"विकिपीडिया:हमें सम्पर्क करें": अवतरणों में अंतर

छो Govind Singh Weightlifter (Talk) के संपादनों को हटाकर रोहित साव27 के आखिरी अवतरण को पूर्ववत किया
टैग: वापस लिया मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन उन्नत मोबाइल संपादन
शीर्षक - गोलाना राजगुरु वंश का इतिहास
पंक्ति 5:
किसी सदस्य से किसी लेख के बारे में बात करने के लिये, सदस्य के वार्ता पन्ने का उपयोग करें <nowiki>(http://hi.wikipedia.org/wiki/User_talk:</nowiki>''सदस्य का नाम'') या फ़िर उनके सदस्य पन्ने से आप उनको ई-मेल भी कर सकते हैं। किसी लेख के किस भाग को किसने लिखा है, यह देखने के लिये आप उस पन्ने का इतिहास देख सकते हैं ।
 
शीर्षक - गोलाना राजगुरु वंश का इतिहास
===अविशिष्ट प्रश्न===
 
 
विकिपीडिया के बारे में सवाल या फ़रियाद करने के लिये [[विकिपीडिया:चौपाल|चौपाल]] का उपयोग करें। जो प्रश्न वहाँ पर रखने योग्य न हो, उन्हे वहाँ से निकाल कर कहीं और रख दिया जायेगा ।
जय मां कुलदेवी री बंधुओं 🙏🚩
 
बंधुओं गोलाना गांव अरावली पर्वत मालाओं ( सुंधा माताजी ) के पास आया हुआ है, जोधपुर दरबार जसवंतसिंहजी ने जो गांव बसाया था, वह गांव जोधपुर दरबार जसवंतसिंहजी के नाम से जाना जाता था, अतः उस गांव का नाम जसवंतपुरा रख दिया गया था, और इसी जसवंतपुरा से 2 किलोमीटर की दुरी पर गोलाना गांव बसा हुआ है, गांव के बुजुर्गों का कहना है कि गोलाना गांव में सभी जाति के लोग बसे हुये थे, सिर्फ नही थे तो पुरोहित जाति के लोंग नही थे, इस गांव मे ठाकुर विरमदेवसिंह जी का शासन था, अतः ठुकराइन ने कहां कि मुझे सुबह उठते ही पुरोहित का मुंह देखने के लिए चाहिए, व एक निम के पेड़ चाहिए, उसके बाद दिन की शुरूआत करूंगी, इसलिए ठाकुर साहब ने अजारी से दो पुरोहितों को गोलाना गांव मे लाया था, और गांव के ठाकुर साहब पुरोहितों का खुब आदर सत्कार किया करते थे, एक समय ऐसा भी आया था, जब राणा राज करते थे, तब जसवंतपुरा का नाम लोहियाणागढ था, उस समय राणा ने एक शर्त रखी थी कि पुरोहितों की बाली भोली कुंवारी कन्या मिट्टी का कच्चा मटका और मिट्टी का कच्चा कळश, दोनों को पानी से भरकर उस कन्या के सिर पर रख दो, फिर कन्या पानी से भरे उस मटके और कळश को लेकर जहां तक चलेगी वहां तक सारी जायदाद पुरोहितों को दी जायेगी, अब देखो ना कैसा चमत्कार हुआ, जैसे मां कुलदेवी साक्षात उस कन्या के रूप मे प्रकट हुई हो, और मटका उठाकर चल रही थी, देखते ही देखते उस कन्या ने चलते - चलते 16 कुएं और 25 खेत की हद पार कर दी,,
फलस्वरूप राणा को अपनी शर्त हारनी पड़ी और 16 कुएं व 25 खेत पुरोहितों को देने पड़े, उसके बाद राणाओं की निति मे घाटा आया, और राणा अपनी शर्त से मुकर गया, और पुरोहितों को दिये हुये सारे कुएं व खेत वापस लेने लगा, तभी हमारे राजगुरू वंश के पूर्वज दाताजी बावसी पनाजी ने राणाओं का सामना किया, तब राणा ने पनाजी बावसी को ललकारा और कहां कि अगर इतना ही दम है तो शहीद हो जा,,
तब पनाजी अपनी भुजा से तलवार निकालकर राणा को दी, और कहां कि अब पहले तु मेरा सिर धड़ से अलग कर दें, उसके बाद वापस सिर को उठाकर मेरे धड़ पर रख देना, उसके बाद हम बात करेंगे, पनाजी ने जैसा राणा से कहां वैसा ही राणा किया, जैसे ही कटा हुआ सिर वापस पनाजी बावसी के धड़ पर रखा और पनाजी ने राणा से बातचीत करना चालु कर दिया, और फिर राणा आगे और पनाजी बावसी राणा के पीछे, राणा भागता हुआ चिल्ला रहा था, हाय पना खायें हाय पना खायें,,
और फिर इसी सिलसिले के साथ भागते - भागते जसवंतपुरा तक पहुंच गये जहां राणा राज करते थे, वहां पहुंचते ही पनाजी ने राणाओं को श्राप दिया, और कहां की तुम्हारे इस लोहियाणागढ की जगह गधे हल चलायेंगे, उन महान आत्माओं का श्राप सच हो गया, और राणाओं का आज उस जगह बीज़ तक नही रहा, हम उन्ही महान आत्माओं की संतान है, उसमे दाता श्री जीवाजी महाराज की जीवनी भी है,
बात पुराने समय की हॆ जब राजा महाराजाओ का शाशन हुआ करता था आप सब कॊ विदित हॆ की जब गोलाणा गाँव मे सर्वप्रथम राजगुरु पधारे तब सती माता (वीयाजी बावसी की धर्मपत्नी )
उन्होने जीवन यापन के लिये खेत दिये थे जहाँ हमारे पूर्वज खेती करते और राम नाम मे लीन रेहते थे !
इस बीच एक समय ऐसा आया जब लोहियाणा गढ़ के सामंत की नज़र हमारे पूर्वजों की उपजाऊ ज़मीन पर पड़ी जिसे वह छल कपट और दबंगई से प्राप्त करना चाहता था !
इस परिस्थिति कॊ देख कर राजगुरु परिवार और उसके साथ गाँव की और भी जातियाँ धरने पर बेठ गयी ! आखिर क्षत्रिय थे लोहियाणागढ़ वाले तो समझ गये की ब्राह्मण धरने पर बेठे हॆ तो अब कूछ मामला बिगड़ ना जाये इसलिये उसने अपने कूछ सेनिक या आदमी पेहरे पर लगा दिये धरना चल ही रहा था की सामंत का चहीता धुरा कुम्हार (काणिया ) गुद्रीया वाला समझाने आया और इस बीच बेहस बढ़ गयी और उसी बीच उस कुम्हार ने एक तंज़ कश दिया की अगर ब्राह्मण इतने ही हठीले (टणके) हो तो ऊबी पेहन लो (मतलब खुद शरीर त्याग दो अपना वहाँ ज़मीन के लिये )यह तंज़ वहाँ बेठे एक युवा जीवाजी कॊ हज़म नहीं हुआ और उनको क्रोध आगया और वहाँ रखी तलवार ( नोट :- उस ज़माने मे जब भी कोई धरना देते थे तो वही एक तलवार पूजा करके रखते थे और उसी तलवार के शतरछाया मे धरना चलता था ) उठायी और अपने इष्ट कॊ याद कर अपने हाथो से अपने शरीर के आर पार कर दी यह देख कर वहाँ मौजूद क्षत्रिय सेनिक तो भाग खड़े हुये उन्हे पता था की ब्राह्मण अगर इसके सामने आगये तो इसके ब्रह्म वाक्य हमारा नाश कर देगा पर वो मूर्ख धुरा कुम्हार वही था इसलिये उन्होने गुदरीया मे राजगुरु समाज कॊ गादेत्रा दिया और कहाँ की मेरी आरोगी मत छांटना और उन्होने अपना देह त्याग दिया ! इस तरह ज़मीन कॊ बचाया
जहाँ उनका अन्तिम संस्कार हुआ वहाँ हमारे उस समय के बुजर्गों ने छोबीस घंटे पेहरे दिये पर उस काणिये धुरा कॊ पता था की अगर आरोगी नही छांटी गयी तो उनका और उनके परिवार का नाश हो जायेगा इसलिये उसने भीलों कॊ बुलाया और तीर मे पंख बाँध के उनको दुध मे भिगो के उन तिरो कॊ आरोगी पर डाला गया छुपके से
जिससे उनकी शक्ति थोड़ी कम हो गयी !
गत कूछ सालो से हर साल दाताजी के हवन यज्ञ करने से जीवाजी दाता और भी शक्तिशाली हो गये ,और आज गोलाना मे राजगुरू वंश के करीबन 60 घर है, 🙏👏
 
आभार:- समस्त राजगुरु परिवार गोलाना🙏
 
===प्रेस के सवाल===