"मनु": अवतरणों में अंतर

काल क्रम में स्पष्टता हेतु जैनों के प्रथम तीर्थंकर का अन्य अवतारों के साथ काल रेखा स्पष्ट उल्लेख।
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संचित कर्म से वर्ण में जन्म का गीता में स्पष्टीकरण।
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== मनुस्मृति ==
{{मुख्य |मनुस्मृति}}
[[महाभारत]] में ८ मनुओं का उल्लेख है। [[शतपथ ब्राह्मण]] में मनु को श्रद्धादेव कहकर संबोधित किया गया है। [[भागवत पुराण|श्रीमद्भागवत]] में इन्हीं वैवस्वत मनु और श्रद्धा से मानवीय सृष्टि का प्रारंभ माना गया है। श्वेत वराह कल्प में १४ मनुओं का उल्लेख है। महाराज मनु ने बहुत दिनों तक इस [[पृथ्वी का हिन्दू वर्णन|सप्तद्वीपवती पृथ्वी]] पर राज्य किया। उनके राज्य में प्रजा बहुत सुखी थी। इन्हीं ने [[मनुस्मृति]] नामक ग्रन्थ की रचना की थी जो आज मूल रूप में उपलब्ध नहीं है। उसके अर्थ का अनर्थ ही होता रहा है। उसभगवद् कालगीता में वर्णपूर्व काजन्म अर्थके वरणसंचित होताकर्म था(वरणप्रभाव करनासे काविकसित अर्थसात्त्विक, हैराजसिक, धारणतामसिक करनातीन स्वीकारगुणों करना।के अर्थातयोग जिससे व्यक्तिउत्पन्न नेगुण जोके कार्यआधार करनापर स्वीकारवर्तमान याऔर धारणअगले कियाजन्म वहमें उसकावर्ण विशेष में जन्म होते है। वर्ण कहलाया)संकर कुल घाती होते हैं।
और आज जाति।
 
प्रजा का पालन करते हुए जब महाराज मनु को मोक्ष की अभिलाषा हुई तो वे संपूर्ण राजपाट अपने बड़े पुत्र उत्तानपाद को सौंपकर एकान्त में अपनी पत्नी शतरूपा के साथ [[नैमिषारण्य]] तीर्थ चले गए लेकिन उत्तानपाद की अपेक्षा उनके दूसरे पुत्र राजा प्रियव्रत की प्रसिद्धि ही अधिक रही। स्वायम्भु मनु के काल के ऋषि [[मरीचि]], [[अत्रि]], [[अंगिरा|अंगिरस]], [[पुलह]], [[कृतु]], [[पुलस्त्य]] और [[वशिष्ठ]] हुए। राजा मनु सहित उक्त ऋषियों ने ही मानव को सभ्य, सुविधा संपन्न, श्रमसाध्य और सुसंस्कृत बनाने का कार्य किया।
"https://hi.wikipedia.org/wiki/मनु" से प्राप्त