"मूर्तिपूजा": अवतरणों में अंतर

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== '''मूर्तिपूजा''' का शाब्दिक अर्थ है- [[मूर्ति]] की [[पूजा]] करना। इसका व्यापक अर्थ है- किसी मूर्ति, चित्र, प्रतिमा या प्रतीक पर श्रद्धा रखना। ==
 
== '''मूर्तिपूजा''' का शाब्दिक अर्थ है- [[मूर्ति]] की [[पूजा]] करना। इसका व्यापक अर्थ है- किसी मूर्ति, चित्र, प्रतिमा या प्रतीक पर श्रद्धा रखना। ==
श्रद्धा या पूजा के विचारों को दर्शाने के लिए किसी भी आइकन या छवि के इस्तेमाल के विरोध को एनीकोनिज़्म कहा जाता है। [9] पूजा के प्रतीक के रूप में मूर्तियों और छवियों को नष्ट करना इकोनोक्लैजम कहा जाता है, और यह धार्मिक समूहों के बीच हिंसा के साथ रहा है, जो मूर्ति पूजा को मना करते हैं और जिन्होंने पूजा के लिए चिन्ह, चित्र और मूर्तियों को स्वीकार किया है। मूर्ति पूजा की परिभाषा में अब्राहम के धर्मों में एक चुनौतीपूर्ण विषय रहा है, कुछ मुसलमानों ने क्रॉस के ईसाई उपयोग को मसीह के प्रतीक के रूप में और कुछ चर्चों में मैडोना (मैरी) के रूप में मूर्तिपूजा के रूप में माना है।
 
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- पिपलादा, वासुसुत्ता उपनिदद, एलिस बोनर एट अल द्वारा परिचय।
आर्य समाज और सत्यमहिमा धर्म जैसे औपनिवेशिक ब्रिटिश युग के दौरान स्थापित कुछ हिंदू आंदोलनों ने मूर्तिपूजा को अस्वीकार कर दिया। दिया
 
== मूर्ति पूजा क्यों गलत मानी जाती हैं ? ==
इसे आप ऐसे भी समझ सकते हे आप ही बताओ क्या आपका भगवान आपका ईश्वर आपका गॉड एक पत्थर हो सकता है जो ना किसी को फायदा पंहुचा सकता है ना किसी को नुकसान बल्कि ईश्वर तो निराकार है जिसने सारे संसार को बनाया और आप उसे छोड़र पत्थरो को पूजते हो। आप भलेही ईश्वर को मानते हो लेकिन आप किसी पत्थर की मूर्ति को ईश्वर मानकर उसकी पूजा करना, उस मूर्ति को चढ़वा चढ़ाना, दूध चढ़ाना सब अंधविश्वास है। अब आप कहोगे की ये हमारी आस्था है तो जरा सोचो की ये आस्था अन्धविश्वास नहीं है। और यहाँ बात मैं अपने मन से नहीं कह रहा सृष्टि की सबसे पुरानी पुस्तक वेद (veda) में एक निराकार ईश्वर (Formless god) की उपासना का ही विधान है ।चारों वेदों के 20589 मंत्रों में कोई ऐसा मंत्र नहीं है । जो मूर्ति पूजा (idol worship) का पक्षधर हो । और किसी भी धर्म की सत्यता उनकी पुस्तकों में ही होती है न तस्य प्रतिमाsअस्ति यस्य नाम महद्यस:। – ( यजुर्वेद अध्याय 32 , मंत्र 3 ) अर्थात : उस ईश्वर की कोई मूर्ति अर्थात् – प्रतिमा नहीं जिसका महान यश है । वेनस्त पश्यम् निहितम् गुहायाम । – ( यजुर्वेद अध्याय 32 , मंत्र 8 ) अर्थात : विद्वान पुरुष ईश्वर को अपने हृदय में देखते है । *अन्धन्तम: प्र विशन्ति येsसम्भूति मुपासते । ततो भूयsइव ते तमो यs उसम्भूत्या-रता: ।। – ( यजुर्वेद अध्याय 40 मंत्र 9 ) अर्थ – जो लोग ईश्वर के स्थान पर जड़ प्रकृति या उससे बनी मूर्तियों की पूजा उपासना करते हैं । वह लोग घोर अंधकार ( दुख ) को प्राप्त होते हैं । * यच्चक्षुषा न पश्यति येन चक्षूंषि पश्यन्ति । तदेव ब्रह्म त्वं विद्धि नेदं यदिदमुपासते ॥ - केनोपनि० ॥ – सत्यार्थ प्र० २५४ अर्थात : जो आंख से नहीं दीख पड़ता और जिस से सब आंखें देखती है । उसी को तू ईश्वर जान और उसी की उपासना कर । और जो उस से भिन्न सूर्य , विद्युत और अग्नि आदि जड़ पदार्थ (Root stuff) है उन की उपासना मत कर। *स्वधि … स: एव गोखर: ॥ – ( ब्रह्मवैवर्त्त ) अर्थात् – जो लोग धातु , पत्थर , मिट्टी आदि की मूर्तियों में परमात्मा को पाने का विश्वास तथा जल वाले स्थानों को तीर्थ समझते हैं । वे सभी मनुष्यों में बैलों का चारा ढोने वाले गधे के समान हैं । * प्रतिमा स्वअल्पबुद्धिनाम । – आचार्य चाणक्य (chanakya) ( चाणक्य नीति अध्याय 4 श्लोक 19 ) अर्थात् – मूर्ति-पूजा मूर्खो के लिए है । Idol worship is for fools. "नहीं नहीं मूर्ति-पूजा कोई सीढी या माध्यम नहीं बल्कि एक गहरी खाई है। जिसमें गिरकर मनुष्य चकनाचूर हो जाता है। जो पुन: उस खाई से निकल नहीं सकता ।" – ( दयानन्द सरस्वती स.प्र. समु. 11 में ) अब जो लोग वेद, पुराणों को नहीं मानते वो ये पढ़े * नास्तिको वेदनिन्दक: ॥ – मनु० अ० १२ अर्थात : मनु जी (manu) कहते है कि जो वेदों की निन्दा अर्थात अपमान , त्याग , विरुद्धाचरण करता है। वह नास्तिक (Atheistic) है । वेदों में मूर्ति–पूजा निषिद्ध है अर्थात् जो मूर्ति पूजता है वह वेदों को नहीं मानता । तथा “ नास्तिको वेद निन्दक: ” अर्थात् मूर्ति-पूजक नास्तिक हैं । कुछ लोग कहते है भावना में भगवान होते है । यदि ऐसा है तो मिट्टी में चीनी की भावना करके खाये तो क्या मिट्टी में मिठास का स्वाद मिलेगा ? बिलकुल नहीं ! * वेद ज्ञान बिन इन रोगों का होगा नहीं कभी निदान । कोरे भावों से दोस्तों कभी न मिलता भगवान ॥ एक पक्षी को भी पता होता है कि कोई मूरत उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकती है । वह किसी भी मूर्ति पर पेशाब कर देता है। बीट कर देता है उससे डरता नहीं है । कोई मूर्ति का शेर हमें खा नहीं सकता । कोई मूर्ति का कुत्ता काट नहीं सकता तो मनुष्य की मूर्ति मनोकामना कैसे पूरी करती है ?
 
==बौद्ध धर्म==