"देवदासी": अवतरणों में अंतर

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ये ‘देवदासी’ एक हिन्दू धर्म की प्राचीन प्रथा थी।
ये ‘देवदासी’ एक हिन्दू धर्म की प्राचीन प्रथा है। भारत के कुछ क्षेत्रों में खास कर दक्षिण भारत में महिलाओं को धर्म और आस्था के नाम पर वेश्यावृत्ति के दलदल में धकेला गया। सामाजिक-पारिवारिक दबाव के चलते ये महिलाएं इस धार्मिक कुरीति का हिस्सा बनने को मजबूर हुर्इं। देवदासी प्रथा के अंतर्गत कोई भी महिला मंदिर में खुद को समर्पित करके देवता की सेवा करती थीं। देवता को खुश करने के लिए मंदिरों में नाचती थीं। इस प्रथा में शामिल महिलाओं के साथ मंदिर के पुजारियों ने यह कहकर शारीरिक संबंध बनाने शुरू कर दिए कि इससे उनके और भगवान के बीच संपर्क स्थापित होता है। धीरे-धीरे यह उनका अधिकार बन गया, जिसको सामाजिक स्वीकायर्ता भी मिल गई। उसके बाद राजाओं ने अपने महलों में देवदासियां रखने का चलन शुरू किया। मुगलकाल में, जबकि राजाओं ने महसूस किया कि इतनी संख्या में देवदासियों का पालन-पोषण करना उनके वश में नहीं है, तो देवदासियां सार्वजनिक संपत्ति बन गर्इं। कर्नाटक के 10 और आंध्र प्रदेश के 14 जिलों में यह प्रथा अब भी बदस्तूर जारी है। देवदासी प्रथा को लेकर कई गैर-सरकारी संगठन अपना विरोध दर्ज कराते रहे। सामान्य सामाजिक अवधारणा में देवदासी ऐसी स्त्रियों को कहते हैं, जिनका विवाह मंदिर या अन्य किसी धार्मिक प्रतिष्ठान से कर दिया जाता है। उनका काम मंदिरों की देखभाल तथा नृत्य तथा संगीत सीखना होता है। पहले समाज में इनका उच्च स्थान प्राप्त होता था, बाद में हालात बदतर हो गये। इन्हें मनोरंजन की एक वस्तु समझा जाने लगा। देवदासियां परंपरागत रूप से वे ब्रह्मचारी होती हैं, पर अब उन्हे पुरुषों से संभोग का अधिकार भी रहता है। यह एक अनुचित और गलत सामाजिक प्रथा है। इसका प्रचलन दक्षिण भारत में प्रधान रूप से था। बीसवीं सदी में देवदासियों की स्थिति में कुछ परिवर्तन आया। अँगरेज़ ने देवदासी प्रथा को समाप्त करने की कोशिश की तो लोगों ने इसका विरोध किया। इसलिए शायद भारतभूमि पर हुए अनेक विद्वान एवं बुद्धिजीवी जातिवाद के कट्टर विरोधी रहे है जिनमे डॉ आंबेडकर जैसे महान समाजवादी भी शामिल हैं। भारत को अपने इतिहास से बहुत कुछ सिखने की जरूरत है।
भारत के कुछ क्षेत्रों में खास कर दक्षिण भारत में महिलाओं की उनकी इच्छा अनुसार, उनकी शादी ईश्वर/देवता से की जाती थी...
 
जैसे ईसाई में कॉन्सिक्रेटेड वर्जिन होती हे ईसाई धर्म में लड़कियों की शादी जीसस(इशु मसीही) से की जाती हे ओर वो लड़कियाँ भी इशु मसीही को ही अपना पति मानती हे इन लड़कियों को कॉन्सिक्रेटेड वर्जिन कहते हे, इसी प्रकार ईसाई धर्म में नन भी होती हे जो इशु मसीही को ही अपना पति ओर सर्वेसर्वा मानती हे..
यूरोप के कई देशों में कॉन्सिक्रेटेड वर्जिन के साथ दूर व्यवहार शुरू हो गया ओर उनकी हत्याऐं होने लगी इस कारण कुछ समय तो ईसाईयों में यह कॉन्सिक्रेटेड वर्जिन प्रथा बंद हुई पर कालांतर में इसे फिर से चालु कर दिया गया, जो आज वर्तमान में भी चल रही हे इन ईसाई लड़कियों की जीसस से शादी चर्च में करवाई जाती हे ओर आज तक के आँकड़े में ईसाई धर्म की स्थापना से अब तक कॉन्सिक्रेटेड वर्जिन(जीसस की पत्नी) की संख्या लाख में हो चुकी हे ओर इन कॉन्सिक्रेटेड वर्जिन लड़कियों के अलावा नन जिन्हें हम सब सामान्य तोर पर जानते हे वो भी होती हे जो जीसस को उनका पति सर्वेसर्वा मानती हे।
 
देवदासी प्रथा:- जैसा की नाम से ही प्रतीत होता हे देवताओं की पत्नी(हिंदू धर्म में पत्नी स्वयं को पति की दासी मानती हे) भारत में प्रचलित ऐक प्रथा थी जिसमें लड़कियों की शादी मंदिर में देवताओं/ईश्वर से की जाती थी ओर फिर यह लड़कियाँ/महिलाएँ मंदिर में ही रहती थी ओर परमेश्वर की सेवा करती थी ओर मंदिर की साफ़-सफ़ाई , देख-रेख का काम करती थी ओर अन्य दर्शनार्थी की सहायता करती थी, साथ ही यह देवदासियाँ मंदिर के आस-पास के छोटे बच्चों (लड़के-लड़कियों) को नरत्य-संगीत आदि की शिक्षा देती थी ओर साथ ही धर्म , शास्त्र आदि की बातें सिखाती थी।
देवदासी ऐक सु-व्यवस्थित प्रथा थी,
 
परंतु कालांतर में कुछ भ्रष्ट बुद्धि के लोगों के द्वारा देवदासी को बुरी नज़रों से देखा जाने लगा ओर उनके साथ योन उत्पीड़न किया जाने लगा, विदेशी आक्रमणकारी जैसे मुग़ल,तुग़लक़ आदि तो यह ज़बरन देवदासी को उठा कर इनके हरम में ले जाने लगे ओर देवदासियों को संभोग की वस्तु समझ उनका योन उत्पीड़न करने लगे ओर जब ऐसे कर उनके हरम में देवदासी की संख्या बड़ जाती तो यह विदेशी आक्रमणकारी उन्हें वेश्यावर्ति में धकेल देते।
 
(हरम वो स्थान होता हे जहां यह विदेशी आक्रमणकारी ज़बरदस्ती उठा कर लाई गई अन्य धर्मों की महिलाओं को रखते ओर उनका योन शोषण करते थे)
 
इस तरह देवदासीयों के साथ जब अभद्र व्यवहार शुरू हुआ ओर यह सु-व्यवस्था , कु-व्यवस्था में बदल गई तो सम्पूर्ण भारत ओर यहाँ तक की दक्षिण भारत जहां यह प्रथा बहुताई में थी इस प्रथा को हिंदू समाज द्वारा पूर्णत: बंद कर दिया गया हाँ फिर भी यह प्रथा कुछ बहुत छोटे स्तर पर बच गई थी जिसे समाप्त करवाने में अंग्रेजो का भी साथ रहा परंतु अधिकांश तो यह प्रथा अंग्रेजो के आने से पहले या उनके भारत में शासन लागू होने से पहले ही समाप्त हो गई थी।
 
आज वर्तमान में देवदासी प्रथा पूर्ण रूप से भारत में बंद हो चुकी हे परंतु आज भी कुछ लड़कियाँ शादी ना करते हुए अपनी मर्ज़ी से स्वयं को पूर्णरूप से परमेश्वर को सोंप देती हे ओर परमेश्वर की सेवा अर्चना करती हे।
 
कुछ सु-व्यवस्थाएँ समय के साथ ओर लोगों के पापों के कारण सु-व्यवस्था से कु-व्यवस्था(कुरीति) में बदल जाती हे ओर उन्ही व्यवस्थाओं में से ऐक व्यवस्था थी यह देवदासी प्रथा ।