"मृदा प्रदूषण": अवतरणों में अंतर
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आज के समय मै जल की बहुत बड़ी समस्या है आज के समय में जल में गनदा पानी और नहा ना धोना आदि चीज़े करते है इसी वजह से जल प्रदूषण होता है टैग: Reverted References removed यथादृश्य संपादिका मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन |
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'''<span lang="mr" dir="ltr">मृदा</span> प्रदूषण''' मृदा में होने वाले [[प्रदूषण]] को कहते हैं। यह मुख्यतः कृषि में अत्यधिक कीटनाशक का उपयोग करने या ऐसे पदार्थ जिसे मृदा में नहीं होना चाहिए, उसके मिलने पर होता है। जिससे मृदा की उपज क्षमता में भी बहुत प्रभाव पड़ता है। इसी के साथ उससे [[जल प्रदूषण]] भी हो जाता
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भूमि पर्यावरण की आधारभूत इकाई होती है। यह एक स्थिर इकाई होने के नाते इसकी वृद्धि में बढ़ोत्तरी नहीं की जा सकती हैं। बड़े पैमाने पर हुए औद्योगीकरण एंव नगरीकरण ने नगरों में बढ़ती जनसंख्या एवं निकलने वाले द्रव एंव ठोस अवशिष्ट पदार्थ मिट्टी को प्रदूषित कर रहें के कारण आज भूमि में प्रदूषण अधिक फैल रहा है। ठोस कचरा प्राय: घरों, मवेशी-गृहों, उद्योगों, कृषि एवं दूसरे स्थानों से भी आता है। इसके ढेर टीलों का रूप ले लेते हैं क्योंकि इस ठोस कचरे में राख, काँच, फल तथा सब्जियों के छिल्के, कागज, कपड़े, प्लास्टिक, रबड़, चमड़ा, इंर्ट, रेत, धातुएँ मवेशी गृह का कचरा, गोबर इत्यादि वस्तुएँ सम्मिलित हैं। हवा में छोड़े गये खतरनाक रसायन सल्फर, सीसा के यौगिक जब मृदा में पहुँचते हैं तो यह प्रदूषित हो जाती है।
भूमि के भौतिक, रासायनिक या जैविक गुणों में ऐसा कोई भी अवाछिंत परिवर्तन, जिसका प्रभाव मनुष्य तथा अन्य जीवों पर पड़ें या जिससे भूमि की प्राकृतिक गुणवत्ता तथा उपयोगिता नष्ट हो भू-प्रदूषण कहलाता है। भूमि पर उपलब्ध चक्र भू-सतह का लगभग ५० प्रतिशत भाग ही उपयोग के लायक है और इसके शेष ५० प्रतिशत भाग में पहाड़, खाइयां, दलदल, मरूस्थल और पठार आदि हैं। यहाँ यह बताना आवश्यक है कि विश्व के ७९ प्रतिशत खाद्य पदार्थ मिट्टी से ही उत्पन्न होते हैं। इस संसाधन (भूमि) की महत्ता इसलिए और भी बढ़ जाती है कि ग्लोब के मात्र २ प्रतिशत भाग में ही कृषि योग्य भूमि मिलती है। अत: भूमि या मिट्टी एक अतिदुर्लभ (अति सीमित) संसाधन है। निवास एवं खाद्य पदार्थों की समुचित उपलब्धि के लिए इस सीमित संसाधन को प्रदूषण से बचाना आज की महती आवश्यकता हो गयी है। आज जिस गति से विश्व एवं भारत की जनसंख्या बढ़ रही है इन लोगों की भोजन की व्यवस्था करने के लिए भूमि को जरूरत से ज्यादा शोषण किया जा रहा है। जिसके परिणाम स्वरूप आज भूमि की पोषक क्षमता कम होती जा रही है। पोषकता बढ़ाने के लिए मानव इसमें रासायनिक उर्वरकों को एवं कीटनाशकों का जमकर इस्तेमाल कर रहा है।
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