"ऋषभदेव": अवतरणों में अंतर

रोहित साव27 के अवतरण 5099382पर वापस ले जाया गया : . (ट्विंकल)
टैग: किए हुए कार्य को पूर्ववत करना
No edit summary
टैग: Reverted
पंक्ति 33:
}}
 
भगवान '''ऋषभदेव''' [[जैन धर्म]] के प्रथम [[तीर्थंकर]] हैं।<ref>{{citation|title=" ऋषभदेव जी " |url=https://www.jainismknowledge.com/2020/05/rishabh-dev-ji.html|website=Jainism Knowledge}}</ref> तीर्थंकर का अर्थ होता है जो तीर्थ की रचना करें। जो संसार सागर (जन्म मरण के चक्र) से मोक्ष तक के तीर्थ की रचना करें, वह तीर्थंकर कहलाते हैं। ऋषभदेव जी को '''आदिनाथ''' भी कहा जाता है। भगवान ऋषभदेव वर्तमान अवसर्पिणी काल के प्रथम तीर्थंकर हैं। यें विष्णु भगवान के २४वें अवतारों में से छठे अवतार हैं <ref>{{Cite book|url=http://archive.org/details/RisabhaDeva-TheFounderOfJainism|title=Risabha Deva - The Founder of Jainism|last=Champat Rai Jain|date=1929|others=Sabyasachi Mishra|language=English|access-date=11 मई 2020|archive-url=https://web.archive.org/web/20160413013803/https://archive.org/details/RisabhaDeva-TheFounderOfJainism|archive-date=13 अप्रैल 2016|url-status=live}}</ref><ref>{{Cite book|url=http://archive.org/details/JainaArchaeology|title=ABC of Jainism|last=S. L. Jain|others=Maitree Samooh}}</ref><ref>{{Cite book|url=http://archive.org/details/Digambar|title=दिगम्बरत्व और दिगम्बर मुनि|last=Jain|first=Babu Kamtaprasad|date=1975}}</ref><ref>{{Cite book|url=http://archive.org/details/SvayambhuWebCover|title=Acarya Samantabhadra’s Svayambhustotra – Adoration of The Twenty-four Tirthankara|last=Vijay K. Jain|date=2015|access-date=11 मई 2020|archive-url=https://web.archive.org/web/20161014065046/https://archive.org/details/SvayambhuWebCover|archive-date=14 अक्तूबर 2016|url-status=live}}</ref>
 
== जीवन चरित्र ==
पंक्ति 60:
 
[[साँचा:हिन्दू दर्शन|वैदिक दर्शन ]] में [[ऋग्वेद]], [[अथर्ववेद संहिता|अथर्ववेद]] ,अठारह [[पुराण|पुराणों]] व [[मनुस्मृति]] जैसे अधिकाँश ग्रंन्थो मे ऋषभदेव का वर्णन आता है |<ref>{{Cite book|title=An Antiquty of Jainism|last=Bothra|first=Lata|publisher=Shri Jain Swetamber Khartargachha Sangha, Kolkata
Chaturmass Prabandh Samiti|year=२००६|isbn=|location=Kolkata|pages=१३६}}</ref>
Chaturmass Prabandh Samiti|year=२००६|isbn=|location=Kolkata|pages=१३६}}</ref> [[साँचा:हिन्दू दर्शन|वैदिक दर्शन]] में ऋषभदेव को विष्णु के 24 अवतारों में से एक के रूप में संस्तवन किया गया है। वहीं [[शिव पुराण]] मे इन्हे [[शिव|शिवजी]] के अवतार के रुप मे स्थान दिया गया है |
 
[[भागवत पुराण|भागवत]] में ''अर्हन्'' राजा के रूप में इनका विस्तृत वर्णन है। [[भागवत पुराण|श्रीमद्भागवत्]] के पाँचवें स्कन्ध के अनुसार मनु के पुत्र प्रियव्रत के पुत्र आग्नीध्र हुये जिनके पुत्र राजा नाभि (जैन धर्म में नाभिराय नाम से उल्लिखित) थे। राजा नाभि के पुत्र ऋषभदेव हुये जो कि महान प्रतापी सम्राट हुये। भागवत् पुराण अनुसार भगवान ऋषभदेव का विवाह [[इन्द्र]] की पुत्री [[जयन्ती]] से हुआ। इससे इनके सौ पुत्र उत्पन्न हुये। उनमें [[भरत चक्रवर्ती]] सबसे बड़े एवं गुणवान थे ये भरत ही भारतवर्ष के प्रथम चक्रवर्ती सम्राट हुए;जिनके नाम से भारत का नाम भारत पड़ा |<ref>श्रीमद्धभागवत पंचम स्कन्ध, चतुर्थ अध्याय, श्लोक ९</ref> उनसे छोटे कुशावर्त, इलावर्त, ब्रह्मावर्त, मलय, केतु, भद्रसेन, इन्द्रस्पृक, विदर्भ और कीकट ये नौ राजकुमार शेष नब्बे भाइयों से बड़े एवं श्रेष्ठ थे। उनसे छोटे कवि, हरि, अन्तरिक्ष, प्रबुद्ध, पिप्पलायन, आविर्होत्र, द्रुमिल, चमस और करभाजन थे।