"मन्त्र": अवतरणों में अंतर

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अमृतमपत्रिका से साभार...
 
मन्त्र सद गुरु से मिले, तभी चमत्कारी असर दिखाता है। क्योंकि गुरु वही मन्त्र देता है, जो उनके पूर्वज गुरु हजार-लाख वर्षों से जप रहे होते हैं। इसीलिए गुरुमंत्र का महत्व अत्याधिक है।
सृष्टि रचना के समय केवल दो ही मुख्य, मूल दो ही मंत्रों का उदय हुआ था। जिसमें पहला गायत्री मंत्र प्रकृति का प्रतीक है और दूसरा शिव मन्त्र
!!**ॐ नमः सम्भवाय च मयोभवाय च नमः। **
**शंकराय च मयस्कराय "च नमः **
**शिवाय" च शिवतराय च। **
उपरोक्त मन्त्र से ही ॐ नमःशिवाय मन्त्र निकाला गया है।
संक्षिप्त रूप से चलते-फिरते जप करने हेतु ॐ नमःशिवाय मन्त्र को महाशक्ति शाली माना जाता है। यह पंचमहाभूतों का संतुलन बनाये रखता है तथा पंचतत्व का प्रतिनिधित्व भी करता है।
**न" ध्वनि पृथ्वी का प्रतिनिधित्व करता है**
**मः" ध्वनि पानी का प्रतिनिधित्व करता है**
**शि" ध्वनि अग्नि का प्रतिनिधित्व करता है**
**वा" ध्वनि प्राणिक वायु का प्रतिनिधित्व करता है**
**य" ध्वनि आकाश का प्रतिनिधित्व करता है।**
ब्रह्माण्ड में बस यही शाश्वत है। शेष कथावाचकों की खोज है। जिसके जपने से कुछ परिवर्तन होने वाला नहीं है।
24 घण्टे राम-राम जपने से कोई काम नहीं आएगा, बल्कि आपके काम लग जायेगा। यही वैदिक सत्य है।
यदि कभी किसी को गुरु बनाना हो, तो ब्रह्मचारी शिव या शाक्तय को ही गुरु पूरे विधि-वैसे तो ॐ नमःशिवाय मन्त्र को महाशक्ति शाली माना जाता है। यह पंचमहाभूतों का संतुलन बनाये रखता है तथा पंचतत्व का प्रतिनिधित्व भी करता है।
 
न" ध्वनि पृथ्वी का प्रतिनिधित्व करता है
मः" ध्वनि पानी का प्रतिनिधित्व करता है
शि" ध्वनि अग्नि का प्रतिनिधित्व करता है
वा" ध्वनि प्राणिक वायु का प्रतिनिधित्व करता है
य" ध्वनि आकाश का प्रतिनिधित्व करता है से विजय घण्ट के उच्चारण के साथ बनाये। कथा-चौपालों में धनदे वाले गुरुओं के समक्ष नहीं।
आपको इतना भी बता दें कि-
सन्त मिलेंगे अन्त…
वह भी मुशिकल से।
जब भी गुरु करें, तो बुजुर्गों की यह सीख, ठीक रहेगी।
गुरु करो जान कर-पानी पियो छानकर।
 
हिन्दू [[श्रुति]] ग्रंथों की कविता को पारम्परिक रूप से '''मंत्र''' कहा जाता है। उदाहरण के लिए [[ऋग्वेद संहिता]] में लगभग १०५५२ मंत्र हैं। [[ॐ]] स्वयं एक मंत्र है और ऐसा माना जाता है कि यह पृथ्वी पर उत्पन्न प्रथम ध्वनि है।
 
इसका शाब्दिक अर्थ 'विचार' या 'चिन्तन' होता है <ref> संस्कृत में '''मननेन त्रायते इति मन्त्रः''' - जो मनन करने पर त्राण दे वह '''मन्त्र''' है </ref> । 'मंत्रणा', और 'मंत्री' इसी मूल से बने शब्द हैं । मन्त्र भी एक प्रकार की वाणी है, परन्तु साधारण वाक्यों के समान वे हमको बन्धन में नहीं डालते, बल्कि बन्धन से मुक्त करते हैं।<ref>श्रीमद्भगवदगीता - टीका श्री भूपेन्द्रनाथ सान्याल, प्रथम खण्ड, अध्याय 1, श्लोक 1</ref>
 
काफी चिन्तन-मनन के बाद किसी समस्या के समाधान के लिये जो उपाय/विधि/युक्ति निकलती है उसे भी सामान्य तौर पर '''मंत्र''' कह देते हैं। "षडकर्णो भिद्यते मंत्र" (छः कानों में जाने से मंत्र नाकाम हो जाता है) - इसमें भी मंत्र का यही अर्थ है।
 
== आध्यात्मिक ==