"शचींद्रनाथ सान्याल": अवतरणों में अंतर

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[[श्रेणी:भारतीय क्रांतिकारी]]
[[श्रेणी:भारतीय स्वतंत्रता का क्रन्तिकारी आंदोलन]]
 
'क्रांतिकारी शचीन्द्रनाथ सान्याल'- अभिषेक शुक्ला
 
इतिहास के पन्नों को जब भी पलटा जायेगा, भारत के स्वतंत्रता संघर्ष मे शामिल होकर अपने लहू से माँ भारती की शान की रक्षा करने वाले एक नये क्रांतिवीर की जीवन गाथा से हम अवश्य ही परिचित होंगे। सैकड़ों ऐसे क्रांतिकारी हैं, जिनको इतिहास से निकाल दिया जाए तो जिन बड़े चेहरों को आप जानते हैं, पूजते हैं उनका भी अस्तित्व शायद ही होता।
देश में कई साल पहले राइट टू रिकॉल का आइडिया कानपुर शहर में बैठकर कई क्रांतिकारियों के बीच बनाया था। जी हाँ, आज हम बात कर रहे है आजादी के मतवाले महान क्रांतिकारी शचीन्द्रनाथ सान्याल की।
शचीन्द्रनाथ सान्याल भारत की आज़ादी के लिए संघर्ष करने वाले प्रसिद्ध क्रांतिकारियों में से एक थे। वे राष्ट्रीय व क्रांतिकारी आंदोलनों में सक्रिय भागीदार होने के साथ ही क्रान्तिकारियों की नई पीढ़ी के प्रतिनिधि भी थे। उनका जन्म 1893 में वाराणसी में हुआ था।शचीन्द्रनाथ सान्याल के पिता का नाम हरिनाथ सान्याल और माता का नाम वासिनी देवी था। शचीन्द्रनाथ के अन्य भाइयों के नाम रविन्द्रनाथ, जितेन्द्रनाथ और भूपेन्द्रनाथ थे।
शचीन्द्रनाथ का शुरुआती जीवन देश की राष्ट्रवादी आंदोलनों की परिस्थितियों में बीता। 1905 में "बंगाल विभाजन" के बाद खड़ी हुई ब्रिटिश साम्राज्यवाद विरोधी लहर ने उस समय के बच्चों और नवयुवकों को राष्ट्रवाद की शिक्षा व प्रेरणा देने का महान् कार्य किया। शचीन्द्रनाथ सान्याल और उनके पूरे परिवार पर इसका प्रभाव पड़ा। इसके फलस्वरूप ही 'चापेकर' बन्धुओं की तरह 'सान्याल बन्धु' भी साम्राज्यवाद विरोधी राष्ट्रवादी धारा के साथ दृढ़ता के साथ खड़े रहे। शचीन्द्रनाथ के पिता की मृत्यु 1908 में हो गयी। इस समय उनकी आयु मात्र पन्द्रह साल थी। इसके वावजूद शचीन्द्रनाथ न केवल देश की स्वतंत्रता के लिए प्रतिबद्ध होकर स्वयं आगे बढ़ते रहे अपितु पिता के समान ही अपने तीनों भाइयों को भी इसी मार्ग पर ले चलने में सफल रहे।शचीन्द्रनाथ ने वर्ष 1923 में "हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन" की स्थापना की थी।
इनके पिता ने अपने सभी पुत्रों को बंगाल की क्रांतिकारी संस्था 'अनुशीलन समिति' के कार्यों में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया था। इसी का परिणाम था कि शचीन्द्रनाथ के बड़े भाई रविन्द्रनाथ सान्याल 'बनारस षड़यंत्र केस' में नजरबन्द रहे। छोटे भाई भूपेन्द्रनाथ सान्याल को 'काकोरी काण्ड' में पाँच वर्ष क़ैद की सज़ा हुई और तीसरे भाई जितेन्द्रनाथ 1929 के 'लाहौर षड़यंत्र केस' में भगत सिंह आदि के साथ अभियुक्त थे।
 
इनके द्वारा खड़े किए गये "हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन" को ही भगत सिंह एवं अन्य साथियों ने "हिन्दुस्तान समाजवादी प्रजातांत्रिक संघ" के रूप में विकसित किया। शचीन्द्रनाथ सान्याल को जीवन में दो बार 'काला पानी' की सज़ा मिली। उन्होंने 'हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन' के गठन के साथ ही देश बन्धुओं के नाम एक अपील जारी की थी, जिसमें उन्होंने भारत के पूर्ण स्वतंत्रता के लक्ष्य के साथ और सम्पूर्ण एशिया के महासंघ बनाने की परिकल्पना भी प्रस्तुत की थी।
इन्होने रासबिहारी बोस, दामोदर सावरकर, चंद्रशेखर आजाद और भगत सिंह के साथ काम किया।
इन्हे बीस साल का कारावास भी हुआ और दो बार काला पानी की सजा दी गयी।
शचीन्द्रनाथ सान्याल की असाधारण कर्म शक्ति, सरलता, तत्परता और तीव्रता को भांप कर ही रासबिहारी बोस ने उन्हें "लट्टू" का उपनाम दे दिया। शचीन्द्रनाथ में कूट-कूट कर भरी विद्रोह की भावनाओं के साथ अदम्य क्रियाशीलता के चलते व बम बनाने की निपुणता को देखते हुये उन्हें कई क्रांतिकारी साथी बारूद से भरा अनार भी कहते थे।
इनके द्वारा लिखित पुस्तक ' बन्दी जीवन' क्रांतिकारियों के लिये अनुकरणीय थी। वे सब इसे पवित्र ग्रंथ के समान पूजते थे।
क्रांतिकारी आंदोलन को बौद्धिक नेतृत्व प्रदान करना उनका विशेष कृतित्व था। उनका दृढ़ मत था कि विशिष्ट दार्शनिक सिद्धांत के बिना कोई आंदोलन सफल नहीं हो सकता। 'विचारविनिमय' नामक अपनी पुस्तक में उन्होंने अपना दार्शनिक दृष्टिकोण किसी अंश तक प्रस्तुत किया है। 'साहित्य, समाज और धर्म' में भी उनके अपने विशेष दार्शनिक दृष्टिकोण का ओर प्रबल धर्मानुराण का भी परिचय मिलता है।
कैद मे अनेक यातनओं के कारण ये क्षय रोग से पीड़ित हो गये थे। जेल से छूटने के बाद ये गोरखपुर आकर अपने भाई के वहाँ रहने लगे। जहाँ 7 फ़रवरी 1942 को इस महान क्रन्तिकारी ने अपनी अन्तिम सांस ली।
अत्यन्त ही खेद की बात है कि जिन क्रांतिकारियों ने देश की आज़ादी के लिये अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया वह अपने देश मे ही गुमनाम हो गये।
इससे भी बड़ी विडम्बना यह है कि काकोरी कांड के साजिशकर्ता और भगत सिंह के गुरु क्रांतिकारी शचींद्रनाथ सान्याल की गोरखपुर स्थित जिस दाउदपुर मोहल्ले में सांसों की डोर टूटी, वे वहाँ भी गुमनाम हैं। मै अपनी कलम से निकले हुये शब्दों से क्रांतिकारी शचीन्द्रनाथ सान्याल की गाथा लिखते हुये उन्हे नमन करता हूँ।
शचीन्द्रनाथ सान्याल जी ने स्वयं लिखा है कि "जब मैं बालक ही था, तभी मैंने संकल्प कर लिया था कि भारतवर्ष को  स्वाधीन किया जाना है और इसके लिए मुझे  सामरिक जीवन व्यतीत करना है। इसी उद्देश्य को अपनाकर शचीन्द्र नाथ सान्याल वैचारिक एवं व्यवहारिक  जीवन में निरंतर आगे बढ़ते रहे।
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अभिषेक शुक्ला 'सीतापुर'