"अनुलोम-विलोम प्राणायाम": अवतरणों में अंतर
Content deleted Content added
छो →विधि: इसमें मैंने अनुलोम विलोम प्राणायाम की विधि को थोड़ा और गहराई से बताया है। टैग: Reverted यथादृश्य संपादिका |
रोहित साव27 (वार्ता | योगदान) संजीव कुमार के अवतरण 4942134पर वापस ले जाया गया : Reverted (ट्विंकल) टैग: किए हुए कार्य को पूर्ववत करना |
||
पंक्ति 2:
{{ज्ञानकोषीय नहीं|date=सितंबर 2014}}
{{प्रतिलिपि सम्पादन|date=सितंबर 2014}}
अनुलोम का अर्थ होता है सीधा और विलोम का अर्थ है उल्टा। यहां पर सीधा का अर्थ है नासिका या नाक का दाहिना छिद्र और उल्टा का अर्थ है-नाक का बायां छिद्र। अर्थात '''
== विधि ==
- अपनी सुविधानुसार पद्मासन, सिद्धासन, स्वस्तिकासन अथवा सुखासन में बैठ जाएं। दाहिने हाथ के अंगूठे से नासिका के दाएं छिद्र को बंद कर लें और नासिका के बाएं छिद्र से 4 तक की गिनती में सांस को भरे और फिर बायीं नासिका को अंगूठे के बगल वाली दो अंगुलियों से बंद कर दें। तत्पश्चात दाहिनी नासिका से अंगूठे को हटा दें और दायीं नासिका से सांस को बाहर निकालें।
- अब दायीं नासिका से ही सांस को 4 की गिनती तक भरे और दायीं नाक को बंद करके बायीं नासिका खोलकर सांस को 8 की गिनती में बाहर निकालें।
- इस प्राणायाम को 5 से 15 मिनट तक कर सकते है।
== लाभ ==
पंक्ति 36:
सुखासन, सिद्धासन, पद्मासन, वज्रासन में बैठें। शुरुवात और अन्त भी हमेशा बाये नथुने (नोस्टील) से ही करनी है, नाक का दाया नथुना बंद करें व बाये से लंबी सांस लें, फिर बाये को बंद करके, दाया वाले से लंबी सांस छोडें...अब दाया से लंबी सांस लें व बाये वाले से छोडें...याने यह दाया-दाया बाया-बाया यह क्रम रखना, यह प्रक्रिया १०-१५ मिनट तक दुहराएं| सास लेते समय अपना ध्यान दोनो आँखो के बीच में स्थित आज्ञा चक्र पर ध्यान एकत्रित करना चाहिए। और मन ही मन में सांस लेते समय ओउम-ओउम का जाप करते रहना चाहिए। हमारे शरीर की ७२,७२,१०,२१० सुक्ष्मादी सुक्ष्म नाडी शुद्ध हो जाती है। बायी नाडी को चन्द्र (इडा, गन्गा) नाडी, और दाई नाडी को सूर्य (पीन्गला, यमुना) नाडी केहते है। चन्द्र नाडी से थण्डी हवा अन्दर जती है और सूर्य नाडी से गरम नाडी हवा अन्दर जती है।थण्डी और गरम हवा के उपयोग से हमारे शरीर का तापमान संतुलित रेहता है। इससे हमारी रोग-प्रतिकारक शक्ती बढ जाती है।
* सुखासन, सिद्धासन, पद्मासन, वज्रासन में बैठें।
* शुरुवात और अन्त भी हमेशा बाये नथुने (नोस्टील) से ही करनी है।
* नाक का दाया नथुना बंद करें व बाये से लंबी सांस लें।
* फिर बाये को बंद करके, दाया वाले से लंबी सांस छोडें...
* अब दाया से लंबी सांस लें व बाये वाले से छोडें...
* याने यह दाया-दाया बाया-बाया यह क्रम रखना, यह प्रक्रिया १०-१५ मिनट तक दुहराएं|
== सावधानी ==
* सास लेते समय अपना ध्यान दोनो आँखो के बीच में स्थित आज्ञा चक्र पर ध्यान एकत्रित करना चाहिए।
Line 51 ⟶ 49:
== फायदे ==
* हमारे शरीर की ७२,७२,१०,२१० सुक्ष्मादी सुक्ष्म नाडी शुद्ध हो जाती है।
* हार्ट
*
* आर्थराटीस, रोमेटोर आर्थराटीस, कार्टीलेज
* टेढे लीगामेंटस सीधे हो जायेंगे|
* व्हेरीकोज व्हेनस ठीक हो जाती है।
* कोलेस्टाँल, टाँक्सीनस, आँस्कीडण्टस इसके जैसे विजतीय पदार्थ शरीर के बहार नीकल जाते है।
* सायकीक पेंशनट्स को फायदा होता है।
*
* सबसे बड़ा खतरनाक
* सभी प्रकारकी अँलार्जीयाँ
* मेमरी बढाने की लीये|
* सर्दी, खाँसी, नाक, गला ठीक हो जाता है।
* ब्रेन ट्युमर भी ठीक हो जाता है।
* सभी प्रकार के चर्म समस्या
* मस्तिषक के सम्बधित सभि व्याधिओको
* पर्किनसन, प्यारालेसिस, लुलापन इत्यादी स्नयुओ के सम्बधित सभि व्याधिओको
* सायनस की व्याधि
* डायबीटीस पुरी तरह
* टाँन्सीलस की व्याधि
* थण्डी और गरम हवा के उपयोग से हमारे शरीर का तापमान संतुलित रेहता है।
* इससे हमारी रोग-प्रतिकारक शक्ती बढ जाती है।
दमा का रोग जड़ से चला जाता है ा
* अनुलोम विलोम के करने से कोई भी एलर्जी जड़ से खत्म हो जाती है।
|