"लाल क़िला": अवतरणों में अंतर

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'''लाल किला''' या '''लाल क़िला''', [[दिल्ली]] के ऐतिहासिक, क़िलेबंद, [[पुरानी दिल्ली]] के इलाके में स्थित, लाल बलुआ पत्थर से निर्मित है। यद्धपि यह किला काफी पुराना है और इस किले को पाँचवे मुग़ल शासक [[शाहजहाँ]] ने अपनी राजधानी के रूप में चुना था। इस किले को "लाल किला", इसकी दीवारों के लाल-लाल रंग के कारण कहा जाता है। इस ऐतिहासिक किले को वर्ष २००७ में [[युनेस्को]] द्वारा एक [[विश्व धरोहर स्थल]] चयनित किया गया था। <ref>{{Cite web |url=http://whc.unesco.org/en/list/231 |title=Red Fort Complex - युनेस्को World Heritage Centre<!-- Bot generated title --> |access-date=9 मई 2008 |archive-url=https://web.archive.org/web/20170705145946/http://whc.unesco.org/en/list/231 |archive-date=5 जुलाई 2017 |url-status=live }}</ref> भारत की राजधानी दिल्ली में स्थित लाल किला (Lal Kila) देश की आन-बान शान और देश की आजादी का प्रतीक है। मुगल काल में बना यह ऐतिहासक स्मारक विश्व धरोहर की लिस्ट में शामिल है और भारत के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक है। लाल किला के सौंदर्य, भव्यता और आर्कषण को देखने दुनिया के कोने-कोने से लोग आते हैं और इसकी शाही बनावट और अनूठी वास्तुकला की प्रशंसा करते हैं।
'''लाल कोट या''' '''लाल क़िला''',
 
यह शाही किला मुगल बादशाहों का न सिर्फ राजनीतिक केन्द्र है बल्कि यह औपचारिक केन्द्र भी हुआ करता था, जिस पर करीब 200 सालों तक मुगल वंश के शासकों का राज रहा। देश की जंग-ए-आजादी का गवाह रहा लाल किला मुगलकालीन वास्तुकला, सृजनात्मकता और सौंदर्य का अनुपम और अनूठा उदाहरण है।
हमारे देश में अधिकांश ऐतिहासिक स्थलों का हिंदू निर्माण छुपा कर उसे मुगलों या किसी विदेशी आक्रमणकारी नवाब या बादशाह या सुल्तान द्वारा निर्मित दिखाई जाने की बहुत ही खतरनाक प्रवृत्ति चली आ रही है । इस प्रवृत्ति के चलते देश के इतिहासकारों और लेखकों ने भी उन तथ्यों और प्रमाणों की पूर्णतया उपेक्षा की है जो किसी भी ऐतिहासिक भवन या किले आदि को किसी हिंदू राजा द्वारा निर्मित स्थापत्य कला का एक बेजोड़ नमूना सिद्ध करने के लिए पर्याप्त हैं । पी0एन0 ओक के शब्दों में कहें तो ये लोग अपने तथाकथित बौद्धिक अहंकार के कारण गर्दन ऊपर उठाकर चलते हैं , और नीचे पैरों में पड़े अनेकों प्रमाणों को कुचलते चले जाते हैं ।
 
1648 ईसवी में बने इस भव्य किले के अंदर एक बेहद सुंदर संग्रहालय भी बना हुआ है। करीब 250 एकड़ जमीन में फैला यह भव्य किला मुगल राजशाही और ब्रिटिशर्स के खिलाफ गहरे संघर्ष की दास्तान बयां करता हैं। वहीं भारत का राष्ट्रीय गौरव माने जाना वाला इस किले का इतिहास बेहद दिलचस्प है I
इन लोगों की इसी खतरनाक प्रवृत्ति के चलते दिल्ली का लाल किला अनेकों प्रमाणों के होने के उपरांत भी इन लोगों ने मुगल बादशाह शाहजहां के नाम कर दिया है । जबकि प्रमाण ये भी हैं कि मुगलों से पहले तुर्कों की राजधानी भी दिल्ली रही और उनसे पहले अनेकों हिंदू सम्राट और राजाओं की राजधानी भी दिल्ली रही है । स्वाभाविक रूप से प्रश्न किया जा सकता है कि यदि मुगलों से पहले भी दिल्ली राजधानी थी , तो उनसे पहले के शासक कहाँ से अपना शासन चलाते थे ? स्पष्ट है कि यदि दिल्ली मुगलों से पहले भी लम्बे समय से देश की राजधानी चली आ रही थी तो उन्होंने भी दिल्ली के लाल कोट या लाल किला या किसी ऐसे ही ऐतिहासिक स्थल से को केंद्र बनाकर अपना शासन चलाया होगा ।
 
वास्तव में 736 ई0 में दिल्ली में तोमर राजवंश की स्थापना अनंगपाल सिंह तोमर प्रथम नाम के राजा द्वारा की गई थी । लगभग इसी समय नागभट्ट प्रथम द्वारा 730 ईसवी में गुर्जर प्रतिहार वंश की स्थापना हुई थी । उस समय 720 ईसवी में आबू पर्वत पर हुए यज्ञ में क्षत्रिय शासकों ने मिलकर विदेशी आक्रमणकारियों को भगाने और भारत के धर्म व संस्कृति की रक्षा का संकल्प लेकर राष्ट्रीय एकता और राष्ट्रीय विचारधारा को प्रबल करने की भावना से प्रेरित होकर काम करना आरंभ किया था। कहने का अभिप्राय है कि स्वाभाविक रूप से उस समय सभी शासकों के भीतर अपने धर्म व संस्कृति की रक्षा का भाव प्रबल था। अतः तोमर शासक ने भी दिल्ली में जब अपने राजवंश की स्थापना की तो उसने भी विदेशी अरब आक्रमणकारियों के विरुद्ध संघर्ष करने की भावना से प्रेरित होकर ही यह महान कार्य किया था।
 
इसी तोमर वंश में आगे चलकर 1051 ईस्वी से 1081ई0 तक अनंगपाल सिंह तोमर द्वितीय नाम के प्रतापी शासक ने शासन किया। इसी शासक ने अपने शासनकाल में 1060 ईस्वी के लगभग लाल कोट नाम का किला बनवाया ।
 
कुछ लोगों का मानना है कि अनंगपाल सिंह तोमर द्वितीय पृथ्वीराज चौहान के नाना थे । वास्तव में ऐसा माना जाना इतिहास का एक महाझूठ ही है , क्योंकि अनंगपाल सिंह तोमर द्वितीय का शासनकाल 1051 से 1081 ई0 तक माना जाता है । जिस समय पृथ्वीराज चौहान के पिता सोमेश्वर सिंह का भी जन्म नहीं हुआ था । स्वयं पृथ्वीराज चौहान का जन्म भी 1167 ईस्वी में अर्थात अनंगपाल सिंह तोमर द्वितीय के देहांत के 86 वर्ष बाद हुआ था।
 
दिल्ली के वर्तमान लालकिले को 1638 ईस्वी में दिल्ली के तत्कालीन मुगल बादशाह शाहजहां द्वारा निर्मित किए जाने का झूठ इतिहास में पढ़ाया जाता रहा है । जबकि उसके सैकड़ों वर्ष पूर्व लालकिले का अस्तित्व था । स्पष्ट है कि इस मुगल बादशाह ने हिंदू राजा रहे अनंगपाल सिंह तोमर द्वितीय के द्वारा निर्मित लालकोट को ही कुछ नया स्वरूप देकर कब्जाने का प्रयास किया था। उसी का नाम लालकोट के स्थान पर लालकिला कर दिया गया।
 
‘ तारीखे फिरोजशाही’ के पृष्ठ संख्या 160 (ग्रन्थ 3 ) में लेखक लिखता है कि- “सन 1296 के अंत में जब अलाउद्दीन खिलजी अपनी सेना लेकर दिल्ली आया तो वो कुश्क-ए-लाल ( लाल प्रासाद/ महल ) की ओर बढ़ा और वहाँ उसने आराम किया ।”
 
== भारत की ऐति ==