"भोजली देवी": अवतरणों में अंतर
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[[चित्र:Bhojali.jpg|thumb|right|300px|भुजरियाँ]]
[[भारत]] के अनेक प्रांतों में [[सावन]] महीने की [[सप्तमी]] को छोटी॑-छोटी टोकरियों में मिट्टी डालकर उनमें [[अन्न]] के दाने बोए जाते हैं। ये दाने [[धान]], [[गेहूँ]], [[जौ]] के हो सकते हैं। ब्रज और उसके निकटवर्ती प्रान्तों में इसे 'भुजरियाँ` कहते हैं। इन्हें अलग
सावन की पूर्णिमा तक इनमें 4 से 6 इंच तक के पौधे निकल आते हैं। [[रक्षाबंधन]] की पूजा में इसको भी पूजा जाता है और धान के कुछ हरे पौधे भाई को दिए जाते हैं या उसके कान में लगाए जाते हैं। भोजली नई फ़सल की प्रतीक होती है। और इसे रक्षाबंधन के दूसरे दिन विसर्जित कर दिया जाता है। नदी, तालाब और सागर में भोजली को विसर्जित करते हुए अच्छी फ़सल की कामना की जाती है।
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