"इस्लाम का इतिहास": अवतरणों में अंतर

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{{इस्लाम}}
 
मुहम्मद साहब का जन्म 570 ईस्वी में [[मक्का]] में हुआ था। उस समय के बहुत सारे अरब [[अल्लाह]] के साथ-साथ उसकी तीन बेटियों की भी पूजा करते थे। ये देवियां थीं: [[अल-लात]],<ref>{{cite web|url=https://satyagrah.scroll.in/article/1800/why-islam-forbids-picture|title=इस्लाम में तस्वीर और मूर्ति की मनाही अगर है तो क्यों है?}}</ref> मनात और अल-उज्ज़ा।<ref>{{cite web|url=https://www.thelallantop.com/tehkhana/history-of-islam-story-of-three-goddesses-who-were-considered-as-allahs-daughters/|title=अरब की तीन देवियों की कहानी, जिन्हें अल्लाह की बेटियां माना जाता था}}</ref> इन तीनों देवियों का मंदिर मक्का के आस-पास ही स्थित था और तीनों की काबा के भीतर भी पूजा होती थी। सारे अरब के लोग इन तीनों देवियों कीको अल्लाह के बेटी या मलाइका मानते थे जो इन्हें अल्लाह से नज़दीक करती है और इनकी पूजा करते थे। लगभग 613 इस्वी के आसपास मुहम्मद साहब ने लोगों को अपने ज्ञान का उपदेशा देना आरंभ किया था। इसी घटना का इस्लाम का आरंभ कहा जाता है। हालाँकि इस समय तक इसको एक नए धर्म के रूप में नहीं देखा गया था। परवर्ती वर्षों में मुहम्म्द साहब स्० के अनुयायियों को मक्का के लोगों द्वारा विरोध तथा मुहम्म्द साहब के मदीना प्रस्थान जिसे ''हिजरत'' नाम से जाना जाता है मदीना से ही इस्लाम को एक धार्मिक सम्प्रदाय माना गया। मुहम्मद के जीवन काल में और उसके बाद जिन-जिन प्रमुख लोगों ने अपने आपको पैगंबर घोषित कर रखा था वो थे, मुसलमा,<ref>{{cite web|url=https://www.thelallantop.com/tehkhana/history-of-islam-story-of-musalma-who-declared-himself-prophet-before-the-prophet-muhammad/|title=पैगंबर मुहम्मद के वक़्त का वो दूसरा पैगंबर, जो काबे की तरफ मुंह कर के नमाज़ पढ़ने को मूर्तिपूजा कहता था}}</ref> तुलैहा, अल-अस्वद, साफ़ इब्न सैय्यद,<ref>{{cite web|url=https://www.thelallantop.com/tehkhana/history-of-islam-story-of-saf-ibn-sayyed-and-his-social-boycott-who-also-declared-himself-as-prophet/|title=15 साल का वो स्वघोषित पैगंबर, जिसको बहिष्कार की मार मारी गई}}</ref> और [[सज़ाह]]।<ref>{{cite web|url=https://www.thelallantop.com/tehkhana/history-of-islam-story-of-those-people-who-declared-themselves-as-prophets-before-and-after-prophet-muhammad/|title=पैगंबर मुहम्मद के वक़्त और भी कई लोगों ने पैगंबरी पर दावा कर रखा था}}</ref>
 
अगले कुछ वर्षों में कई प्रबुद्ध लोग मुहम्मद स्० (पैगम्बर नाम से भी ज्ञात) के अनुयायी बने। उनके अनुयायियों के प्रभाव में आकर भी कई लोग मुसलमान बने। इसके बाद मुहम्मद साहब ने मक्का वापसी की और बिना युद्ध किए मक्काह फ़तह किया और मक्का के सारे विरोधियों को माफ़ कर दिया गया। इस माफ़ी की घटना के बाद मक्का के सभी लोग इस्लाम में परिवर्तित हुए। पर पयम्बर (या पैगम्बर मुहम्मद) को कई विरोधों और नकारात्मक परिस्थितियों का सामना करना पड़ा पर उन्होंने हर नकारात्मकता से सकारात्मकता को निचोड़ लिया जिसके कारण उन्होंने जीवन के हर क्षेत्र में जीत हासिल की।