"नरोत्तमदास": अवतरणों में अंतर

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सम्पूर्ण जीवनी
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'''नरोत्तमदास''' [[हिन्दी]] के प्रमुख [[साहित्यकार]] थे। इनका जन्म उत्तर प्रदेश के जिला सीतापुर में तहसील सिधौली के ग्राम बाड़ी में हुआ था। [[चित्र:महाकवि नरोत्तम दास.jpg |thumb|right|200px|महाकवि नरोत्तमदास]]
 
'महाकवि नरोत्तमदास' की- सम्पूर्णअभिषेक जानकारीशुक्ला
 
हिन्दी साहित्य इतना विस्तृत और अनन्त है कि इसमे ज्ञान की पराकाष्ठा और अनन्त गूढ़ता का पार पाना सम्भव ही नही लगता है किन्तु हिन्दी साहित्य में ऐसे लोग विरले ही हैं जिन्होंने मात्र एक या दो रचनाओं के आधार पर हिन्दी साहित्य में अपना स्थान सुनिश्चित किया है। एक ऐसे ही कवि हैं, जिनका एकमात्र खण्ड-काव्य ‘सुदामा चरित’ (ब्रजभाषा में) मिलता है जो हिन्दी साहित्य की अमूल्य धरोहर मानी जाती है। हम सुदामा चरित के रचयिता, ब्रजभाषा के महाकवि नरोत्तमदास जी की बात कर रहे है। नरोत्तमदास जी जन्म कान्यकुब्ज ब्राह्मण परिवार मे उत्तर प्रदेश के जिला सीतापुर में तहसील सिधौली के ग्राम बाड़ी में हुआ था। इनकी जन्म और मृत्यु तिथि विवादास्पद है, इसके सम्बन्ध मे कोई भी प्रमाणित स्त्रोत उपलब्ध नही है।
 
 
साहित्य और अन्य कुछ प्रमाणों के आधार पर अलग- अलग तिथियों के बारे मे लोग दावा करते है। विद्वानों के गहन अध्ययन और प्रमाणों के आधार पर इनका जन्म 1550 ई. और मृत्यु 1605 ई. के लगभग माना जाता है। 
 
 
'सुदामा चरित्र' के अतिरिक्त इनकी अन्य रचनाओं ‘विचार माला’ तथा ‘ध्रुव-चरित’ और ‘नाम-संकीर्तन’ के संबंध में भी जानकारियाँ मिलते हैं परन्तु इस संबंध में अब तक प्रामाणिकता का अभाव है। इनकी ‘ध्रुव-चरित’ आंशिक रूप से उपलब्ध है जिसके 28 छंद ‘रसवती’ पत्रिका में 1968 के अंक में प्रकाशित हुए। शिव सिंह सेंगर’ व ‘जार्ज ग्रियर्सन’ के मत के आधार पर सुदामा चरित का रचनाकाल सन 1582 के लगभग माना जाता है। 
 
 
सुदामा चरित रचना मे भगवान श्रीकृष्ण के परम मित्र सुदामा के चरित्र और जीवन को जीवन्त रूप मे दर्शाया गया है। इसकी पंक्तियों को पढ़ते समय सुदामा की मनोदशा और जीवन हमारी आँखों के सामने प्रकट होता प्रतीत होता है। सुदामा चरित की कुछ पंक्तियाँ आपके सम्मुख प्रकट है, इन्हे पढ़ते ही आपको बृजभाषा का आनन्द और नरोत्तम दास जी की काव्य शैली का आकलन अवश्य ही हो जायेगा। 
 
'विप्र सुदामा बसत हैं, सदा आपने धाम । 
भिक्षा करि भोजन करैं, हिये जपत हरि-नाम ।। 
ताकी घरनी पतिव्रता, गहे वेद की रीति ।
सलज सुशील, सुबुद्धि अति, पति सेवा सौं प्रीति।। 
कह्यौ सुदामा एक दिन, कृस्न हमारे मित्र । 
करत रहति उपदेस गुरु, ऐसो परम विचित्र ।।' 
 
सुदामा चरित के संबंध में आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने कहा है कि यद्यपि यह छोटा है पर इसकी रचना बहुत सरस और हृदयग्राहिणी है और कवि की भावुकता का परिचय देती है भाषा भी बहुत परिमार्जित है और व्यवस्थित है। बहुतेरे कवियों क समान अरबी के शब्द और वाक्य इसमें नहीं है। 
 
डॉ. नगेन्द्र जी द्वारा रचित  ‘रीतिकालीन कवियों की सामान्य विशेषताएँ, खण्ड -2, अध्याय- 4’ में सर्वप्रथम ‘सवैयों’ का प्रयोग करने वाले कवियों की श्रेणी में नरोत्तमदास को रखा गया है। ‘कवित्त’ (घनाक्षरी) का प्रयोग भी सबसे पहले नरोत्तमदास जी ने ही किया था। इस विधा का प्रयोग अकबर के समकालीन कवियों के द्वारा किया गया था। इसी तर्क के आधार पर कुछ लोग नरोत्तमदास को गोस्वामी तुलसीदास जी का समकालीन भी मानते है। 
 
डॉ. रामकुमार ने लिखा है कि कथा संगठन, नाटकीयता, विधान, भाव, भाषा, द्वन्द्व आदि सभी दृष्टियों से नरोत्तमदास कृत सुदामा चरित श्रेष्ठ रचना है। 
 
नरोत्तमदास कृत खण्ड काव्य 'सुदामा चरित' मध्यकालीन साहित्य की अमूल धरोहर है। इसमे मानव जीवन, व्यवहार और भावनाओं का सजीव चित्रण शान्त और करुण रस के सामजस्य से जीवन्त रूप मे प्रस्तुत किया गया है। इस खण्ड काव्य की सरलता,सहजता और माधुर्य ने ही नरोत्तम दास जी को हिन्दी साहित्य मे श्रेष्ठ स्थान प्रदान किया है। 
 
लेखक:- 
अभिषेक शुक्ला
सीतापुर,उत्तर प्रदेश
 
== जीवन ==