"शिक्षा दर्शन": अवतरणों में अंतर

No edit summary
No edit summary
पंक्ति 1:
[[चित्र:Portrait Gandhi.jpg|right|thumb|200px|[[महात्मा गाँधी|गाँधीजी]] महान शिक्षा-दार्शनिक भी थे।]]
[[शिक्षा]] और [[दर्शनशास्त्र|दर्शन]] में गहरा सम्बन्ध है। अनेकों महान शिक्षाशास्त्री स्वयं महान दार्शनिक भी रहे हैं। इस सह-सम्बन्ध से दर्शन और शिक्षा दोनों का हित सम्पादित हुआ है। शैक्षिक समस्या के प्रत्येक क्षेत्र में उस विषय के दार्शनिक आधार की आवश्यकता अनुभव की जाती है। [[जोहान्न गोत्त्लिएब फिचते|फिहते]] अपनी पुस्तक "एड्रेसेज टु दि जर्मन नेशन" में शिक्षा तथा दर्शन के अन्योन्याश्रय का समर्थन करते हुए लिखते हैं -
: ''"दर्शन के अभाव में ‘शिक्षण-कला’ कभी भी पूर्ण स्पष्टता नहीं प्राप्त कर सकती। दोनों के बीच एक अन्योन्य क्रिया चलती रहती है और एक के बिना दूसरा अपूर्ण तथा अनुपयोगी है।" [[डिवी]] ''
शिक्षा तथा दर्शन के संबंध को स्पष्ट करते हुए [[डिवी]] कहते हैं कि दर्शन की जो सबसे गहन परिभाषा हो सकती है, यह है कि "दर्शन शिक्षा-विषयक सिद्धान्त का अत्यधिक सामान्यीकृत रूप है।"''
 
दर्शन जीवन का लक्ष्य निर्धारित करता है, इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए शिक्षा उपाय प्रस्तुत करती है। दर्शन पर शिक्षा की निर्भरता इतनी स्पष्ट और कहीं नहीं दिखाई देती जितनी कि [[पाठ्यविवरण|पाठ्यक्रम]] संबंधी समस्याओं के संबंध में। विशिष्ट पाठ्यक्रमीय समस्याओं के समाधान के लिए दर्शन की आवश्यकता होती है। पाठ्यक्रम से घनिष्ठ रूप से जुड़ा हुआ प्रश्न उपयुक्त [[पाठ्यपुस्तक|पाठ्यपुस्तकों]] के चुनाव का है और इसमें भी दर्शन सन्निहित है।