"ग़ज़ल": अवतरणों में अंतर
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== बाहरी कड़ियाँ ==
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भटकी हुई इंसान की है जात अभी तक
ज़िंदा हैं ये फ़रसूदा रिवायात अभी तक ।
जब पहली मुलाकात में तुम हँसके मिले थे
आते हैं बहुत याद वो लम्हात अभी तक ।
मुझ पेकर-ए- वफ़ा से तेरा बेवफ़ा कहना
सीने में मेरे चुभती है ये बात अभी तक ।
जब दह्र को मालूम है अच्छाई का हासिल
मौजूद है क्यों दोस्त ख़राबात अभी तक ।
मशहूर है ये उसकी इनायात है सभी पर
इस सम्त नहीं कोई इनायात अभी तक ।
ये और कि हर मसअला हल हो गया लेकिन
है ज़हन में मौजूद सवालात अभी तक ।
फितरत है सियासत कि भला इसमें अजब क्या
करती है जो हर आन खुराफ़ात अभी तक ।
आओ की उगाना है हमें इल्म का सूरज
छाई है जिहालत की सियह रात अभी तक ।
इस उम्र में भी आके अरुण वैसे का वैसा
बदले नहीं हैं उसके ख़्यालात अभी भी ।
अरुण कुमार दुबे "अरुण" सागर मध्य प्रदेश
https://hindisarijan.blogspot.com/2021/06/Gazal-ke-udaharn-in-hindi.html
[[श्रेणी:शायरी]]
[[श्रेणी:उर्दू छंद]]
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