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[[चित्र:Tomb of Muhammad of Ghor 2.jpg|thumb|right|सोहावा झेलम, पाकिस्तान में मोहम्मद ग़ौरी का मक़बरा]]
|name=मुइज़ुद्दीन मुहम्मद ग़ौरी
'''शहाब-उद-दीन मोहम्मद ग़ोरी''' १२वीं शताब्दी का अफ़ग़ान सेनापति था जो १२०२ ई. में [[ग़ोरी साम्राज्य]] का शासक बना। सेनापति की क्षमता में उसने अपने भाई ग़ियास-उद-दीन ग़ोरी (जो उस समय सुल्तान था) के लिए [[भारतीय उपमहाद्वीप]] पर ग़ोरी साम्राज्य का बहुत विस्तार किया और उसका पहला आक्रमण [[मुल्तान]] (११७५ ई.) पर था। [[पाटन]] (गुजरात) के शासक भीम द्वितीय पर मोहम्मद ग़ौरी ने ११७८ ई. में आक्रमण किया किन्तु मोहम्मद ग़ौरी बुरी तरह पराजित हुआ।
|image=File:Shahabuddin Suri.jpg
|caption=मुहम्मद ग़ौरी
|reign=1173–1202 (अपने भाई ग़ियासुद्दीन मुहम्मद के साथ); <br />1202–1206 (बतौर एकल शासक)
|predecessor=ग़ियासुद्दीन मुहम्मद
|successor=[[ग़ोर प्रान्त|ग़ौर]]: ग़ियासुद्दीन महमूद (बतौर ग़ौर का [[अमीर]])<br />[[ग़ज़नी]]: ताजुद्दीन यल्दोज़ (as बतौर ग़ज़नी का अमीर)<br /> दिल्ली: [[कुतुब-उद-दीन ऐबक|क़ुतुबुद्दीन ऐबक]] (बतौर दिल्ली का [[सुल्तान]])<br />बंगाल: [[मुहम्मद बिन बख़्तयार ख़िलजी]] (बतौर बंगाल का सुल्तान)<br />मुल्तान: नासिरुद्दीन क़ुबाचा (बतौर मुल्तान का सुल्तान)
|birth_name=शहाबुद्दीन
|birth_date=1149
|birth_place=[[ग़ोर प्रान्त|ग़ौर]]
|regnal name=सुल्तान शहाबुद्दीन मुहम्मद ग़ौरी
|death_date=15 मार्च 1206
|death_place=[[झेलम ज़िला]]
|burial_place=[[झेलम ज़िला]]
|house=[[ग़ोरी राजवंश|ग़ौरी]]
|father=बहालुद्दीन साम प्रथम
|succession=ग़ौरी साम्राज्य का सुल्तान}}
 
'''शहाब-उद-दीनशहाबुद्दीन''' मोहम्मद<bdi>उर्फ़</bdi> ग़ोरी'''मुइज़ुद्दीन मुहम्मद ग़ौरी''' १२वीं शताब्दी का अफ़ग़ान सेनापति था जो १२०२ ई. में [[ग़ोरी राजवंश|ग़ौरी साम्राज्य]] का शासक[[सुल्तान]] बना। सेनापति की क्षमता में उसने अपने भाई ग़ियास-उद-दीन ग़ोरी (जो उस समय सुल्तान था) के लिए [[भारतीय उपमहाद्वीप]] पर ग़ोरी साम्राज्य का बहुत विस्तार किया और उसका पहला आक्रमण [[मुल्तान]] (११७५ ई.) पर था। [[पाटन]] (गुजरात) के शासक भीम द्वितीय पर मोहम्मद ग़ौरी ने ११७८ ई. में आक्रमण किया किन्तु मोहम्मद ग़ौरी बुरी तरह पराजित हुआ।
 
मोहम्मद ग़ोरी और [[पृथ्वीराज चौहान]] के बीच तराईन के मैदान में दो युद्ध हुए। ११९१ ई. में हुए तराईन के प्रथम युद्ध में पृथ्वीराज चौहान की विजय हुई किन्तु अगले ही वर्ष ११९२ ई. में पृथ्वीराज चौहान को तराईन के द्वितीय युद्ध में मोहम्मद ग़ोरी ने बुरी तरह पराजित किया। मोहम्मद ग़ोरी ने चंदावर के युद्ध (११९४ ई.) में दिल्ली के गहड़वाल वंश के शासक [[जयचंद]] को पराजित किया। मोहम्मद ग़ौरी ने भारत में विजित साम्राज्य का अपने सेनापतियों को सौप दिया और वह गज़नी चला गया। बाद में गोरी के गुलाम [[कुतुबुद्दीन ऐबक]] ने [[गुलाम राजवंश]] की स्थापना की ।
 
== जीवनी ==
[[ग़ोरी राजवंश]] की नीव अला-उद-दीन जहानसोज़ ने रखी और सन् ११६१ में उसके देहांत के बाद उसका पुत्र सैफ़-उद-दीन ग़ोरी सिंहासन पर बैठा। अपने मरने से पहले अला-उद-दीन जहानसोज़ ने अपने दो भतीजों - शहाब-उद-दीनशहाबुद्दीन (जो आमतौर पर [[मुहम्मद ग़ोरी]] कहलाता है) और ग़ियास-उद-दीन - को क़ैद कर रखा था लेकिन सैफ़-उद-दीन ने उन्हें रिहा कर दिया।<ref name="ref11varad">[http://books.google.com/books?id=y4dCAAAAIAAJ The history of India: the Hindu and Mahometan periods], Mountstuart Elphinstone, pp. 358-359, J. Murray, 1889, ''... the first act of that son, Seif ud din, was to release his cousins and restore them to their governments ...''</ref> उस समय ग़ोरी वंश [[ग़ज़नवी राजवंश|ग़ज़नवियों]] और [[सलजूक़ साम्राज्य|सलजूक़ों]] की अधीनता से निकलने के प्रयास में था। उन्होंने ग़ज़नवियों को तो ११४८-११४९ में ही ख़त्म कर दिया था लेकिन सलजूक़ों का तब भी ज़ोर था और उन्होंने कुछ काल के लिए [[ग़ोर प्रान्त]] पर सीधा क़ब्ज़ा कर लिए था, हालांकि उसके बाद उसे ग़ोरियों को वापस कर दिया था।
 
सलजूक़ों ने जब इस क्षेत्र पर नियंत्रण किया था जो उन्होंने सैफ़-उद-दीन की पत्नी के ज़ेवर भी ले लिए थे। गद्दी ग्रहण करने के बाद एक दिन सैफ़-उद-दीन ने किसी स्थानीय सरदार को यह ज़ेवर पहने देख लिया और तैश में आकर उसे मार डाला। जब मृतक के भाई को कुछ महीनो बाद मौक़ा मिला तो उसने सैफ़-उद-दीन को बदले में भाला मरकर मार डाला। इस तरह सैफ़-उद-दीन का शासनकाल केवल एक वर्ष के आसपास ही रहा।<ref name="ref11varad"/> ग़ियास-उद-दीन नया शासक बना और उसके छोटे भाई शहाब-उद-दीनशहाबुद्दीन ने उसका राज्य विस्तार करने में उसकी बहुत वफ़ादारी से मदद करी। शहाब-उद-दीनशहाबुद्दीन (उर्फ़ मुहम्मद ग़ोरी) ने पहले ग़ज़ना पर क़ब्ज़ा किया, फिर ११७५ में [[मुल्तान]] और [[ऊच]] पर और फिर ११८६ में [[लाहौर]] पर। जब उसका भाई १२०२ में मरा तो शहाब-उद-दीनशहाबुद्दीन मुहम्मद ग़ोरी सुलतान बन गया।
 
इस भ्रम के लिए कि मुहम्मद गौरी का पृथ्वीराज चौहान से 16 बार युद्ध हुआ था। कृप्या [[महमूद ग़ज़नवी]] का लेख देखें।
 
== मृत्यु और देहान्तोपरांत ==
15 मार्च १२०६ में आधुनिक पाकिस्तान के [[झेलम ज़िला|झेलम क्षेत्र]] में नदी के किनारे मुहम्मद ग़ोरी को [[खोखर]] नामक [[जाटों]] उपसमूह के लोगों ने बदला लेने के लिए मार डाला।<ref name="ref48quqiv">[http://books.google.com/books?id=Pd80dn6A8XAC Book Of Muinuddin Chishti] {{Webarchive|url=https://web.archive.org/web/20131103182004/http://books.google.com/books?id=Pd80dn6A8XAC|date=3 नवंबर 2013}}, Mehru Jaffer, pp. 121, Penguin Books India, 2008, ISBN 978-0-14-306518-0, ''... Resistance to Ghori by Rajputs also continued and it was not until Ghori's murder in 1206 by a Khokhar Jats tribesman on the banks of the Indus river in modern-day Punjab that relative calm returned to Ajmer. Since Ghori had no sons, he treated thousands of slaves employed by him like his sons ... Qutubuddin Aibak, his favourite slave, took his place as head of the Indian conquests with Delhi as his capital ...''</ref> मुहम्मद ग़ोरी का कोई बेटा नहीं था और उसकी मौत के बाद उसके साम्राज्य के भारतीय क्षेत्र पर उसके प्रिय ग़ुलाम [[क़ुतुब-उद-दीन ऐबक]] ने [[दिल्ली सल्तनत]] स्थापित करके उसका विस्तार करना शुरू कर दिया। उसके अफ़ग़ानिस्तान व अन्य इलाक़ों पर ग़ोरियों का नियंत्रण न बच सका और ख़्वारेज़्मी साम्राज्य ने उन पर क़ब्ज़ा कर लिया। ग़ज़ना और ग़ोर कम महत्वपूर्ण हो गए और [[दिल्ली]] अब क्षेत्रीय इस्लामी साम्राज्य का केंद्र बन गया। इतिहासकार सन् १२१५ के बाद ग़ोरी साम्राज्य को पूरी तरह विस्थापित मानते हैं।[[चित्र:Tomb of Muhammad of Ghor 2.jpg|thumb|right|सोहावा झेलम, पाकिस्तान में मुहम्मद ग़ौरी का मक़बरा]]
 
== इन्हें भी देखें ==
* [[ग़ोरी राजवंश]]