"तेलुगू भाषा": अवतरणों में अंतर

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आंध्र शब्द का प्रयोग [[ऋग्वेद|ऋग्वेदीय]] [[ऐतरेय ब्राह्मण]] में मिलता है। तेलुगु शब्द का मूलरूप [[संस्कृत भाषा|संस्कृत]] में "त्रिलिंग" है। इसका तात्पर्य आंध्र प्रदेश के [[श्रीशैलम्|श्रीशैल]] के मल्लिकार्जुन लिंग, कालेश्वर और द्राक्षाराम के शिवलिंग से है। इन तीनों सीमाओं से घिरा देश त्रिलिंगदेश और यहाँ की भाषा त्रिलिंग (तेलुगु) कहलाई। <ref>{{Cite web |url=https://swarajyamag.com/culture/trilinga-desa-the-telugu-states-tryst-with-the-divine |title=Trilinga Desa: The Telugu States’ Tryst With The Divine |access-date=5 मार्च 2020 |archive-url=https://web.archive.org/web/20190413091615/https://swarajyamag.com/culture/trilinga-desa-the-telugu-states-tryst-with-the-divine |archive-date=13 अप्रैल 2019 |url-status=dead }}</ref> इस शब्द का प्रयोग तेलुगु के आदि-कवि "[[नन्नय्य भट्ट|नन्नय भट्ट]]" के [[महाभारत]] में मिलता है। यह शब्द त्रिनग शब्द से भी उत्पन्न हुआ माना जाता है। इसका आशय तीन बड़े बड़े पर्वतों की मध्य सीमा में व्याप्त इस प्रदेश से है। आंध्र जनता उत्तर दिशा से दक्षिण की ओर जब हटाई गई तो दक्षिणवासी होने के कारण इस प्रदेश और भाषा को "तेनुगु" नाम दिया गया। (तमिल भाषा में दक्षिण का नाम तेन है)। तेनुगु नाम होने का एक और कारण भी है। तेनुगु में तेने (तेने उ शहद, अगु उ जाहो) शब्द का अर्थ है शहद। यह भाषा मधुमधुर होने के कारण तेनुगु नाम से प्रसिद्ध है। यह प्रदेश "वेगिनाम" से भी ज्ञात है। "वेगि" का अर्थ है कृष्णा गोदावरी नदियों का मध्यदेश जो एक बार जल गया था। यह नाम भाषा के लिये व्यवहृत नहीं है। आंध्र एक जाति का नाम है। ऋग्वेद की कथा के अनुसार ऋषि विश्वामित्र के शाप से उनके 50 पुत्र आंध्र, [[पुलिंद]] और शबर हो गए।
 
== तेलुगुभाषा ==
अधिकांश संस्कृत शब्दों से संकलित भाषा "आंध्र" भाषा के नाम से व्यवहृत होती है। तेलुगुदेशीय शब्दों का प्राचुर्य जिस भाषा में है वह तेलुगु भाषा के नाम से प्रख्यात है। तेलुगु भाषा के विकास के संबंध में विद्वानों के दो मत हैं। डा [[चिलुकूरि नारायण राव]] के मतानुसार तेलुगु भाषा द्राविड़ परिवार की नहीं है किंतु [[प्राकृत]]जन्य है और उसका संबंध विशेषत: पैशाची भाषा से है। इसके विपरीत बिशप कार्डवेल और कोराड रामकृष्णय्य आदि विद्वानों के मत से तेलुगु भाषा का संबंध द्राविड़ परिवार से ही है। जो हो, इस का विकास दोनों प्रकार की भाषाओं के सम्मेलन से हुआ है। आजकल उपर्युक्त तीन नामों से प्रचलित इस भाषा में लगभग 75 प्रतिशत [[संस्कृत भाषा|संस्कृत]] शब्दों का सम्मिश्रण है। इसकी मधुरता का मूल कारण संस्कृत तथा तेलुगु का (मणिकांचन) संयोग ही है। पश्चिम के विद्वानों ने भी तेलुगु को "पूर्व की इतालीय भाषा" कहकर इसके माधुर्य की सराहना की है। bta do
 
== लता ==