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{{स्रोत कम|date=अप्रैल 2020}}
{{ज्ञानसन्दूक महाभारत के पात्र|| image =
|caption =|नाम = कर्ण|अन्य नाम = वासुसेन,दानवीर कर्ण, राधेय, सूर्यपुत्र कर्ण, सूतपुत्र कर्ण , कौंत्य कर्ण , विजयधारी , वैकर्तना, मृत्युंजय कर्ण , दिग्विजयी कर्ण, अंगराज कर्ण|संस्कृत वर्तनी= कर्ण|संदर्भ ग्रंथ = [[महाभारत]]|उत्त्पति स्थल =| व्यवसाय =अंग देश के राजा|मुख्य शस्त्र=[[धनुष]][[बाण]] , विजय धनुष|राजवंश =पैतृक राजवंश पांडव लेकिन कुंती द्वारा जन्म के समय त्याग देना व कौरव युवराज दुर्योधन से घनिष्ठ मित्रता के चलते कौरव राजवंशी।|माता और पिता =जन्मदाता सूर्यदेव व श्रीमती कुंती। <br><br>लालन पालन कर्ता देवी राधा व श्री अधिरत|जीवनसाथी=वृषाली और सुप्रिया।
(कुछ मान्यताओं के अनुसार पद्मावती कर्ण की पत्नी थी)|संतान=वृषसेन, वृषकेतु सहित अन्य संतानें।|भाई-बहन=[[युधिष्ठिर]], [[भीम]], [[अर्जुन]] ,नकुल , सहदेव , सूर्यपुत्र शनि , सूर्यपुत्र यमराज , राधा पुत्र शोर्ण|Image=Karna in Kurukshetra.jpg|Caption=कुरुक्षेत्र में कर्ण}}
'''कर्ण''' (साहित्य-काल) [[महाभारत]] (महाकाव्य) के सबसे प्रमुख पात्रों में से एक है। कर्ण का जीवन अंतत विचार जनक है। कर्ण महाभारत के सर्वश्रेष्ठ धनुर्धारियों में से एक थे। कर्ण एक सूत वर्ण से थे और भगवान [[परशुराम]] ने स्वयं कर्ण की श्रेष्ठता को स्वीकार किया था । कर्ण की वास्तविक माँ [[कुन्ती]] थी परन्तु उनका पालन पोषण करने वाली माँ का नाम राधा था। कर्ण के वास्तविक पिता भगवान सूर्य थे। कर्ण का जन्म [[पाण्डु]] और कुन्ती के विवाह के पहले हुआ था। कर्ण [[दुर्योधन]] का सबसे अच्छा मित्र था और महाभारत के युद्ध में वह अपने भाइयों के विरुद्ध लड़ा। कर्ण को एक आदर्श दानवीर माना जाता है क्योंकि कर्ण ने कभी भी किसी माँगने वाले को दान में कुछ भी देने से कभी भी मना नहीं किया भले ही इसके परिणामस्वरूप उसके अपने ही प्राण संकट में क्यों न पड़ गए हों। इसी से जुड़ा एक वाक्या महाभारत में है जब अर्जुन के पिता भगवान [[इन्द्र]] ने कर्ण से उसके कुंडल और दिव्य कवच माँगे और कर्ण ने दे दिए।
"https://hi.wikipedia.org/wiki/कर्ण" से प्राप्त