"भाई मनसुख": अवतरणों में अंतर
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गुरु नानकजी बचपन से ही हरदिन संध्या के समय अपने मित्रों के साथ बैठकर सत्संग/भजन/किर्तन किया करते थे. उनके प्रिय मित्र भाई मनसुख ने सबसे पहले नानक की वाणियों का संकलन किया था. कहा जाता है कि नानक जब वेईनदी में उतरे, तो तीन दिन बाद प्रभु से साक्षात्कार करने पर ही बाहर निकले. ज्ञान प्राप्ति के बाद उनके पहले शब्द थे- '''एक ओंकार सतनाम'''.
मनसुख जी ने दक्षिण भारत और श्रीलंका के आसपास सिख विचारों का प्रचार किया। संगलदीप के राजा शिवनाभ के प्रभाव में सिख विचार स्वीकार किया। उन्होंने शिवनाभ को बताया कि गुरु नानक धार्मिक यात्रा पर हैं और आपके श्रीलंका क्षेत्र का दौरा करेंगे। सिख प्रचार एव गुरु कि उदासियो मे बंजारोकी एहम भुमिका है..
[[श्रेणी:सिख धर्म]]
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