"नरोत्तमदास": अवतरणों में अंतर

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सुदामा चरित रचना मे भगवान श्रीकृष्ण के परम मित्र सुदामा के चरित्र और जीवन को जीवन्त रूप मे दर्शाया गया है। इसकी पंक्तियों को पढ़ते समय सुदामा की मनोदशा और जीवन हमारी आँखों के सामने प्रकट होता प्रतीत होता है। सुदामा चरित की कुछ पंक्तियाँ आपके सम्मुख प्रकट है, इन्हे पढ़ते ही आपको बृजभाषा का आनन्द और नरोत्तम दास जी की काव्य शैली का आकलन अवश्य ही हो जायेगा। 
 
'विप्र सुदामा बसत हैं, सदा आपने धाम । 
 
भिक्षा करि भोजन करैं, हिये जपत हरि-नाम ।। 
 
ताकी घरनी पतिव्रता, गहे वेद की रीति ।
 
सलज सुशील, सुबुद्धि अति, पति सेवा सौं प्रीति।। 
 
कह्यौ सुदामा एक दिन, कृस्न हमारे मित्र । 
 
करत रहति उपदेस गुरु, ऐसो परम विचित्र ।।' 
 
सुदामा चरित के संबंध में आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने कहा है कि यद्यपि यह छोटा है पर इसकी रचना बहुत सरस और हृदयग्राहिणी है और कवि की भावुकता का परिचय देती है भाषा भी बहुत परिमार्जित है और व्यवस्थित है। बहुतेरे कवियों क समान अरबी के शब्द और वाक्य इसमें नहीं है। 
 
डॉ. नगेन्द्र जी द्वारा रचित  ‘रीतिकालीन कवियों की सामान्य विशेषताएँ, खण्ड -2, अध्याय- 4’ में सर्वप्रथम ‘सवैयों’ का प्रयोग करने वाले कवियों की श्रेणी में नरोत्तमदास को रखा गया है। ‘कवित्त’ (घनाक्षरी) का प्रयोग भी सबसे पहले नरोत्तमदास जी ने ही किया था। इस विधा का प्रयोग अकबर के समकालीन कवियों के द्वारा किया गया था। इसी तर्क के आधार पर कुछ लोग नरोत्तमदास को गोस्वामी तुलसीदास जी का समकालीन भी मानते है।डॉ. रामकुमार ने लिखा है कि कथा संगठन, नाटकीयता, विधान, भाव, भाषा, द्वन्द्व आदि सभी दृष्टियों से नरोत्तमदास कृत सुदामा चरित श्रेष्ठ रचना है। 
 
डॉ. रामकुमार ने लिखा है कि कथा संगठन, नाटकीयता, विधान, भाव, भाषा, द्वन्द्व आदि सभी दृष्टियों से नरोत्तमदास कृत सुदामा चरित श्रेष्ठ रचना है। 
 
नरोत्तमदास कृत खण्ड काव्य 'सुदामा चरित' मध्यकालीन साहित्य की अमूल धरोहर है। इसमे मानव जीवन, व्यवहार और भावनाओं का सजीव चित्रण शान्त और करुण रस के सामजस्य से जीवन्त रूप मे प्रस्तुत किया गया है। इस खण्ड काव्य की सरलता,सहजता और माधुर्य ने ही नरोत्तम दास जी को हिन्दी साहित्य मे श्रेष्ठ स्थान प्रदान किया है।