"हाथीगुम्फा शिलालेख": अवतरणों में अंतर
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[[चित्र:Hatigumfa.jpg|right|thumb|300px|हाथीगुफा में खाववेल का शिलालेख]]
[[मौर्य राजवंश|मौर्य वंश]] की शक्ति के शिथिल होने पर जब [[मगध महाजनपद|मगध]] साम्राज्य के अनेक सुदूरवर्ती प्रदेश मौर्य सम्राटों की अधीनता से मुक्त होने लगे, तो [[कलिंग]] भी स्वतंत्र हो गया। [[ओडिशा|उड़ीसा]] के [[भुवनेश्वर]] नामक स्थान से तीन मील दूर
हाथीगुम्फा के शिलालेख (प्रशस्ति) के अनुसार खारवेल के जीवन के पहले पन्द्रह वर्ष विद्या के अध्ययन में व्यतीत हुए। इस काल में उसने [[धर्म]], [[अर्थ]], [[शासन]], [[मुद्रापद्धति]], क़ानून, शस्त्रसंचालन आदि की शिक्षा प्राप्त की। पन्द्रह साल की आयु में वह युवराज के पद पर नियुक्त हुआ और नौ वर्ष तक इस पद पर रहने के उपरान्त चौबीस वर्ष की आयु में वह कलिंग के राजसिंहासन पर आरूढ़ हुआ। राजा बनने पर उसने 'कलिंगाधिपति' और 'कलिंग चक्रवर्ती' की उपाधियाँ धारण कीं। राज्याभिषेक के दूसरे वर्ष उसने पश्चिम की ओर आक्रमण किया और राजा [[सातकर्णि]] की उपेक्षा कर कंहवेना ([[कृष्णा नदी]]) के तट पर स्थित मूसिक नगर को उसने त्रस्त किया। सातकर्णि [[सातवाहन]] राजा था और आंध्र प्रदेश में उसका स्वतंत्र राज्य विद्यमान था। मौर्यों की अधीनता से मुक्त होकर जो प्रदेश स्वतंत्र हो गए थे, [[आंध्र]] भी उनमें से एक था। अपने शासनकाल के चौथे वर्ष में खारवेल ने एक बार फिर पश्चिम की ओर आक्रमण किया और भोजकों तथा रठिकों (राष्ट्रिकों) को अपने अधीन किया। भोजकों की स्थिति बरार के क्षेत्र में थी और रठिकों की पूर्वी [[खानदेश|ख़ानदेश]] व [[अहमदनगर]] में। रठिक-भोजक सम्भवतः ऐसे [[क्षत्रिय]] कुल थे, प्राचीन अन्धक-वृष्णियों के समान जिनके अपने [[गणराज्य]] थे। ये गणराज्य सम्भवतः सातवाहनों की अधीनता स्वीकृत करते थे।
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