महेश्वर पूजा, पवित्रोपण पूजन, मूर्ति-ध्यान, वास्तुमान प्रासाद लक्षण, सर्वदेव-प्रतिष्ठा पृथक-पूजा-विधि, अष्टांगयोग, दानधर्म, प्रायश्चित-विधि, द्वीपेश्वरों और नरकों का वर्णन, सूर्यव्यूह, ज्योतिष, सामुद्रिकशास्त्र, स्वरज्ञान, नूतन-रत्न-परीक्षा, तीर्थ-महात्म्य, गयाधाम का महात्म्य, मन्वन्तर वर्णन, पितरों का उपाख्यान, वर्णधर्म, द्रव्यशुद्धि समर्पण, श्राद्धकर्म, विनायकपूजा, ग्रहयज्ञ आश्रम, जननाशौच, प्रेतशुद्धि, नीतिशास्त्र, व्रतकथायें, सूर्यवंश, सोमवंश, श्रीहरि-अवतार-कथा, रामायण, हरिवंश, भारताख्यान, आयुर्वेदनिदान चिकित्सा द्रव्यगुण निरूपण, रोगनाशाक विष्णुकवच, गरुणकवच, त्रैपुर-मंत्र, प्रश्नचूणामणि, अश्वायुर्वेदकीर्तन, औषधियों के नाम का कीर्तन, व्याकरण का ऊहापोह, छन्दशास्त्र, सदाचार, स्नानविधि, तर्पण, बलिवैश्वदेव, संध्या, पार्णवकर्म, नित्यश्राद्ध, सपिण्डन, धर्मसार, पापों का प्रायश्चित, प्रतिसंक्रम, युगधर्म, कर्मफ़ल योगशास्त्र विष्णुभक्ति श्रीहरि को नमस्कार करने का फ़ल, विष्णुमहिमा, नृसिंहस्तोत्र, विष्णवर्चनस्तोत्र, वेदान्त और सांख्य का सिद्धान्त, ब्रह्मज्ञान, आत्मानन्द, गीतासार आदि का वर्णन है।
 
अध्याय 1 पहले भाग में भगवान विष्णु की भक्ति की विस्तृत विवेचन किया गया है। इसमें भक्ति ज्ञान, वैराग्य, सदाचार एवं निष्काम कर्म की महिमा, यज्ञ, दान, ताप, तीर्थसेवन, देव पूजन, आदि वर्णन है। इसके साथ इसमे व्याकरण, छंद, ज्योतिष , आयुर्वेद, रत्न सार , नीति सार का उल्लेख है।
 
===उत्तरखण्ड===
इस खण्ड को प्रेतकल्प भी कहते हैं। इसमें [[मृत्यु]] का स्वरूप, मरणासन्न व्यक्ति की अवस्था, तथा उनके कल्याण के लिए अंतिम समय में किए जाने वाले क्रिया-कृत्य का विधान है। इसमें भगवान विष्णु ने गरुण को यह सब भी बताया है कि मरते समय एवं मरने के तुरन्त बाद मनुष्य की क्या गति होती है और उसका किस प्रकार की योनियों में जन्म होता है।
 
गरुड़ पुराण के अनुसार जिस समय मनुष्य की मृत्यु होने वाली होती है, उस समय वह बोलने का यत्न करता है लेकिन बोल नहीं पाता। कुछ समय में उसकी बोलने, सुनने आदि की शक्ति नष्ट हो जाती हैं। उस समय शरीर से अंगूठे के बराबर आत्मा निकलती है, जिसे यमदूत पकड़ यमलोक ले जाते हैं। यमराज के दूत आत्मा को यमलोक तक ले जाते हुए डराते हैं और उसे नरक में मिलने वाले दुखों के बारे में बताते हैं। यमदूतों की ऐसी बातें सुनकर आत्मा जोर-जोर से रोने लगती है। यमलोक तक जाने का रास्ता बड़ा ही कठिन माना जाता है। जब जीवात्मा तपती हवा और गर्म बालू पर चल नहीं पाती और भूख-प्यास से व्याकुल हो जाती है, तब यमदूत उसकी पीठ पर चाबुक मारते हुए उसे आगे बढ़ने के लिए कहते हैं। वह आत्मा जगह-जगह गिरती है और कभी बेहोश हो जाती है। फिर वो उठ कर आगे की ओर बढ़ने लगती है। इस प्रकार यमदूत जीवात्मा को यमलोक ले जाते हैं।
 
इसके बाद उस आत्मा को उसके कर्मों के हिसाब से फल देना निश्चित होता है। इसके बाद वह जीवात्मा यमराज की आज्ञा से फिर से अपने घर आती है। इस पुराण में बताया गया है कि घर आकर वह जीवात्मा अपने शरीर में फिर से प्रवेश करना चाहती है लेकिन यमदूत उसे अपने बंधन से मुक्त नहीं करते और भूख-प्यास के कारण आत्मा रोने लगती है। इसके बाद जब उस आत्मा के पुत्र आदि परिजन अगर पिंडदान नहीं देते तो वह प्रेत बन जाती है और सुनसान जंगलों में लंबे समय तक भटकती रहती है। गरुड़ पुराण के अनुसार, मनुष्य की मृत्यु के बाद 10 दिन तक पिंडदान अवश्य करना चाहिए।
 
यमदूतों द्वारा तेरहवें दिन फिर से आत्मा को पकड़ लिया जाता है। इसके बाद वह भूख-प्यास से तड़पती 47 दिन तक लगातार चलकर यमलोक पहुंचती है। गरुड़ पुराण अनुसार बुरे कर्म करने वाले लोगों को नर्क में कड़ी सजा दी जाती है, जैसे लोहे के जलते हुए तीर से इन्हें बींधा जाता है। लोहे के नुकीले तीर में पाप करने वालों को पिरोया जाता है। कई आत्माओं को लोहे की बड़ी चट्टान के नीचे दबाकर सजा दी जाती है। किस आत्मा को क्या सजा मिलनी है ये उसके कर्म निश्चित करते है।
 
== सन्दर्भ ==