"यज्ञोपवीत": अवतरणों में अंतर

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"ब्रह्म (ईश्वर) और ज्ञान के पास ले जाना"<br />
 
हिन्दू धर्म में प्रत्येक हिन्दूद्विज पुरुष (ब्राह्मण क्षत्रिय और वैश्य) का कर्तव्य है जनेऊ पहनना और उसके नियमों का पालन करना। हर हिन्दूद्विज पुरुष जनेऊ पहन सकता है बशर्ते कि वह उसके नियमों का पालन करे। ब्राह्मण ही नहीं समाज का हर द्विज वर्ग जनेऊ धारण कर सकता है। जनेऊ धारण करने के बाद ही द्विज बालक को यज्ञ तथा स्वाध्याय करने का अधिकार प्राप्त होता है। द्विज का अर्थ होता है दूसरा जन्म। मतलब सीधा है जनेऊ संस्कार के बाद ही शिक्षा का अधिकार मिलता था और जो शिक्षा नही ग्रहण करता था उसे शूद्र की श्रेणी में रखा जाता था (वर्ण व्यवस्था)।.
 
जिस लड़की को आजीवन ब्रह्मचर्य का पालन करना हो, वह जनेऊ धारण कर सकती है। ब्रह्मचारी तीन और विवाहित छह धागों की जनेऊ पहनता है। यज्ञोपवीत के छह धागों में से तीन धागे स्वयं के और तीन धागे पत्नी के बतलाए गए हैं।<br />
 
'''जनेऊ का आध्यात्मिक महत्व:'''<br />