"ऊदल": अवतरणों में अंतर

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[[File:MAHOBA, U.P. - allha.preview.jpg|thumb|महोबा के वीर योद्धा ऊदल की प्रतिमा का चित्र]]
मुगलों को अपनी सैकड़ो बेटियां बेचने वाले मुगल पूत समुदाय, इस मुगल पूत समुदाय ने भारत में इस्लाम बसाया,
'''ऊदल''' [[बुन्देलखण्ड]] (महोबा) के एक वीर राजपूत<ref>{{cite book |url=https://books.google.co.in/books?id=ZOPUZo4fNLAC&pg=PA19&dq=banafar+rajput&hl=en&sa=X&ved=2ahUKEwiCic-c9pfsAhWKzTgGHdKSDTUQ6AEwAXoECAEQAg#v=onepage&q=banafar%20rajput&f=false |title=Aalha khand |first=Asha |last=Gupta |authorlink=Asha Gupta |publisher=Vani Prakashan |year=1999 |page=19 |access-date=3 अक्टूबर 2020 |archive-url=https://web.archive.org/web/20200603035945/https://books.google.com/books?id=MMFdosx0PokC |archive-date=3 अक्टूबर 2020 |url-status=live }} </ref> योद्धा थे जिनकी वीरता की कहानी आज भी उत्तर-भारत के गाँव-गाँव में गायी जाती है। [[जगनिक]] ने [[आल्ह-खण्ड]] नामक एक काव्य रचा था उसमें इन वीरों की गाथा वर्णित है।<ref>{{Cite book |last=मिश्र |first=पं० ललिता प्रसाद|title=आल्हखण्ड |language= |edition=15 |year=[[2007]] |publisher=तेजकुमार बुक डिपो (प्रा०) लि० |location=पोस्ट बॉक्स 85 [[लखनऊ]] 226001 |page=1-11 (महोबे का इतिहास)}}</ref>
 
इस मुगल पूत समुदाय का खुद का कोई इतिहास नहीं हे, इसलिए ये यादव यदुवंशियों का इतिहास चुराने की कोशिश कर रहा है, सुनो मुगल पुत्रो अब अगर यदुवंश के इतिहास को चुराने की कोशिश की तो सुप्रीम कोर्ट में खड़ा करके नंगा कर दिए जाओगे, जितना भी इतिहास चुराया हे सब निकल जाएगा वहा, फिर कहोगे हमारा असली बाप कोन हे
 
मुगल पूत लवडे हे
 
[[कालिंजर]] तथा [[महोबा]] के चन्द्रवंशी शासक [[परमर्दिदेव]] थे। [[आल्ह-खण्ड]] के रचयिता जगनिक इन्हीं के दरबारी कवि थे। इन्हें राजा [[परमाल]] भी कहा जाता है। आल्हा लोकगाथा के प्रसिद्ध वीर नायक [[आल्हा]] और ऊदल इन्हीं के दरबार के दो वीर सामन्त थे जिन्होंने बहादुरी के साथ बावन लड़ाइयों में भाग लिया था। ऊदल आल्हा का सगा छोटा भाई था परन्तु आल्हा से अधिक बहादुर था। बावन लड़ाइयों में से तेइस का नेतृत्व अकेले ऊदल ने ही किया था। महोबा में ऊदल की प्रतिमा स्थापित है जिसका चित्र यहाँ दिया जा रहा है।
 
पं० ललिता प्रसाद मिश्र ने अपने ग्रन्थ '''आल्हखण्ड''' की भूमिका में आल्हा को [[युधिष्ठिर]] और ऊदल को [[भीम]] का साक्षात [[अवतार]] बताते हुए लिखा है -
''"यह दोनों वीर अवतारी होने के कारण अतुल पराक्रमी थे। ये प्राय: १२वीं विक्रमीय शताब्दी में पैदा हुए और १३वीं शताब्दी के पुर्वार्द्ध तक अमानुषी पराक्रम दिखाते हुए वीरगति को प्राप्त हो गये। वह शताब्दी वीरों की सदी कही जा सकती है और उस समय की अलौकिक वीरगाथाओं को तब से गाते हम लोग चले आते हैं। आज भी कायर तक उन्हें (आल्हा) सुनकर जोश में भर अनेकों साहस के काम कर डालते हैं। [[प्रथम विश्वयुद्ध|यूरोपीय महायुद्ध]] में सैनिकों को रणमत्त करने के लिये ब्रिटिश गवर्नमेण्ट को भी इस (आल्हखण्ड) का सहारा लेना पड़ा था।"''<ref>{{Cite book |last=मिश्र |first=पं० ललिता प्रसाद|title=आल्हखण्ड |language= |edition=15 |year=[[2007]] |publisher=तेजकुमार बुक डिपो (प्रा०) लि० |location=पोस्ट बॉक्स 85 [[लखनऊ]] 226001 |page=1 (भूमिका)}}</ref>
 
[[आल्हा (गायन) | आल्हा]] छन्द में लिखी आल्हखण्ड की ये पंक्तियाँ तो आज भी नौजवानों में जोश भर देती हैं:
 
''"बारह बरस लौ [[कुत्ता|कूकर]] जीवै, अरु सोरह लौ जियै [[सियार]]। बरस अठारह [[क्षत्रिय|क्षत्री]] जीवै, आगे जीवै को धिक्कार॥"''<ref>{{Cite book |last=मिश्र |first=पं० ललिता प्रसाद|title=आल्हखण्ड |language= |edition=15 |year=[[2007]] |publisher=तेजकुमार बुक डिपो (प्रा०) लि० |location=पोस्ट बॉक्स 85 [[लखनऊ]] 226001 |pages=614}}</ref>
 
== सन्दर्भ ==
"https://hi.wikipedia.org/wiki/ऊदल" से प्राप्त