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[[चित्र:Wool.www.usda.gov.jpg|right|thumb|300px|ऊन के लम्बे एवं छोटे रेशे]]
'''ऊन''' (Wool) मूलत: रेशेदार (तंतुमय) [[प्रोटीन]] है जो विशेष प्रकार की त्वचा की कोशिकाओं से निकलता है। ऊन पालतू भेड़ों से प्राप्त किया जाता है। किन्तु बकरी आदि अन्य जन्तुओं के बालों से भी ऊन बनाया जा सकता है। [[कपास]] के बाद इसी का सर्वाधिक महत्व है। इसके रेशें गर्मी के कुचालक होते हैं। सूक्ष्म दर्शक यंत्र से रेशे की सतह असमान आकर की, एक दूसरे पर चढ़ी हुई कोशिकाओं (सेल्स) से निर्मित दिखाई देती है। विभिन्न नस्लों की भेड़ों में इन कोशिकाओं का आकार और स्वरूप भी भिन्न-भिन्न होता है। महीन ऊन में कोशिकाओं के किनारे, मोटे ऊन के रेशों की अपेक्षा, अधिक निकट होते हैं। गर्मी और नमी के प्रभाव से ये रेशे आपस में गुँथ जाते हैं। इनकी चमक कोशिकायुक्त स्केलों के आकार और स्वरूप पर निर्भर रहती है। मोटे रेशे में चमक अधिक होती है। रेशें की भीतरी परत (मेडुल्ला) को महीन किस्मों में तो नहीं, किंतु मोटी किस्मों में देखा जा सकता है। मेडुल्ला में ही ऊन का रंगवाला अंश (पिगमेंट) होता है। मेडुल्ला की अधिक मोटाई रेशे की संकुचन शक्ति को कम करती है। कपास के रेशे से इसकी यह शक्ति एक चौथाई अधिक है।
'''ऊन''' (Wool) मूलत: रेशेदार (तंतुमय) [[प्रोटीन]] है जो विशेष प्रकार की त्वचा की कोशिकाओं से निकलता है। ऊन पालतू भेड़ों से प्राप्त किया जाता है। किन्तु बकरी आदि अन्य जन्तुओं के बालों से भी ऊन बनाया जा सकता है। [[कपास]] के बाद इसी का सर्वाधिक महत्व है। इसके रेशें गर्मी के कुचालक होते हैं।
 
'''ऊन''' (Wool) मूलत: रेशेदार (तंतुमय) [[प्रोटीन]] है जो विशेष प्रकार की त्वचा की कोशिकाओं से निकलता है। ऊन पालतू भेड़ों से प्राप्त किया जाता है। किन्तु बकरी आदि अन्य जन्तुओं के बालों से भी ऊन बनाया जा सकता है। [[कपास]] के बाद इसी का सर्वाधिक महत्व है। इसके रेशें गर्मी के कुचालक होते हैं। सूक्ष्म दर्शक यंत्र से रेशे की सतह असमान आकर की, एक दूसरे पर चढ़ी हुई कोशिकाओं (सेल्स) से निर्मित दिखाई देती है। विभिन्न नस्लों की भेड़ों में इन कोशिकाओं का आकार और स्वरूप भी भिन्न-भिन्न होता है। महीन ऊन में कोशिकाओं के किनारे, मोटे ऊन के रेशों की अपेक्षा, अधिक निकट होते हैं। गर्मी और नमी के प्रभाव से ये रेशे आपस में गुँथ जाते हैं। इनकी चमक कोशिकायुक्त स्केलों के आकार और स्वरूप पर निर्भर रहती है। मोटे रेशे में चमक अधिक होती है। रेशें की भीतरी परत (मेडुल्ला) को महीन किस्मों में तो नहीं, किंतु मोटी किस्मों में देखा जा सकता है। मेडुल्ला में ही ऊन का रंगवाला अंश (पिगमेंट) होता है। मेडुल्ला की अधिक मोटाई रेशे की संकुचन शक्ति को कम करती है। कपास के रेशे से इसकी यह शक्ति एक चौथाई अधिक है।
संभवत: बुनने के लिए ऊन का ही सर्वप्रथम उपयोग प्रारंभ हुआ। ऊनी वस्त्रों के टुकड़े मिस्र, बैबिलोन और निनेवेह की कब्रों, प्राथमिक ब्रिटेन निवासियों के झोपड़ों और पे डिग्री वासियों के अंशावशेषों के साथ मिले हैं। रोमन आक्रमण से पूर्व भी ब्रिटेन वासी इनका उपयोग करते थे। विंचेस्टर फ़ैक्ट्री की स्थापना ने इसकी उपयोगविधि का विकास किया। विजेता विलियम इसे इंग्लैंड तक लाया। हेनरी द्वितीय ने कानून, वस्त्रहाट और बुनकारी संघ बनाकर इस उद्योग को प्रोत्साहित किया। किंतु 18वीं शती के सूती वस्त्रोद्योग ने इसकी महत्ता को कम कर दिया। सन् 1788 में हार्टफोर्ड (अमरीका) में जल-शक्ति-चालित ऊन फेक्ट्री प्रांरभ हुई। इनके अतिरिक्त रूस, न्यूज़ीलैंड, अर्जेटाइना, आस्ट्रेलिया, चीन, भारत, दक्षिण अफ्रीका और ग्रेट ब्रिटेन उल्लेखनीय ऊन उत्पादक देश हैं। सन् 1957 में विश्व में 2,90,00,00,000 पाउंड ऊन उत्पन्न हुआ था।
 
==इतिहास==
ऊनी रेशों की किस्में–भेड़ों की नस्ल का ऊन के स्वरूप, लंबाई, रेशे के व्यास, चमक, मजबूती, बुनाई और सिकुड़न आदि पर बहुत असर पड़ता है। ऊन के रेशे पाँच वर्गों में बाँटे जा सकते हैं :
संभवत: बुनने के लिए ऊन का ही सर्वप्रथम उपयोग प्रारंभ हुआ। ऊनी वस्त्रों के टुकड़े मिस्र, बैबिलोन और निनेवेह की कब्रों, प्राथमिक ब्रिटेन निवासियों के झोपड़ों और पे डिग्री वासियों के अंशावशेषों के साथ मिले हैं। रोमन आक्रमण से पूर्व भी ब्रिटेन वासी इनका उपयोग करते थे। विंचेस्टर फ़ैक्ट्री की स्थापना ने इसकी उपयोगविधि का विकास किया। विजेता विलियम इसे इंग्लैंड तक लाया। हेनरी द्वितीय ने कानून, वस्त्रहाट और बुनकारी संघ बनाकर इस उद्योग को प्रोत्साहित किया। किंतु 18वीं शती के सूती वस्त्रोद्योग ने इसकी महत्ता को कम कर दिया। सन् 1788 में हार्टफोर्ड (अमरीका) में जल-शक्ति-चालित ऊन फेक्ट्री प्रांरभ हुई। इनके अतिरिक्त रूस, न्यूज़ीलैंड, अर्जेटाइना, आस्ट्रेलिया, चीन, भारत, दक्षिण अफ्रीका और ग्रेट ब्रिटेन उल्लेखनीय ऊन उत्पादक देश हैं। सन् 1957 में विश्व में 2,90,00,00,000 पाउंड ऊन उत्पन्न हुआ था।
 
==ऊनी रेशों की किस्में==
==ऊन का रेशा==
ऊनी रेशों की किस्में–भेड़ोंभेड़ों की नस्ल का ऊन के स्वरूप, लंबाई, रेशे के व्यास, चमक, मजबूती, बुनाई और सिकुड़न आदि पर बहुत असर पड़ता है। ऊन के रेशे पाँच वर्गों में बाँटे जा सकते हैं :
 
1. महीन ऊन, 2. मध्यम ऊन, 3. लंबा ऊन, 4. वर्णसंकर ऊन, और 5. कालीनी ऊन।
"https://hi.wikipedia.org/wiki/ऊन" से प्राप्त