"ऋग्वेद": अवतरणों में अंतर

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| alt = Four Vedas
| language = [[वैदिक संस्कृत]]
| caption = Fourचार Vedasवेद
| period = [[Circa|c.]] 1500{{ndash}}1200 BCE{{refn|group=note|name="dating"}}
| chapters = 10 मण्डल
| sutras =
| verses = 10,552 mantrasमंत्र<ref>https://sites.google.com/a/vedicgranth.org/www/what_are_vedic_granth/the-four-veda/interpretation-and-more/construction-of-the-vedas?mobile=true</ref>
}}
{{सन्दूक ऋग्वेद}}
 
[[सनातन धर्म]] का सबसे आरम्भिक स्रोत है। इसमें [[१०|10]] मण्डल,<ref>{{cite web|url=https://mumbaimirror.indiatimes.com/opinion/columnists/devdutt-pattanaik/who-is-ahindu-how-breaking-india-started/articleshow/76239140.cms|title=WHO IS AHINDU? How ‘breaking India’ started}}</ref> [[१०२८|1017]] [[सूक्त]] और वर्तमान में [[१०,600|10,600]] [[मन्त्र]] हैं, [[मन्त्र]] संख्या के विषय में विद्वानों में कुछ मतभेद है। मन्त्रों में [[देवता|देवताओं]] की [[स्तुति]] की गयी है। इसमें देवताओं का [[यज्ञ]] में आह्वान करने के लिये [[मन्त्र]] हैं। यही सर्वप्रथम [[वेद]] है। ऋग्वेद को इतिहासकार [[हिन्द-यूरोपीय भाषा-परिवार]] की अभी तक उपलब्ध पहली रचनाओं में एक मानते हैं। यह संसार के उन सर्वप्रथम ग्रन्थों में से एक है जिसकी किसी रूप में मान्यता आज तक समाज में बनी हुई है। यह एक प्रमुख सनातन धर्म ग्रन्थ है।
[[File:ऋग्वेद.jpg|thumb|ऋग्वेद]]
ऋग्वेद सबसे पुराना ज्ञात [[वैदिक संस्कृत]] पुस्तक है।<ref>{{cite book|author1=Stephanie W. Jamison|author2=Joel Brereton|title=The Rigveda: 3-Volume Set|url=https://books.google.com/books?id=fgzVAwAAQBAJ|year=2014|publisher=Oxford University Press|isbn=978-0-19-972078-1|page=3}}</ref> इसकी प्रारम्भिक परतें किसी भी [[हिन्द-यूरोपीय भाषा-परिवार|इंडो-यूरोपीय भाषा]] में सबसे पुराने मौजूदा ग्रन्थों में से एक हैं।<ref>{{cite book|author=Edwin F. Bryant|title=The Yoga Sutras of Patañjali: A New Edition, Translation, and Commentary|url=https://books.google.com/books?id=yivABQAAQBAJ&pg=PT565|year=2015|publisher=Farrar, Straus and Giroux|isbn=978-1-4299-9598-6|pages=565{{ndash}}566}}</ref>{{refn|group=note|According to Edgar Polome, the Hittite language [[Anitta]] text from the 17th century BCE is older. This text is about the conquest of Kanesh city of Anatolia, and mentions the same Indo-European gods as in the Rigveda.<ref>{{cite book|author=Edgar Polome|editor=Per Sture Ureland|title=Entstehung von Sprachen und Völkern: glotto- und ethnogenetische Aspekte europäischer Sprachen|url=https://books.google.com/books?id=T9su8E8eOsgC&pg=PA51|year=2010|publisher=Walter de Gruyter|isbn=978-3-11-163373-2|page=51}}</ref>}} '' ऋग्वेद '' की ध्वनियों और ग्रन्थों को दूसरी सहस्राब्दी ईसा पूर्व से मौखिक रूप से प्रसारित किया गया है।{{sfn|Wood|2007}}{{sfn|Hexam|2011|p=chapter 8}}{{sfn|Dwyer|2013}} दार्शनिक और भाषाई साक्ष्य इंगित करते हैं कि ऋग्वेद संहिता के थोक की रचना भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र में हुई थी, जो कि सबसे अधिक संभावना है- 1500 और 1000 ईसा पूर्व, <ref>{{cite web|url=https://economictimes.indiatimes.com/news/india/view-how-rig-veda-speaks-of-aspiration-and-collaboration/articleshow/81593732.cms|title=View: How Rig Veda speaks of aspiration and collaboration }}</ref> 1700-1000 BCE भी दिया गया है।
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* ऋग्वेद के ९वें मण्डल में [[सोम|सोम रस]] की प्रशंसा की गई है।
* ऋग्वेद के १०वे मंडल मे पुरुषसुक्त का वर्णन है।
* "[[असतो मा सदगमयसद्गमय]]" वाक्य ऋग्वेद से लिया गया है। [[सूर्य]] ([[सवितृ]] को सम्बोधित "[[गायत्री मन्त्र|गायत्री मंत्र]]" ऋग्वेद में उल्लेखित है।
* इस वेद में [[गाय]] के लिए 'अहन्या' शब्द का प्रयोग किया गया है।
* ऋग्वेद में ऐसी [[कन्या राशि|कन्याओं]] के उदाहरण मिलते हैं जो दीर्घकाल तक या आजीवन अविवाहित रहती थीं। इन कन्याओं को 'अमाजू' कहा जाता था।
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ऋग्वेद के सूक्तों के पुरुष रचियताओं में गृत्समद, विश्वामित्र, वामदेव, अत्रि, भारद्वाज, वशिष्ठ आदि प्रमुख हैं। सूक्तों के स्त्री रचयिताओं में लोपामुद्रा, घोषा, शची, कांक्षावृत्ति, पौलोमी आदि प्रमुख हैं।
ऋग्वेद के १० वें मंडल के ९५ सूक्त में [[पुरुरवा]], ऐल और [[उर्वसीउर्वशी]] का संवाद है।
 
वेदों में किसी प्रकार की मिलावट न हो इसके लिए ऋषियों ने शब्दों तथा अक्षरों को गिन कर लिख दिया था। [[कात्यायन]] प्रभृति ऋषियों की [[सर्वानुक्रमणी|अनुक्रमणी]] के अनुसार ऋचाओं की संख्या १०,५८०, शब्दों की संख्या १५३५२६ तथा [[शौनक]]कृत अनुक्रमणी के अनुसार ४,३२,००० अक्षर हैं। [[शतपथ ब्राह्मण]] जैसे ग्रंथों में उल्लेख मिलता है कि प्रजापति कृत अक्षरों की संख्या १२००० बृहती थी। अर्थात १२००० गुणा ३६ यानि ४,३२,००० अक्षर। आज जो [[शाकल संहिता]] के रूप में ऋग्वेद उपलब्ध है उनमें केवल १०५५२ ऋचाएँ हैं।