"माधवराव सप्रे": अवतरणों में अंतर

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माधवराव सप्रे का जन्म सन् १८७१ ई० में [[दमोह जिला|दमोह जिले]] के पथरिया ग्राम में हुआ था। [[बिलासपुर]] में मिडिल तक की पढ़ाई के बाद मैट्रिक शासकीय विद्यालय [[रायपुर]] से उत्तीर्ण किया। [[१८९९]] में [[कलकत्ता विश्वविद्यालय]] से बी ए करने के बाद उन्हें तहसीलदार के रूप में शासकीय नौकरी मिली लेकिन सप्रे जी ने भी देश भक्ति प्रदर्शित करते हए अँग्रेज़ों की शासकीय नौकरी की परवाह न की। सन [[१९००]] में जब समूचे [[छत्तीसगढ़]] में प्रिंटिंग प्रेस नही था तब इन्होंने [[बिलासपुर]] जिले के एक छोटे से गांव पेंड्रा से “छत्तीसगढ़ मित्र” नामक मासिक पत्रिका निकाली।<ref>{{cite web|url=http://aarambha.blogspot.com/2008/06/blog-post_19.html|title=पत्रकारिता व साहित्य के ऋषि माघव सप्रे|access-date=[[२ मई]] [[२००९]]|format=एचटीएमएल|publisher=आरंभ|language=|archive-url=https://web.archive.org/web/20100808003336/http://aarambha.blogspot.com/2008/06/blog-post_19.html|archive-date=8 अगस्त 2010|url-status=dead}}</ref> हालांकि यह पत्रिका सिर्फ़ तीन साल ही चल पाई। सप्रे जी ने [[लोकमान्य तिलक]] के [[मराठी]] [[केसरी]] को यहाँ [[हिंदी केसरी]] के रूप में छापना प्रारम्भ किया तथा साथ ही हिंदी साहित्यकारों व लेखकों को एक सूत्र में पिरोने के लिए [[नागपुर]] से हिंदी ग्रंथमाला भी प्रकाशित की। उन्होंने ''कर्मवीर'' के प्रकाशन में भी महती भूमिका निभाई।
 
संस्थाओं को गढ़ना, लोगों को राष्ट्र के काम के लिए प्रेरित करना सप्रे जी के भारतप्रेम का अनन्य उदाहरण है। [[रायपुर]], [[जबलपुर]], [[नागपुर]], [[पेंड्रा]] में रहते हुए उन्होंने न जाने कितने लोगों का निर्माण किया और उनके जीवन को नई दिशा दी। 26 वर्षों की उनकी पत्रकारिता और साहित्य सेवा ने मानक रचे। पंडित [[रविशंकर शुक्ल]], [[सेठ गोविंद दास|सेठ गोविंददास]], गांधीवादी चिंतक [[सुंदरलालसुन्दरलाल शर्मा]], [[द्वारिकाद्वारका प्रसाद मिश्र]], [[लक्ष्मीधर वाजपेयी]], [[माखनलाल चतुर्वेदी]], [[लल्ली प्रसाद पाण्डेय]], [[मावली प्रसाद श्रीवास्तव]] सहित अनेक हिंदी सेवियों को उन्होंने प्रेरित और प्रोत्साहित किया। [[जबलपुर]] को संस्कारधानी बनाने में सप्रे जी ने एक अनुकूल वातावरण बनाया जिसके चलते जबलपुर साहित्य, पत्रकारिता और संस्कृति का केंद्र बन सका। 1920 में उन्होंने जबलपुर में '''हिंदी मंदिर''' की स्थापना की, जिसका इस क्षेत्र में सांस्कृतिक और साहित्यिक गतिविधियों को बढ़ाने में अनूठा योगदान है।
 
[[१९२४]] में [[हिंदी साहित्य सम्मेलन]] के [[देहरादून]] अधिवेशन में सभापति रहे सप्रे जी ने [[१९२१]] में रायपुर में राष्ट्रीय विद्यालय की स्थापना की और साथ ही रायपुर में ही पहले कन्या विद्यालय जानकी देवी महिला पाठशाला की भी स्थापना की। यह दोनों विद्यालय आज भी चल रहे हैं।