"अनुलोम-विलोम प्राणायाम": अवतरणों में अंतर

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अनुलोम का अर्थ होता है सीधा और विलोम का अर्थ है उल्टा। यहां पर सीधा का अर्थ है नासिका या नाक का दाहिना छिद्र और उल्टा का अर्थ है-नाक का बायां छिद्र। अर्थात '''[https://www.lifesfact.com अनुलोम-विलोम प्राणायाम]''' में नाक के दाएं छिद्र से सांस खींचते हैं, तो बायीं नाक के छिद्र से सांस बाहर निकालते है। इसी तरह यदि नाक के बाएं छिद्र से सांस खींचते है, तो नाक के दाहिने छिद्र से सांस को बाहर निकालते है। अनुलोम-विलोम प्राणायाम को कुछ योगीगण 'नाड़ी शोधक प्राणायाम' भी कहते है। उनके अनुसार इसके नियमित अभ्यास से शरीर की समस्त नाड़ियों का शोधन होता है यानी वे स्वच्छ व निरोग बनी रहती है। इस प्राणायाम के अभ्यासी को वृद्धावस्था में भी गठिया, जोड़ों का दर्द व सूजन आदि शिकायतें नहीं होतीं।
 
== विधि ==
 
- अपनी सुविधानुसार पद्मासन, सिद्धासन, स्वस्तिकासन अथवा सुखासन में बैठ जाएं। दाहिने हाथ के अंगूठे से नासिका के दाएं छिद्र को बंद कर लें और नासिका के बाएं छिद्र से 4 तक की गिनती में सांस को भरे और फिर बायीं नासिका को अंगूठे के बगल वाली दो अंगुलियों से बंद कर दें। तत्पश्चात दाहिनी नासिका से अंगूठे को हटा दें और दायीं नासिका से सांस को बाहर निकालें।
# अनुलोम विलोम प्राणायाम करने के लिए सबसे पहले '''[https://www.digitalinfohindi.com/%e0%a4%aa%e0%a4%a6%e0%a5%8d%e0%a4%ae%e0%a4%be%e0%a4%b8%e0%a4%a8/ पद्मासन] (सुखासन)''' में बैठ जाए, अपनी आंखें '''बंद''' करे और अपने हाथो को अपने घुटने पर रखे।
 
# अब '''दाहिने नथुने''' (right nostril) को दाहिने अंगूठे से बंद करें और '''बाएं नथुने''' (left nostril) के माध्यम से धीरे-धीरे श्वास लें।
- अब दायीं नासिका से ही सांस को 4 की गिनती तक भरे और दायीं नाक को बंद करके बायीं नासिका खोलकर सांस को 8 की गिनती में बाहर निकालें।
# अब अपने दाहिने अंगूठे को अपनी दाहिने नथिने से हटाकर अपनी '''मध्यमा ऊँगली की मदद से''' अपने बांये नथिने को बंद करे और दाहिने नथुने से सांस को छोड़े।  
 
# अब बांये नथुने से '''अंदर को श्वास भरे''' ,श्वास लेने के बाद अपने दांये नथुने की मदद से '''सांस को बाहर छोड़े।'''
- इस प्राणायाम को 5 से 15 मिनट तक कर सकते है।
# लगभग '''5 से 10 मिनट''' तक के लिए इस प्रक्रिया दोहराएं और रोजाना सुबह सुबह इसका अभ्यास करे।
 
== लाभ ==
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सुखासन, सिद्धासन, पद्मासन, वज्रासन में बैठें। शुरुवात और अन्त भी हमेशा बाये नथुने (नोस्टील) से ही करनी है, नाक का दाया नथुना बंद करें व बाये से लंबी सांस लें, फिर बाये को बंद करके, दाया वाले से लंबी सांस छोडें...अब दाया से लंबी सांस लें व बाये वाले से छोडें...याने यह दाया-दाया बाया-बाया यह क्रम रखना, यह प्रक्रिया १०-१५ मिनट तक दुहराएं| सास लेते समय अपना ध्यान दोनो आँखो के बीच में स्थित आज्ञा चक्र पर ध्यान एकत्रित करना चाहिए। और मन ही मन में सांस लेते समय ओउम-ओउम का जाप करते रहना चाहिए। हमारे शरीर की ७२,७२,१०,२१० सुक्ष्मादी सुक्ष्म नाडी शुद्ध हो जाती है। बायी नाडी को चन्द्र (इडा, गन्गा) नाडी, और दाई नाडी को सूर्य (पीन्गला, यमुना) नाडी केहते है। चन्द्र नाडी से थण्डी हवा अन्दर जती है और सूर्य नाडी से गरम नाडी हवा अन्दर जती है।थण्डी और गरम हवा के उपयोग से हमारे शरीर का तापमान संतुलित रेहता है। इससे हमारी रोग-प्रतिकारक शक्ती बढ जाती है।
 
* सुखासन, सिद्धासन, पद्मासन, वज्रासन में बैठें।
* इस आसन को करने के लिए सबसे उचित समय वह माना जाता हैं जब आप खाली पेट हो।
* शुरुवात और अन्त भी हमेशा बाये नथुने (नोस्टील) से ही करनी है।
* अब जमीन पर पद्मासन, सिद्धासन या वज्रासन में से किसी भी आसन की स्थिति में बैठ जाए। इसमें पद्मासन सबसे उत्तम है।
* नाक का दाया नथुना बंद करें व बाये से लंबी सांस लें।
* अब बाएं हाथ को घुटने पर टिका कर इस हाथ से चिन मुद्रा बना लें।
* फिर बाये को बंद करके, दाया वाले से लंबी सांस छोडें...
* दाहिने हाथ के अंगूठे से दाहिने नथुने को बंद करें और बाएं नथुने से धीरे - धीरे सांस लें।
* अब दाया से लंबी सांस लें व बाये वाले से छोडें...
* अब हाथ ही रिंग फिंगर से बाएं नथुने को बंद कर ले और दाहिने नथुने से धीरे-धीरे सांस छोड़ें।
* याने यह दाया-दाया बाया-बाया यह क्रम रखना, यह प्रक्रिया १०-१५ मिनट तक दुहराएं|
* अब दाहिने नथुने से सांस लेकर उसे बाएं नथुने से धीरे-धीरे छोड़ें।
* इसी तरह अनुलोम विलोम प्राणायाम का यह एक क्रम पूरा हुआ।
 
== सावधानी ==
* सास लेते समय अपना ध्यान दोनो आँखो के बीच में स्थित आज्ञा चक्र पर ध्यान एकत्रित करना चाहिए।
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== फायदे ==
* हमारे शरीर की ७२,७२,१०,२१० सुक्ष्मादी सुक्ष्म नाडी शुद्ध हो जाती है।
* हार्ट केकी ब्लाँकेज खुल जाते है।
* उच्चहाय, औरलो निम्न दोनोंदोन्हो रक्त चाप ठिक हो जायेंगे|
* आर्थराटीस, रोमेटोर आर्थराटीस, कार्टीलेज घिसनाघीसना ऐसी बीमारीओंको ठीक हो जाती है।
* टेढे लीगामेंटस सीधे हो जायेंगे|
* व्हेरीकोज व्हेनस ठीक हो जाती है।
* कोलेस्टाँल, टाँक्सीनस, आँस्कीडण्टस इसके जैसे विजतीय पदार्थ शरीर के बहार नीकल जाते है।
* सायकीक पेंशनट्स को फायदा होता है।
* किडनीकीडनी प्राकृतिकनँचरली रूप से स्वच्छस्वछ होती है, डायलेसीस करने की जरुरत नहीं पडती|
* सबसे बड़ा खतरनाक कैंसरकँन्सर तक ठीक हो जाता है।
* सभी प्रकारकी अँलार्जीयाँ मिटमीट जाती है।
* मेमरी बढाने की लीये|
* सर्दी, खाँसी, नाक, गला ठीक हो जाता है।
* ब्रेन ट्युमर भी ठीक हो जाता है।
* सभी प्रकार के चर्म समस्या मिटमीट जाती है।
* मस्तिषक के सम्बधित सभि व्याधिओको मिटामीटा ने के लिये।
* पर्किनसन, प्यारालेसिस, लुलापन इत्यादी स्नयुओ के सम्बधित सभि व्याधिओको मिटामीटा ने के लिये।
* सायनस की व्याधि मिटमीट जाती है।
* डायबीटीस पुरी तरह मिटमीट जाती है।
* टाँन्सीलस की व्याधि मिटमीट जाती है।
* थण्डी और गरम हवा के उपयोग से हमारे शरीर का तापमान संतुलित रेहता है।
* इससे हमारी रोग-प्रतिकारक शक्ती बढ जाती है।
 
दमा का रोग जड़ से चला जाता है ा
* अनुलोम विलोम के करने से कोई भी एलर्जी जड़ से खत्म हो जाती है।