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== मृतसंजीवनी मंत्र ==
 
ॐॐॐॐॐॐॐॐ (“निरंजनो निराकरो एको देवो महेश्वर:। मृत्यू मुखम् गतात् प्राणं बलात रक्षति:॥ ) ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ ॐॐॐॐॐॐॐॐॐ ( ॐकारं बिन्दु संयुक्तं नित्यं ध्यायन्ति योगिनः । कामदं मोक्षदं चैव ॐकाराय नमो नमः ॥ ) ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ हर एक से पूछ के देख लिया ! हर एक से पूछ के देख लिया ! एक हर से पूछना बाकि है ! हर दर पे लुट के देख लिया ! हरी दर पे लुटना बाकि है ! "पुनरपि जननं, पुनरपि मरणं, पुनरपि जननी जठरे शयनं ! इह संसारे खलु दुस्सारे कृपया पाहि पार मुरारे"
 
 
!!! जीवन जीने की कला !!!
!!! मृतसंजीवनी मंत्र के चमत्कार !!!
 
 
 
आज की बदलती जीवन शैली के चलते एक से बढ़ कर एक नई-नई बीमारियां हमें घेरने लगी हैं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार एक से अधिक मार केश की दशा, अंतर्दशा या प्रत्यंतर्दशा का हमारे स्वास्थ्य और जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
 
असाध्य व गम्भीर व्याधियों से ग्रस्त व्यक्ति मृत्यु पर विजय प्राप्त करने व असामयिक निधन से बचाव के लिए मृत्युंजय मंत्र का जप व होम काफी लाभकारी माना गया है। तंत्रशास्त्र में मृत्युंजय मंत्र और गायत्री मंत्र के योग से बना यह मंत्र मृत संजीवनी के नाम से जाना जाता है, जिसका चैत्र मास में जप व होम करने से बड़ी से बड़ी बीमारियों से भी मुक्ति पाई जा सकती है-
 
विभिन्न प्रयोजनों में अनिष्टता के मान से 1 करोड़ 24 लाख, सवा लाख, दस हजार या एक हजार महामृत्युंजय जप करने का विधान उपलब्ध होता है। मंत्र दिखने में जरूर छोटा दिखाई देता है, किन्तु प्रभाव में अत्यंत चमत्कारी है।
 
देवता मंत्रों के अधीन होते हैं- मंत्रधीनास्तु देवताः।
 
 
मंत्रों से देवता प्रसन्न होते हैं। मंत्र से अनिष्टकारी योगों एवं असाध्य रोगों का नाश होता है तथा सिद्धियों की प्राप्ति भी होती है। ऋग्वेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद, तैत्तिरीय संहिता एवं निरुवतादि मंत्र शास्त्रीय ग्रंथों में त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्द्धनम्‌ उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्‌। उक्त मंत्र मृत्युंजय मंत्र के नाम से प्रसिद्ध है।
 
शिवपुराण में सतीखण्ड में इस मंत्र को 'सर्वोत्तम' महामंत्र' की संज्ञान से विभूषित किया गया है-
 
 
मृत संजीवनी मंत्रों मम सर्वोत्तम स्मृतः।
 
इस मंत्र को शुक्राचार्य द्वारा आराधित 'मृतसंजीवनी विद्या' के नाम से भी जाना जाता है। नारायणणोपनिषद् एवं मंत्र सार में- मृत्युर्विनिर्जितो यस्मात तस्मान्यमृत्युंजय स्मतः अर्थात्‌ मृत्यु पर विजय प्राप्त करने के कारण इन मंत्र योगों को 'मृत्युंजय' कहा जाता है। सामान्यतः मंत्र तीन प्रकार के होते हैं-
 
वैदिक, तांत्रिक, एवं शाबरी। इनमें वैदिक मंत्र शीघ्र फल देने वाले त्र्यम्बक मंत्र भी वैदिक मंत्र हैं।
 
मृत्युंजय जप, प्रकार एवं प्रयोगविधि का मंत्र महोदधि, मंत्र महार्णव, शारदातिक, मृत्युंजय कल्प एवं तांत्र, तंत्रसार, पुराण आदि धर्मशास्त्रीय ग्रंथों में विशिष्टता से उल्लेख है।
 
मृत्युंजय मंत्र तीन प्रकार के हैं-
 
पहला मंत्र और महामृत्युंजय मंत्र। पहला मंत्र तीन व्यह्यति- भूर्भुवः स्वः से सम्पुटित होने के कारण मृत्युंजय,
 
दूसरा ॐ हौं जूं सः (त्रिबीज) और भूर्भुवः स्वः (तीन व्याह्यतियों) से सम्पुटित होने के कारण 'मृतसंजीवनी'
 
तथा उपर्युक्त हौं जूं सः (त्रिबीज) तथा भूर्भुवः स्वः (तीन व्याह्यतियों) के प्रत्येक अक्षर के प्रारंभ में ॐ का सम्पुट लगाया जाता है। इसे ही शुक्राचार्य द्वारा आराधित महामृत्युंजय मंत्र कहा जाता है।
 
 
 
"ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥"
 
 
 
ॐ हौं जूं स: ॐ भूर्भुवः स्वः
ॐ त्र्यम्बकम् यजामहे सुगन्धिम्पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनात् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात।।
ॐ स्वः भुवः भूः ॐ सः जूं हौं ॐ
 
* शुक्राचार्य द्वारा आराधित *
 
ॐ हौं जूं स: ॐ भूर्भुव: स्व: ॐ त्र्यबकंयजामहे
 
ॐ तत्सर्वितुर्वरेण्यं ॐ सुगन्धिंपुष्टिवर्धनम्
 
ॐ भर्गोदेवस्य धीमहि ॐ उर्वारुकमिव बंधनान्
 
ॐ धियो योन: प्रचोदयात् ॐ मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्
 
ॐ स्व: ॐ भुव: ॐ भू: ॐ स: ॐ जूं ॐ हौं ॐ ।।
 
 
इस मंत्र का अर्थ है : हम भगवान शंकर की पूजा करते हैं, जिनके तीन नेत्र हैं, जो प्रत्येक श्वास में जीवन शक्ति का संचार करते हैं, जो सम्पूर्ण जगत का पालन-पोषण अपनी शक्ति से कर रहे हैं... उनसे हमारी प्रार्थना है कि वे हमें मृत्यु के बंधनों से मुक्त कर दें, जिससे मोक्ष की प्राप्ति हो जाए... जिस प्रकार एक ककड़ी अपनी बेल में पक जाने के उपरांत उस बेल-रूपी संसार के बंधन से मुक्त हो जाती है, उसी प्रकार हम भी इस संसार-रूपी बेल में पक जाने के उपरांत जन्म-मृत्यु के बन्धनों से सदा के लिए मुक्त हो जाएं, तथा आपके चरणों की अमृतधारा का पान करते हुए शरीर को त्यागकर आप ही में लीन हो जाएं.
 
इस मंत्र के जप से असाध्य रोग कैंसर, क्षय, टाइफाइड, हैपेटाइटिस बी, गुर्दे, पक्षाघात, ब्रेन ट्यूमर जैसी बीमारियों को दूर करने में भी मदद मिलती है। इस मंत्र का प्रतिदिन विशेषकर सोमवार को 101 जप करने से सामान्य व्याधियों के साथ ही मानसिक रोग, डिप्रैशन व तनाव आदि दूर किए जा सकते हैं।
 
तेज बुखार से शांति पाने के लिये औंगा की समिधाओं द्वारा पकाई गई दूध की खीर से हवन करवाना चाहिए। मृत्यु-भय व अकाल मृत्यु निवारण के लिए हवन में दही का प्रयोग करना चाहिए।
 
 
इतना ही नहीं मृत्युंजय जप व हवन से शनि की साढ़ेसाती, वैधव्य दोष, नाड़ी दोष, राजदंड, अवसादग्रस्त मानसिक स्थिति, चिंता व चिंता से उपजी व्यथा को कम किया जा सकता है। भयंकर बीमारियों के लिए मृत्युंजय मंत्र के सवा लाख जप व उसका दशमांश का हवन करवाना उत्तम रहता है।
 
 
प्राय: हवन के समय अग्निवास, ब्रह्मचर्य पालन, सात्विक भोजन व विचार, शिव पर पूर्ण श्रद्धा व भक्तिभाव पर विशेष ध्यान रखना चाहिए। जप के बाद बटुक भैरव स्तोत्र का पाठ व इस दौरान घी का दीपक प्रज्ज्वलित रखना चाहिए। जप के साथ हवन व तर्पण और मार्जन के साथ ही साथ हवन की समाप्ति में ब्राह्मणों को भोजन करवा कर दान देना उत्तम माना गया है। जप व हवन का कार्य चैत्र मास में किसी पवित्र तीर्थ स्थल, शिवालय, नदी, सरोवर, पर्वतादि के पास शिवलिंग बनाकर करना चाहिए।
 
 
 
 
महामृत्युमञ्जय मंत्र : "मृत्यु को जीतने वाला महान मंत्र"
 
भक्ति में अविश्वास की कोई जगह नहीं होती।
आस्था और भरोसा ही वह कारण है, जिनके बूते ही भक्त और भगवान का मिलन हो जाता है।
धर्मशास्त्र भी यही कहते हैं कि प्रेम और भाव ईश्वर को भी भक्त के पास आने को मज़बूर करती है।
भगवान शिव भी ऐसे ही देवता माने जाते हैं, जो भक्तो की थोड़ी ही उपासना से प्रसन्न हो जाते हैं।
शिव की प्रसन्नता के ही इन उपायों में महामृत्युञ्जय मंत्र को बहुत ही अचूक माना जाता है। यह मंत्र रोग, शोक, काल और कलह कोदूर करने वाला माना गया है। शिव के इस मंत्र का अलग-अलग रूप और संख्या में जप बहुत ही असरदार माना जाता है। लेकिन इसकेलिए यह भी जरूरी है कि भक्त पूरी पवित्रता के साथ परोपकार व निस्वार्थ भावना रख शिव का ध्यान करे।
 
शिव पुराण के मुताबिक जानिए, कितनी संख्या में शिव के इस महामंत्र को बोलने या जप करने से मनचाहे सुख पाने के अलावा क्या-क्या चमत्कार हो जाते हैं
 
 
जानें, कितनी बार महामृत्युञ्जय मंत्र बोलने पर क्या हो जाता है?
 
 
महामृत्युञ्जय मंत्र के एक लाख जप करने पर शरीर हर तरह से पवित्र हो जाता है। यानी सारे दर्द, रोग या कलह दूर हो जाते हैं।
दो लाख मंत्र जप पूरे होने पर पूर्वजन्म की बातें याद आ जाती हैं।
तीन लाख मंत्र जप पूरे होने पर सभी मनचाही सुख-सुविधा और वस्तुएं मिल जाती है।
चार लाख मंत्र जप पूरे होने पर भगवान शिव सपनों में दर्शन देते हैं।
पांच लाख महामृत्युञ्जय मंत्र पूरे होते ही भगवान शिव तुरंत ही भक्त के सामने प्रकट हो जाते हैं।
महामृत्युञ्जय मंत्र - मृत्यु को जीतने वाला महान मंत्र, जिसे त्रयंबकम मंत्र भी कहा जाता है l ऋग्वेद का एक श्लोक है, यह त्रयंबक"त्रिनेत्रों वाला", रुद्र का विशेषण जिसे बाद में शिव के साथ जोड़ा गया l
महामृत्युञ्जय मंत्र यजुर्वेद के रूद्र अध्याय स्थित एक मंत्र है, यह श्लोक यजुर्वेद में भी आता है ।
इसमें शिव की स्तुति की गयी है । शिव को 'मृत्यु को जीतने वाला' माना जाता है।
 
यह मंत्र सर्वाधिक फल देने वाला माना गया है।
 
डॉ.नीरज भारद्वाज
मुरैना म.प्र.
9340086890
9827908404 [[सदस्य:Dr.neeraj bhardwaj|Dr.neeraj bhardwaj]] ([[सदस्य वार्ता:Dr.neeraj bhardwaj|वार्ता]]) 18:28, 6 जून 2021 (UTC)
 
== मनसा देवी अद्भुत शक्ति ==
 
मनसा देवी को भगवान शिव की मानस पुत्री के रूप में पूजा जाता है। इनका प्रादुर्भाव मस्तक से हुआ है इस कारण इनका नाम मनसा पड़ा। महाभारतके अनुसार इनका वास्तविक नाम जरत्कारु है और इनके समान नाम वाले पति मुनि जरत्कारु तथा पुत्र आस्तिक जी हैं। इन्हें नागराज वासुकी की बहन के रूप में पूजा जाता है, प्रसिद्ध मंदिर एक शक्तिपीठ पर हरिद्वार में स्थापित है। इन्हें शिव की मानस पुत्री माना जाता है परंतु कई पुरातन धार्मिक ग्रंथों में इनका जन्म कश्यप के मस्तक से हुआ हैं, ऐसा भी बताया गया है। कुछ ग्रंथों में लिखा है कि वासुकि नाग द्वारा बहन की इच्छा करने पर शिव नें उन्हें इसी कन्या का भेंट दिया और वासुकि इस कन्या के तेज को न सह सका और नागलोक में जाकर पोषण के लिये तपस्वी हलाहल को दे दिया। इसी मनसा नामक कन्या की रक्षा के लिये हलाहल नें प्राण त्यागा।
 
सामान्य तथ्य मनसा देवी, अन्य नाम ...
मूल
 
माँँ मनसा देवी
ग्रीस में भी मनसा नामक देवी का प्रसंग आता है। इन्हें कश्यप की पुत्री तथा नागमाता के रूप में माना जाता था तथा साथ ही शिव पुत्री, विष की देवी के रूप में भी माना जाता है। 14 वी सदी के बाद इन्हे शिव के परिवार की तरह मंदिरों में आत्मसात किया गया। यह मान्यता भी प्रचलित है कि इन्होने शिव को हलाहल विष के पान के बाद बचाया था, परंतु यह भी कहा जाता है कि मनसा का जन्म समुद्र मंथन के बाद हुआ।
 
विष की देवी के रूप में इनकी पूजा झारखंड बिहार और बंगाल बड़े धूमधाम से हिन्दी और बंग्ला पंचांग के अनुसार भादो महीने मे पूरी माह इनकी स्तुति होती है ।।
 
इनके 12 नामों के जाप से नाग व सर्प का भय नहीं रहता और उसके वंश की वृद्धि होती हैं।
 
ये नाम इस प्रकार है जरत्कारु, जगद्गगौरी, मनसादेवी, सिद्धि योगिनी, वैष्णवी, नाग भगिनी, शैवी, नागेश्वरी, जरत्कारुप्रिया, आस्तिक माता, महाज्ञानयुता और विषहरी।
 
रूप
 
मनसा देवी आस्तिक को गोद में लिए हुए, 10वीँ सदी पाल वंश, बिहार।
मनसा देवी मुख्यत: सर्पों से आच्छादित तथा कमल पर विराजित हैं 7 नाग उनके रक्षण में सदैव विद्यमान हैं। कई बार देवी के चित्रों तथा भित्ति चित्रों में उन्हें एक बालक के साथ दिखाया गया है जिसे वे गोद में लिये हैं, वह बालक देवी का पुत्र आस्तिक है।
 
उपाख्यान
महाभारत
पाण्डुवंश में पाण्डवों में से एक धनुर्धारी अर्जुन और उनकी द्वितीय पत्नी सुभद्रा जो श्री कृष्ण की बहन हैं, उनके पुत्र अभिमन्यु हुआ जो महाभारत के युद्ध में मारा गया। अभिमन्यु का पुत्र परीक्षित हुआ, जिसकी मृत्यु तक्षक सर्प के काटने से हुई। परीक्षित पुत्र जन्‍मेजय ने अपने छ: भाइयों के साथ प्रतिशोध में सर्प जाति के विनाश के लिये सर्पेष्ठी यज्ञ किया। वासुकी ने अपनी बहन मनसा का विवाह किया तथा उसके पुत्र आस्तिक नें सर्पों को यज्ञ से बचाया।
 
राजा युधिष्ठिर ने भी माता मानसा की पूजा की थी जिसके फल स्वरूप वह महाभारत के युद्ध में विजयी हुए। जहाँ युधिष्ठिर ने पूजन किया वहाँ सालवन गाँव में भव्य मंदिर का निर्माण हुआ।
 
पुराण
अलग अलग पुराणों में मनसा की अलग अलग किंवदंती है। पुराणों में बताया गया है कि इनका जन्म कश्यप के मस्तिष्क से हुआ तथा मनसा किसी भी विष से अधिक शक्तिशाली थी इसलिये ब्रह्मा ने इनका नाम विषहरी रखा।
 
विष्णु पुराण
विष्णु पुराण के चतुर्थ भाग में एक नागकन्या का वर्णन है जो आगे चलकर मनसा के नाम से प्रचलित हुई।
 
ब्रह्मवैवर्त पुराण
ब्रह्मवैवर्त पुराण के अंतर्गत एक नागकन्या थी जो शिव तथा कृष्ण की भक्त थी। उसने कई युगों तक तप किया तथा शिव से वेद तथा कृष्ण मंत्र का ज्ञान प्राप्त किया जो मंत्र आगे जाकर कल्पतरु मंत्र के नाम से प्रचलित हुआ। उस कन्या ने पुष्कर में तप कर कृष्ण के दर्शन किए तथा उनसे सदैव पूजित होने का वरदान प्राप्त किया।
 
मंगलकाव्य
 
मनसा की प्रतिमा सुन्दरवन।
मंगलकाव्य बंगाल में 13वीं तथा 18वीं शताब्दी में लिखित काव्य है जो कई देवताओं के संदर्भ में लिखित हैं। विजयगुप्त का मनसा मंगल काव्य और विप्रदास पिल्ले का मनसाविजय (1495) मनसा के जन्म का वृत्तांत बताते हैं।
 
मनसाविजय के अनुसार वासुकि नाग की माता नें एक कन्या की प्रतिमा का निर्माण किया जो शिव वीर्य से स्पर्श होते ही एक नागकन्या बन गई, जो मनसा कहलाई। जब शिव ने मनसा को देखा तो वे मोहित हो गए, तब मनसा ने बताया कि वह उनकी बेटी है, शिव मनसा को लेकर कैलाश गए। माता पार्वती नें जब मनसा को शिव के साथ देखा तब चण्डी रूप धारण कर मनसा के एक आँख को अपने दिव्य नेत्र तेज से जला दिया। मनसा ने ही शिव को हलाहल विष से मुक्त किया था।
 
माता पार्वती ने मनसा का विवाह भी खराब किया, मनसा को सर्पवस्त्र पहनने को कहकर कक्ष में एक मेंढक डाल दिया। जगत्कारु भाग गये थे, बाद में जगत्कारु तथा मनसा से आस्तिक का जन्म हुआ।
 
मंत्र- मनसा देवी का सोलह उपचारों से( 1.संकल्प, 2.आवाहन-प्रतिष्ठा, 3.आसन, 4.पाध, 5.अर्ध्य,6.आचमन,7.स्नानः-दुग्ध,दधि,घृत,मधु,शर्करा,पञ्चामृत, शुद्धधोदक,8.वस्त्र,9.यज्ञोपवीत,10.गन्ध,
 
11.रोली:अक्षत,पुष्प,पुष्प माला,सिन्दूर, सौभाग्य द्रव्य 12.वस्त्र-आभूषण,13.धूप, 14.दीप,15.नैवेध,16.आचमन,फल,ताम्बूल,दक्षिणा, आरती-प्रार्थना) पूजन करके - "ऊँ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं मनसादेव्यै स्वाहा। " का 5 लाख जाप करने से मन्त्र सिद्ध हो जाता है।
 
फल -- जिसको यह मंत्र सिद्ध जाता है उसके हाथों में अमृत का प्रभाव आ जाता है । ये सर्प काटे से लेकर किसी भी रोगी को अपने हाथो से छू दें ,तो रोगी को आराम मिलता है। इस प्रकार से उस व्यक्ति को स्पर्श चिकित्सा की शक्ति प्राप्त हो जाती है।
 
मंदिर
मनसा देवी मंदिर, हरिद्वार
 
मनसा देवी मंदिर, हरिद्वार।
यह मंदिर अत्यंत ही प्रसिद्ध है तथा हरिद्वार से 3 किमी की दूरी पर स्थित है। यहाँ पर माता शक्तिपीठ पर स्थापित दुख दूर करतीं हैं। यहाँ 3 मंदिर हैं। यहाँ के एक वृक्ष पर सूत्र बाँधा जाता है परंतु मनसा पूर्ण होने के बाद सूत्र निकालना आवश्यक है।
 
यह मंदिर सुबह ८ बजे से शाम ५ बजे तक खुला रहता है। दोपहर में 2 घंटे के लिए १२ से २ तक मंदिर के पट बंद कर दिए जाते है जिसमे माँ मनसा का श्रृंगार और भोग लगता है। मंदिर परिसर में एक पेड़ है जिसपे भक्त मनोकामना पूर्ति के लिए एक पवित्र धागा बांधते है।
 
मनसा देवी मंदिर, पंचकूला
 
मनसा देवी मंदिर के पास पटियाला मंदिर।
माता मनसा चंडीगढ़ के समीप पंचकूला में विराजमान होकर दुख दूर करतीं हैं। यहाँ नवरात्रि में भव्य मेले का आयोजन प्रतिवर्ष होता है, यह 100 एकड़ में फैला विशाल मंदिर है। यह मंदिर सन् 1811-1815 के मध्य राजा गोलासिह द्वारा बनवाया गया था।
 
यातायात सुविधा
चंडीगढ़ बस स्टैंड से लगभग 10 किमी तथा पचकुला बस स्टैंड से 4 किमी की दुरी पर स्तिथ , मनसा देवी मंदिर में बसों या ऑटो रिक्शा से पहुंचा जा सकता है ।
 
नवरात्री के दिनों में यह यात्रियों के आने जाने का विशेष प्रबंध चंडीगढ़ परिवहन द्वारा किया जाता है यदि आप लोग रेल से यात्रा के बारे में सोच रहे है तो यह उसका भी उचित व्यवस्था है । चंडीगढ़ -कालका रेल लाइन यह आपको हमेशा ही उपलब्ध मिलेगी ।
 
मनसा देवी मंदिर, बिजावर
मां मनसा मैया को बुंदेलखंड क्षेत्र #मंशापूर्ण मैया के नाम से जाना जाता हैं यह मंदिर अति प्राचीन है एवम् प्रसिद्ध मंदिर हैं इस मंदिर का निर्माण गोंडवाना राज्य जब चरमोत्कर्ष पर था तब गोंडवाना राजाओं द्वारा किया गया था। प्रतिदिन मैया का श्रृंगार किया जाता है जो अति मनमोहक दृशय ऐसी मान्यता है कि भक्त के मां के दर्शन करने मात्र से सारे दुखों का निवारण हो जाता हैं यहां नवरात्रि में श्रद्धालुओं की जगह जगह भारी संख्या में पहुंचते हैं
 
#नवरात्रि महोत्सव में मां मंशापूर्ण मैया की नव दिन महाआरती एवम् महाप्रसाद लगाया जाता हैं
यातायात व्यवस्था
मां मंशापूर्ण मंदिर विश्व प्रसिद्ध खजुराहो से मात्र 90km एवम् छतरपुर से 40km की दूरी पर स्थित है मंदिर से निकटतम हवाई अड्डा खजुराहो हवाई अड्डा हैं एवम् से निकटतम रेलवे स्टेशन महाराजा छत्रसाल रेलवे स्टेशन छतरपुर है.
 
 
 
सन्दर्भ
[1]
मनसा देवी मंदिर हरिद्वार Archived2014-06-06 at the Wayback Machine मनसा देवी नागों की देवी हैं, उनका मुख्य मंदिर हरिद्वार में है जो शक्तिपीठ पर स्थापित है। नवरात्रि को यहाँ बहुत भीड़ लगती है तथा तीर्थ के साथ ही यह पर्यटन स्थल भी है जो मन में शांति का अनुभव कराने वाला है।
[2]
मनसा Archived 2014-06-07 at the Wayback Machine मनसा को शिव की मानसपुत्री मानते हैं तथा कुछ लोग इन्हें कश्यप पुत्री भी मानते हैं।
[3]
हलाहल पूर्व में दैत्य था जिसने शिव की तपस्या कर शिवांश द्वारा मृत्यु प्राप्ति का वर माँगा।
[4]
List Of Mycenaean deitiesArchived 2014-08-19 at the Wayback Machine लीनियर बी में MA-NA-SA
[5]
The Knossos LabyrinthArchived 2014-07-02 at the Wayback Machine A New View of the Palace of Minos at Knossos
[6]
टेट, कारेन (2005). 108 दैवीय स्थल. CCC प्रकाशन. पृ॰ 194. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 1-888729-11-2.
[7]
मनसा के सात नाम Archived2014-06-06 at the Wayback Machine इसके पाठ से सर्पभय जाता है।
[8]
मुनि आस्तिक Archived 2015-09-23 at the Wayback Machine इन्होनें ही जन्मेजय के सर्पेष्ठी यज्ञ से सर्पों की रक्षा की थी तथा ये मनसा के पुत्र थे।
[9]
परीक्षित Archived 2014-06-06 at the Wayback Machine ब्रजडिस्कवरी
[10]
नागकुल Archived 2014-06-06 at the Wayback Machine, इस पृष्ठ में नागकुल का वर्णन है तथा द्वितीय कुल में वासुकि का वर्णन है
[11]
"सालवन का प्रसिद्ध मंदिर". मूल से 6 जून 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 6 जून 2014.
[12]
विष्णुपुराण का वृत्तांत Archived2014-06-06 at the Wayback Machine, विष्णुपुराण में भी मनसा का वर्णन है।
[13]
"ब्रह्मवैवर्तपुराण का वृत्तांत". मूल से 6 जून 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 6 जून 2014.
[14]
"Manasa से". मूल से 14 अगस्त 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 6 जून 2014.
[15]
मनसा देवी मंदिर हरिद्वार Archived2014-06-07 at the Wayback Machine गूगल प्लस
[16]
मनसा देवी मंदिर Archived 2014-06-06 at the Wayback Machineहरिद्वार उत्तरांचल
[17]
मनसा देवी मंदिर Archived 2014-06-06 at the Wayback Machineभारत डिक्शनरी
[18]
पंचकुला, चंडीगढ़ Archived 2014-06-06 at the Wayback Machineमनसा मंदिर [[सदस्य:Dr.neeraj bhardwaj|Dr.neeraj bhardwaj]] ([[सदस्य वार्ता:Dr.neeraj bhardwaj|वार्ता]]) 14:14, 7 जून 2021 (UTC)
 
== डॉ.नीरज भारद्वाज जीवनी(बायोग्राफी) ==
 
डॉ.नीरज भारद्वाज भारत में एक प्रसिद्ध भारतीय लेखक हैं ! उनका जन्म 01-मार्च-1983 को मध्य प्रदेश में हुआ था, उनका गृह शहर मुरैना मध्य प्रदेश भारतीय है।
 
वह मुरैना, भारत में अपनी मां के घर शहर में पैदा हुआ, अभी वह 38 साल का है (अंतिम अद्यतन 2021) और उसके पिता का नाम श्री रामबाबू भारद्वाज और माता का नाम स्वर्गीय रामदेवी भारद्वाज है। उनके पिता और माता भारतीय राष्ट्रीयता। उन्होंने 2008 में मनीषा उपाध्याय जी से शादी की।
नीरज भारद्वाज अब भारत में पेशेवर भारतीय लेखक हैं। वह आंतरिक और बाहरी सुरक्षा समस्या, भारत में अंतरराष्ट्रीय संबंधों के मुद्दों और एक अन्य पड़ोसी देश के लिए एक प्रसिद्ध भारतीय लेखन है। वह एक बहुत ही कुशल भारतीय लेखक हैं। [[सदस्य:Dr.neeraj bhardwaj|Dr.neeraj bhardwaj]] ([[सदस्य वार्ता:Dr.neeraj bhardwaj|वार्ता]]) 17:58, 8 जून 2021 (UTC)
 
== दतिया शक्ति पीठ ==
 
पीताम्बरा पीठ मध्य प्रदेश राज्य के दतिया शहर में स्थित एक हिंदू मंदिर परिसर (एक आश्रम सहित) है। यह कई पौराणिक कथाओं के साथ-साथ वास्तविक जीवन में लोगों की 'तपस्थली' (ध्यान का स्थान) है।
यहाँ स्थित श्री वनखंडेश्वर शिव के शिवलिंग को महाभारत के समकालीन के रूप में अनुमोदित किया जाता है। यह मुख्य रूप से शक्ति (देवी माँ को समर्पित) का आराधना स्थल है।
 
सामान्य तथ्य पीताम्बरा पीठ, धर्म संबंधी जानकारी ...
पीताम्बरा पीठ
धर्म संबंधी जानकारी
सम्बद्धता - हिंदू धर्म
देवता - पीताम्बरा देवी, धूमावती
अवस्थिति जानकारी
अवस्थिति दतिया, मध्य प्रदेश, भारत
भौगोलिक निर्देशांक 25°29′50.1″N 78°27′43.2″E
वास्तु विवरण
स्थापित 1935
वेबसाइट
[www.shripitambarapeeth.in]
बंद करें
स्थापना
पीताम्बरा पीठ की स्थापना एक सिद्ध संत, जिन्हें लोग 'स्वामीजी महाराज' कहकर पुकारते थे, स्वामी जी 1935 में दतिया के राजा शत्रुजीत सिंह बुन्देला सहयोग से की थी। कभी इस स्थान पर श्मशान हुआ करता था। श्री स्वामी महाराज ने बचपन से ही सन्यास ग्रहण कर लिया था। कोई नहीं जानता कि वह कहाँ से आये थे, या उनका नाम क्या था; न ही उन्होंने इस बात का खुलासा किसी से किया। हालाँकि, वे परिव्राजकाचार्य दंडी स्वामी थे, और एक स्वतंत्र अखण्ड ब्रह्मचारी संत के रूप में दतिया में अधिक समय तक रहे। वह कई लोगों के लिए एक आध्यात्मिक प्रतीक थे और अभी भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से उसके साथ जुड़ा हुआ है। उन्होंने मानवता और देश दोनों के संरक्षण और कल्याण के लिए कई अनुष्ठानों और साधनाओं का नेतृत्व किया। गढ़ी मालेहड़ा के पं. श्री गया प्रसाद नायक जी (बाबूजी) स्वामीजी के ज्ञान के लिए प्रसिद्ध हैं। पूज्य स्वामीजी महाराज और बाबूजी के गुरुजी गुरुभाई थे। स्वामीजी प्रकांड विद्वान् व प्रसिद्ध लेखक थे। उन्हेंने संस्कृत, हिन्दी में कई किताबें भी लिखी थीं।
 
मंदिर परिसर
 
पीताम्बरा पीठ, बगलामुखी के सबसे प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है जो 1920 के दशक में श्रीस्वामी जी द्वारा स्थापित किया गया था। उन्होंने आश्रम के भीतर धूमावती देवी के मंदिर की भी स्थापना की थी, जो कि देश भर में एकमात्र है। धूमावती और बगलामुखी दस महाविद्याओं में से दो हैं। इसके अलावा, आश्रम के बड़े क्षेत्र में परशुराम, हनुमान, कालभैरव और अन्य देवी-देवताओं के मंदिर फैले हुए हैं।
 
वर्तमान में एक ट्रस्ट द्वारा पीठ का रखरखाव किया जाता है। एक संस्कृत पुस्तकालय है जो श्रीस्वामी जी द्वारा स्थापित किया गया था, और आश्रम द्वारा अनुरक्षित किया जाता है। आश्रम के इतिहास और विभिन्न प्रकार के साधनाओं और तंत्रों के गुप्त मंत्रों की व्याख्या करने वाली पुस्तकें प्राप्त कर सकते हैं। आश्रम की एक अनूठी विशेषता यह है कि यह संस्कृत भाषा का प्रकाश छोटे बच्चों तक फैलाने का प्रयास करती है, जो निशुल्क है। आश्रम में वर्षों से संस्कृत वाद-विवाद कराया जाता रहा है।
 
ऐतिहासिक महत्व
माँ पीताम्बरा, बगलामुखी का स्वरूप रक्षात्मक है। पीताम्बरा पीठ मन्दिर के साथ एक ऐतिहासिक सत्य भी जुड़ा हुआ है। सन् 1962 में चीन ने भारत पर हमला कर दिया था। उस समय देश के प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू थे। भारत के मित्र देशों रूस तथा मिस्र ने भी सहयोग देने से मना कर दिया था। तभी किसी योगी ने पंडित जवाहर लाल नेहरू से स्वामी महाराज से मिलने को कहा। उस समय नेहरू दतिया आए और स्वामीजी से मिले। स्वामी महाराज ने राष्ट्रहित में एक 51 कुंडीय महायज्ञ करने की बात कही। यज्ञ में सिद्ध पंडितों, तांत्रिकों व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को यज्ञ का यजमान बनाकर यज्ञ प्रारंभ किया गया। यज्ञ के नौंवे दिन जब यज्ञ का समापन होने वाला था, उसी समय 'संयुक्त राष्ट्र संघ' का नेहरू जी को संदेश मिला कि चीन ने आक्रमण रोक दिया है।
जहाँ तक जानकारी मिली चीन की सेना कोइस युद्ध मे बहुत भयानक रूप मे कौआ पर आग उगलते रोद्र रूपी देवी का आभास हुआ।और 11वें दिन अंतिम आहुति के साथ ही चीन ने अपनी सेनाएं वापस बुला ली । मन्दिर प्रांगण में वह यज्ञशाला आज भी बनी हुई है। इसी प्रकार सन् 1965 और 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में भी यहाँ गुप्त रूप से पुनः साधनाएं एवं यज्ञ करायें गये थे।
 
पहुँच
पीठ, मध्य प्रदेश के दतिया शहर में स्थित है, सबसे निकटमत हवाई अड्डे में ग्वालियर लगभग 75 किमी और झांसी 29 किमी दूर स्थित है। इसके अलावा यह ट्रेन मार्ग से भी अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है और आश्रम दतिया रेलवे स्टेशन से लगभग 3 किमी दूर है।
 
 
 
सन्दर्भ
[1]
"शत्रु नाश की अधिष्ठात्री देवी हैं मां पीतांबरा". पत्रिका.
[2]
"चीन से युद्ध रोकने इस मंदिर में आए थे नेहरू, किया था 11 दिन तक यज्ञ". दैनिक भास्कर. मूल से 1 नवंबर 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 31 अक्टूबर 2014.
[3]
"नेहरू ने करवाया था भारत-चीन युद्ध के दौरान तंत्र-मंत्र, फिर हुआ चमत्कार". पत्रिका. मूल से 13 फ़रवरी 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 21सितम्बर 2016
 
डॉ नीरज भारद्वाज
9340086890 [[सदस्य:Dr.neeraj bhardwaj|Dr.neeraj bhardwaj]] ([[सदस्य वार्ता:Dr.neeraj bhardwaj|वार्ता]]) 17:32, 2 जुलाई 2021 (UTC)
 
== विहंगावलोकन और सिंहावलोकन ==
 
विहंगावलोकन’ और ‘सिंहावलोकन’ दोनों का अर्थ समान समझ लिया जाता है, पर ऐसा है नहीं। प्राय: लिखा मिल जाता है कि ‘अमुक नेता ने सूखा या बाढ़ग्रस्त इलाके का सिंहावलोकन किया’। यह ग़लत प्रयोग है। सिंहावलोकन यानी सिंह की तरह का अवलोकन। आगे-पीछे सभी स्थितियों का जब सूक्ष्म निरिक्षण किया जाए तो सिंहावलोकन की स्थिति बनती है। जैसे – सिंहा जब आगे बढ़ता है तो वह थोड़ी देर बाद पीछे मुड़कर देखता है कि वह कितना आगे आ चुका है।
 
अब उसे लक्ष्य तक पहुचाने में कितना ओर समय लगेगा।
 
जबकि विहंगावलोकन में विहग यानी पक्षी की भाँति का अवलोकन है। जब चीजों पर सरसरी निगाह डाली जाती है तो यह विहंगावलोकन है। इसे ही विहंगम दृष्टि भी कहते है। जैसे- चील आकाश मे उड़ती है, तो वह अपने लक्ष्य को ऊपर से नीचे देखती है ‘फिर पूरी गति से अपने शिकार की ओर बढ़ती है।
 
 
डॉ नीरज भारद्वाज
9340086890 [[सदस्य:Dr.neeraj bhardwaj|Dr.neeraj bhardwaj]] ([[सदस्य वार्ता:Dr.neeraj bhardwaj|वार्ता]]) 17:35, 2 जुलाई 2021 (UTC)
 
== मेरा निश्चल प्रेम ==
 
मेरा निश्चचल प्रेम
 
कोई तुम्हारी सहेली नहीं
 
कि जब तुम चाहो
 
उससे कुट्टी कर लो
 
या कोई ईश्वरीय निंदा का दोषी तो नहीं
 
कि बिना बहस किए
 
जारी कर दिया जाए
 
उसके नाम कत्ल का फतवा
 
या फिर
 
कोई मिट्टी का खिलौना तो नहीं
 
कि हल्की-सी बारिश आए
 
और उसे गलकर खो दे वह अपनी अस्मिता
 
या कोई सूखी पत्तियां तो नहीं
 
कि छोटी-सी चिंगारी भड़के
 
और हो जाए वह जलकर खाक
 
मेरा प्यार
 
सच पूछो तो
 
तुम्हारी इजाजत का मोहताज तो नहीं
 
तुम्हारे बगैर भी है वह
 
क्योंकि मैंने कभी तुम्हें केवल देह नहीं समझा
 
मेरे लिए
 
देह से परे तुम्हार प्रेम
 
कल भी थी तुम
 
और आज भी हो
 
मेरा प्यार
 
इसलिए जब तक जियेगें
 
सर्वदा तुम्हारे लिए
 
तुम्हारे बगैर भी
 
उसी तरह
 
जिस तरह
 
जी रही है
 
कल-कल करती नदी।
 
 
 
तुम्हारे कुछ पल आंखों से औझल हो जाने से
 
तुम्हारे जाने के कुछ ही पल बाद
 
पता नहीं
 
मेरी आखों को क्या हो गया है
 
हर वक्त तुम्हीं को देखती हैं
 
घर का कोना-कोना
 
काटने को दौड़ता है
 
घर की दीवारें
 
प्रतिध्वनियों को वापस नहीं करतीं
 
घर तक आने वाली पगडंडी
 
सामने वाला फूलों का बगीचा
 
बगल वाली बांसवाड़ी
 
झाड़-झंकाड़
 
सरसों के पीले-पीले फूल
 
सब झायं-झायं करते हैं
 
तुम्हारी खुशबू से रची-बसी
 
कमरे के कोने में रखी कुर्सी
 
तुम्हारी अनुपस्थिति से
 
उत्पन्न हुई
 
खालीपन के कारण
 
आज भी उदास है
 
भोर की गाढ़ी नींद भी
 
हल्की-सी आहट से उचट जाती है
 
लगता है
 
हर आहट तुम्हारी है
 
लाख नहीं चाहता हूँ
 
फिर भी
 
तुमसे जुड़ी चीजें
 
तुम्हें
 
दुगनी राफ्तार से
 
मेरे वापस करती हैं
 
मेरे मन-मस्तिष्क में
 
तुम्हारे खालीपन को
 
भरने से इंकार करती हैं
 
कविताएं और कहानियां
 
संगीत तो
 
तुम्हारी स्मृति को
 
एकदम से
 
जीवंत ही कर देता है
 
क्या करुं
 
विज्ञान व उसकी आधुनिकता कुछ भी हो
 
तुम्हारी कमी को पूरा नहीं कर पाते। [[सदस्य:Dr.neeraj bhardwaj|Dr.neeraj bhardwaj]] ([[सदस्य वार्ता:Dr.neeraj bhardwaj|वार्ता]]) 17:37, 2 जुलाई 2021 (UTC)
 
== सैन्य विज्ञान परिचय ==
 
सैन्य विज्ञान (Military Science) के अन्तर्गत युद्ध एवं सशस्त्र संघर्ष से सम्बन्धित तकनीकों, मनोविज्ञान एवं कार्य-विधि (practice) आदि का अध्ययन किया जाता है। भारत सहित दुनिया के कई प्रमुख देश जैसे अमेरिका, इजराइल, जर्मनी, पाकिस्तान, आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैण्ड, रूस , इंगलैंड , चीन , फ्रांस, कनाडा , जापान , सिंगापुर , मलेशिया में सैन्य विज्ञान विषय को सुरक्षा अध्ययन (Security Studies) , रक्षा एवं सुरक्षा अध्ययन (Defence and Security Studies) , रक्षा एवं स्त्रातेजिक अध्ययन (Defence and Strategic studies) , सुरक्षा एवं युद्ध अध्ययन नाम से भी अध्ययन-अध्यापन किया जाता है। सैन्य विज्ञान ज्ञान की वह शाखा है जिसमें सैनिक विचारधारा, संगठन सामग्री और कौशल का सामाजिक संदर्भ में अध्ययन किया जाता है। आदिकाल से ही युद्ध की परम्परा चली आ रही है। मानव जाति का इतिहास युद्ध के अध्ययन के बिना अधूरा है और युद्ध का इतिहास उतना ही पुराना है जितनी मानव जाति की कहानी। युद्ध मानव सभ्यता के विकास के प्रमुख कारणों में से एक हैं। अनेक सभ्यताओं का अभ्युदय एवं विनाश हुआ, परन्तु युद्ध कभी भी समाप्त नहीं हुआ। जैसे-जैसे सभ्यता का विकास हुआ वैसे-वैसे नवीन हथियारों के निर्माण के फलस्वरूप युद्ध के स्वरूप में परिवर्तन अवश्य आया है। सैन्य विज्ञान के अन्तर्गत युद्ध एवं सशस्त्र संघर्ष से सम्बन्धित तकनीकों, मनोविज्ञान एवं कार्य-विधि आदि का अध्ययन किया जाता है।[1]
 
सैन्य विज्ञान के निम्नलिखित छः मुख्य शाखायें हैं:
 
सैन्य संगठन
सैन्य शिक्षण एवं प्रशिक्षण
सैन्य इतिहास
सैन्य भूगोल
सैन्य प्रौद्योगिकी एवं उपकरण
रणनीति एवं सैन्य सिद्धान्त
परिचय
हो सकता है युद्ध में आपकी रुचि न हो, किन्तु युद्ध की आप में सदा से ही रुचि रही है।
ट्रॉट्स्की का यह कथन सत्य ही जान पड़ता है।
प्राचीन भारत में राज्य एवं ज्ञान के एक आश्यवक अंग के रूप में सैन्य विज्ञान (सेना) का अध्ययन-अध्यापन किया जाता था। मौर्यकाल के बाद धीरे-धीरे राज्य की सुरक्षा की जिम्मेदारी पूरी तरह से सैनिकों पर अवलम्बित हो गई, सामान्य नागरिक युद्ध को मूक दर्शक की तरह देखता रहा और उसके लिए रक्षा विज्ञान मात्र कौतूहल का विषय बन कर रह गई। परिणामतः भारत सदियों तक आक्रमणकारियों एवं विदेशियों का गुलाम रहा।
 
द्वितीय विश्वयुद्ध (1939-45) के दौरान भारतीय सेना ब्रिटेन की तरफ से दुनिया के कई हिस्सों में संग्राम में भाग लिया। युद्ध की बढ़ती मांग एवं सतत् आपूर्ति के उद्देश्य से ही उस दौरान भारत में कई रक्षा कारखानें, सैन्य भर्ती में बढ़ोतरी के अलावा भारतीयों को सेना में उच्च कमीशन भी दिया गया। साथ ही नागरिकों में सेना एवं युद्ध के प्रति जागरुकता एवं अभिरुचि पैदा करने के उद्देश्य से पचास के दशक में भारत के कुछ विश्वविद्यालयों में सैन्य विज्ञान या युद्ध अध्ययन के नाम से इस विषय का अध्ययन-अध्यापन प्रारम्भ की गई। हालांकि इससे पूर्व लगभग 2500 वर्ष पहले भारत स्थित विश्व प्रसिद्ध शिक्षा के केन्द्र रहे तक्षशिला में युद्धकला, सैन्य संगठन एवं शस्त्रास्त्रों के प्रशिक्षण की विधिवत अध्ययन-अध्यापन किया जाता था। विद्यार्थी का अध्ययन सुरक्षा अध्ययन के बिना पूर्ण नहीं होता था। कौटिल्य के अर्थशास्त्र में युद्ध और उसके संचालन के सम्बन्ध में जितना व्यापक वर्णन किया गया है वह स्वयं इस तथ्य को सिद्ध करता है।[2] आदिकाल से ही युद्ध की परम्परा चली आ रही है। मानव जाति का इतिहास युद्ध के अध्ययन के बिना अधूरा है और युद्ध का इतिहास उतना ही पुराना है जितनी मानव जाति की कहानी। युद्ध मानव सभ्यता के विकास के प्रमुख कारणों में से एक हैं। अनेक सभ्यताओं का अभ्युदय एवं विनाश हुआ, परन्तु युद्ध कभी भी समाप्त नहीं हुआ। जैसे-जैसे सभ्यता का विकास हुआ वैसे-वैसे नवीन हथियारों के निर्माण के फलस्वरूप युद्ध के स्वरूप में परिवर्तन अवश्य आया है।[3]
 
सैन्य विज्ञान की परिभाषा
सैन्य विज्ञान जैसा कि नाम से ही प्रतीत होता है 'सेना' और 'विज्ञान' शब्दों से मिलकर बना है। सेना एक ऐसा सुसंगठित दल है जिसका कार्य लड़ाई करना है और विज्ञान से अभिप्राय किसी ज्ञान को इस प्रकार क्रमबद्ध कर लिया जाता है जिससे कि उसका विधिपूर्वक अध्ययन किया जा सके। इस प्रकार किसी राज्य अथवा सुसंगठित समाज द्वारा लड़ाई करने के लिए गठित दल का नाम सेना है और उस सेना से सम्बन्धित क्रमबद्ध ज्ञान का नाम सैन्य विज्ञान है। किसी भी विषय को परिभाषा के परकोटे में बांधना आसान नहीं है। सैन्य विज्ञान के व्यापक क्षेत्र एवं अन्तर्विषयी होने के कारण कोई निश्चित परिभाषा नहीं दी गई है। फिर भी कुछ मनीषीयों की सैन्य विज्ञान से सम्बन्धित निम्न परिभाषा है-
 
कैप्टन बी.एन. मालीवाल के अनुसार, ‘‘सैन्य विज्ञान ज्ञान की वह शाखा है जिसमें सैनिक विचारधारा, संगठन सामग्री और कौशल का सामाजिक संदर्भ में अध्ययन किया जाता है।’’[4]
 
प्रो॰ रामअवतार के अनुसार, ‘‘सैन्य विज्ञान विषय हमें युद्ध-शिल्प अर्थात युद्ध के उपकरण तथा युद्ध शैली एवं उसका समाज पर और समाजिक परिवर्तनों का युद्ध-शैली पर जो प्रभाव पड़ता है उनका ज्ञान कराता है।’’[5]
 
मेजर आर.सी. कुलश्रेष्ठ के अनुसार, ‘‘सैन्य विज्ञान मानव ज्ञान की वह शाखा है जो आदि काल से ही सामाजिक शान्ति स्थापना करने तथा बाह्य आक्रमण से निजी प्रभुसत्ता की रक्षा करने के लिए महत्वपूर्ण समझी जाती रही है, इसके अन्तर्गत शान्ति स्थापन साधनों, सेना के संगठन, शस्त्रास्त्रों के प्रयोग और विकास, युद्ध शैलियों का मानसिक, सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक दृष्टिकोण से अध्ययन किया जाता है।’’[6]
 
प्रो॰ एम. पी. समरे के अनुसार, ‘‘सैन्य विज्ञान युद्धनीति, समरतंत्र तथा प्रशासन विद्या का विज्ञान है।’’[7]
 
डॉ नीरज भारद्वाज के अनुसार, " सैन्य विज्ञान एक समसामयिक विषय है जो हमें समाज में होने वाले युद्धों के कारण, विधि, साधन की जानकारी देता है।"
 
सैन्य विज्ञान का क्षेत्र
किसी भी विषय के क्षेत्र का आभास उसकी परिभाषा से हो जाता है। सैन्य विज्ञान में युद्ध और सेना सम्बन्धी समस्त बातों का अध्ययन किया जाता है। समय और युग के परिवर्तन के साथ-साथ युद्ध की प्रक्रियाओं में परिवर्तन आता चला जाता है, इसी के साथ सैनिक संगठन, उसके प्रशिक्षण, शस्त्रास्त्रों में भी परिवर्तन आता चला गया, वैसे ही सैन्य विज्ञान के क्षेत्र में भी परिवर्तन आता गया। आधुनिक समय में वैज्ञानिक प्रगति और आविष्कारों ने युद्ध के क्षेत्र को और विस्तृत व व्यापक कर दिया है।
 
सैन्यविज्ञान विज्ञान है अथवा कला?
विज्ञान से अभिप्राय किसी भी विषय के नियमानुसार अध्ययन से है इस दृष्टि से सैन्य विज्ञान विषय को विज्ञान की कसौटी में कसा जाय तो पूरी तरह से खरा उतरता है, क्योंकि इसके अन्तर्गत सेना के संगठन, शस्त्रास्त्र, युद्धकला कूटयोजना, प्रबन्ध एवं समरतन्त्र आदि का क्रमिक अध्ययन किया जाता है। जिस प्रकार विज्ञान के कुछ सिद्धान्त एवं नियम होते हैं और उन्हीं के आधार पर कार्यवाही की जाय तो उद्देश्य की प्राप्ति उसी नियम के अनुरुप हो जाती है। इसी प्रकार से सैन्य विज्ञान के अन्तर्गत युद्ध के अनेक सिद्धान्त हैं जिनके पालन करने से उद्देश्य की प्राप्ति अवश्यंभावी होती है। अथवा विज्ञान उन विषयों को कहते हैं जिनके नियमों के सत्यता की जांच प्रयोगशालाओं में की जा सके और जो नियम शाश्वत और सत्य हों तथा कला उन विषयों को कहते हैं जिनके नियमों की सत्यता को निश्चितता की कसौटी पर नहीं कसा जा सकता। विज्ञान हमें किसी वस्तु के विषय में ज्ञान देता है और कला उस कार्य को करना सिखाती है।[8]
 
इस दृष्टि से युद्धकला, सेना, सैनिक संगठन, प्रशिक्षण, शस्त्रास्त्रों, युद्ध की चालों आदि के विषय में ज्ञान आवश्यक है, सैन्य विज्ञान, विज्ञान है तथा जहां तक सैनिक प्रशिक्षण एवं सैनिक अभ्यास का सम्बन्ध है, सैन्य विज्ञान कला भी है। Makers of Modern Strategy में लिखा है कि युद्ध का कोई विज्ञान नहीं होता न होगा ही। युद्ध का अनेक प्रकार के विज्ञानों से सम्बन्ध है, परन्तु युद्ध का अपना कोई विज्ञान नहीं है। यह तो व्यवहारिक कला और कौशल है।[9]
 
इस संदर्भ मे प्रसिद्ध सैन्य विशेषज्ञ क्लाजविट्ज का यह कथन उल्लेखनीय है[10]
 
Everything is very simple in war, but the simplest thing is difficult. These difficulties accumulate and produce a friction which no man can imagine exactly who has not seen war.
दोनों ही पक्षों के आधार पर कहा जा सकता है कि सैन्य विज्ञान, विज्ञान एवं कला दोनों के अन्तर्गत आता है, परन्तु अनुभव, अध्ययन की अपेक्षाकृत अधिक शक्तिशाली पक्ष प्रतीत होता है।
 
सैन्यविज्ञान का अन्य विषयों से सम्बन्ध
सैन्यविज्ञान ज्ञान की एक शाखा होने के कारण उसका अन्य शाखाओं से सम्बन्ध होना स्वाभाविक एंव अनिवार्य है।
 
सैन्य विज्ञान तथा भूगोल
भौगोलिक परिस्थितियों का प्रत्यक्ष प्रभाव सैनिक योजनाओं, शस्त्रास्त्रों, संक्रियाओं, साज-सज्जा एवं समरतान्त्रिक चालों पर पड़ता है। यही कारण है कि प्रत्येक राष्ट्र को अपनी भौगोलिक परिस्थितियों के अनुरुप ही सुरक्षा व्यवस्था अपनानी पड़ती है। इस संदर्भ में प्रसिद्ध ब्रिटिश जनरल वावेल का कहना है कि- किसी स्थान का भूगोल ही वहां होने वाली लड़ाइयों के स्वरूप को सुनिश्चित करता है।[11] भौगोलिक तथ्यों की उपेक्षा कर कोई भी सेना युद्ध में विजय प्राप्त नहीं कर सकती।
 
सैन्य विज्ञान तथा इतिहास
इतिहास से हमें मानव जाति की संस्कृति एवं सभ्यता से सम्बन्धित समस्त जानकारी मिलती है जिसके अभाव में युद्धों का अध्ययन अधूरा ही है। विगत युद्धों के जय-पराजय का विश्लेषण ही वर्तमान एवं भविष्य के युद्धों का आधार होता है। युद्ध के देवता के नाम से विख्यात प्रसिद्ध सेनापति नेपोलियन बोनापार्ट का कथन है कि- महान सेनानायकों के अभियानों का बार-बार अध्ययन एवं मनन करो, उन्हें अपना आदर्श बनाओ। युद्ध कला के भेदों को जानने तथा एक महान सेनानायक बनने का यही रहस्य है।[12]
 
सैन्य विज्ञान तथा अर्थशास्त्र
धन के बिना सैन्य संगठन सम्भव नहीं है। आर्थिक दृष्टि से सबल राष्ट्र के लिए अपना सैनिक विकास करना भी दुष्कर होता है क्योंकि सेना की संख्या एवं सशस्त्र सेनाओं का प्रकार, उपयुक्त सैन्य योजना आदि का आधार पूर्णतः राष्ट्र विशेष के आर्थिक स्रोतों पर रहता है। कार्ल मार्क्स के अनुसार, ‘‘किसी युग के सम्पूर्ण सामाजिक जीवन के स्वरूप का निश्चय आर्थिक परिस्थितियां ही करती है।[13] आधुनिक युद्ध अत्यन्त खर्चीले होते हैं जिसकी यौद्धिक आवश्यकताओं की आपूर्ति करना बहुत कठिन है।
 
सैन्य विज्ञान तथा राजनीति विज्ञान
सुन्तजू ने लिखा है युद्ध राज्य का एक आवश्यक अंग है ओर शूमैन भी कहते हैं कि युद्ध राज्य शक्ति का अन्तिम हथियार है। इस संदर्भ मे प्रसिद्ध जर्मन सैन्य विशेषज्ञ क्लाजविट्ज का यह कथन उल्लेखनीय है कि राज्य अपनी नीतियों को क्रियान्वित करने के लिए युद्ध का सहारा लेता है।[14] आज युद्ध की प्रकृति बदल गई है देश के प्रत्येक नागरिक को प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष ढंग से युद्ध में योगदान करना होता है।
 
सैन्य विज्ञान तथा मनोविज्ञान
सेना एक प्रकार का सामाजिक संगठन होता है जिसमें अनुशासन, मनोबल, नेतृत्व, साहस, भय, प्रचार, देशभक्ति की भावना, चिन्ता, मनोग्रस्तता जैसे मानसिक तत्वों का बहुत महत्व है। आज के युद्ध मनोवैज्ञानिक युद्ध होते है जिसमें वास्तविक लड़ाई के पहले ही शत्रु के यौद्धिक मानसिकता का विघटन करना होता है। हिटलर का कथन सैन्य विज्ञान एवं मनोविज्ञान के गहरे सम्बन्ध को दर्शाता है कि वास्तविक लड़ाई एक गोली चलने के पहले ही लड़ा जाता है। इस सम्बन्ध में कौटिल्य ने कहा है कि, ‘‘एक धनुषधारी के धनुष से छोड़ा हुआ बाण सम्भव है किसी एक भी सैनिक को न मारे, परन्तु बुद्धिमान व्यक्ति के द्वारा किया गया बुद्धि का प्रयोग गर्भ स्थित प्राणियों को भी नष्ट कर देता है।[15]
 
सैन्य विज्ञान तथा भौतिकशास्त्र
विज्ञान एवं तकनीक का प्रभाव यदि जीवन के किसी एक क्षेत्र में सबसे ज्यादा पड़ता है तो वह है सैन्य क्षेत्र। मानव सभ्यता के विकास में पचास प्रतिशत से अधिक खोजों का उद्देश्य सैनिक आवश्यकता रही है। अपरम्परागत तथा सम्पूर्ण युद्ध की अवधारणा के पीछे आधुनिक वैज्ञानिक एवं तकनीकि विकास है। आणविक शस्त्रास्त्रों एवं प्रक्षेपास्त्रों के संहारक क्षमता के संदर्भ में प्रसिद्ध वैज्ञानिक आइंस्टीन ने लिखा है कि, ‘‘मैं नहीं जानता कि तृतीय विश्वयुद्ध में किन-किन हथियारों का इस्तेमाल होगा? किन्तु मैं निश्चित रूप से यह बता सकता हूं कि चतुर्थ विश्व युद्ध में किन हथियार का इस्तेमाल होगा, अर्थात पत्थर।[16] यह कथन आधुनिक प्रौद्योगिकी के सैन्य प्रयोग से मानव अस्तित्व पर बने संकट को दर्शाता है।
 
सैन्य विज्ञान तथा रसायनशास्त्र
युद्ध में सफलता प्राप्त करने के लिए विषैले रसायनों का प्रयोग प्राचीन काल से ही होता आ रहा है। अथर्ववेद, मार्कण्डेय पुराण, विष्णुधर्मोत्तर पुराण, [[कामन्दकीय नीतिसार], शुक्रनीति शास्त्र, पंचतंत्र, कौटिल्य अर्थशास्त्र, मनुस्मृति तथा वृहत् संहिता आदि ग्रंथों में ऐसे अनेक प्रकार के हथियारों का उल्लेख है जिनके द्वारा रणक्षेत्र में आग लगाना, घनघोर वर्षा करना, बादलों की गरज, चारों ओर से अन्धकार पैदा करना आदि किया जाता था।[17] आधुनिक युद्ध में धुंआ फैलाने वाली, दम घोटने वाली, आंखों में जलन पैदा करने वाली, त्वचा को जलाने वाली जैसे कई प्रकार के विषैले रसायनों का प्रयोग किया जाता है। जिसके कारण ही रसायनिक युद्धकला का जन्म हुआ है।
 
सैन्य विज्ञान तथा जीवविज्ञान
जैविक कारकों के द्वारा शत्रु के भोजन, पानी एवं खाद्य सामग्री को विषाक्त करके उसके स्वास्थ्य को कमजोर कर उसके युद्ध करने की मानसिक शक्ति का विघटन करने की हर सम्भव कोशिश की जाती है। विभिन्न प्रकार के बीमारियों के जीवाणुओं को विभिन्न साधनों से शत्रु तक पहुंचाया जाता है। विषैले जीवाणुओं से उत्पन्न रोग से केवल सैनिक ही प्रभावित नहीं होते अपितु नागरिकों पर भी इसका बराबर असर होने के कारण शत्रु का मनोबल गिर जाता है जिससे उसकी सैनिक सामर्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।
 
उपरोक्त वर्णित विषयों के अलावा अन्य विषय जैसे कम्प्यूटर विज्ञान, सामाजिक विज्ञान इत्यादि से भी सैन्य विज्ञान का गहरा सम्बन्ध है।
 
सैन्य विज्ञान की उपयोगिता
प्राचीन युद्ध सीमित होते थे जिनका सम्बन्ध केवल सेनाओं एवं सेनापतियों तक होता था, आम जनता की युद्धों के प्रति कोई विशेष रुचि नहीं होती थी। जैसे-जैसे सभ्यता का विकास होता गया युद्धों के स्वरूपों में भी परिवर्तन आया और आज युद्ध सम्पूर्ण युद्ध का स्वरूप धारण कर चुका है। आधुनिक युद्ध सम्पूर्ण राष्ट्र की परीक्षा है।[18]
 
सैन्य विज्ञान विषय की उपयोगिता को निम्नानुसार रेखांकित किया जा सकता है-
 
(1) राष्ट्रीय भावना जागृत करना - सैन्य विज्ञान के द्वारा देश के प्रति हमारे क्या कर्त्तव्य हैं तथा समाज में रहकर मातृभूमि की रक्षा किस प्रकार करनी चाहिए तथा स्वयं को एक आदर्श सैनिक के रूप में प्रस्तुत करने का अवसर प्राप्त करते हैं। आज का विद्यार्थी कल का जिम्मेदार नागरिक अथवा सैनिक बनकर सुरक्षा हित के मुद्दों को गहराई से समझ सकता है।
(2) कुशल नेतृत्व क्षमता प्रदान करना - युद्ध संचालन की पद्धति और प्रक्रिया अब राजनीतिज्ञों का मुख्य विषय बन गया है, क्योंकि सबसे बड़े अस्त्र अर्थात आणविक हथियारों का नियन्त्रण एवं प्रयोग राजनीतिज्ञों के हाथ में है न कि सेनानायकों के। सैन्य विज्ञान का विद्यार्थी को सैनिक मामलों में पूर्व से पर्याप्त ज्ञान होने के कारण एक कुशल नेतृत्व क्षमता का परिचय दे सकता है। क्योंकि आज कि सबसे बड़ी विडम्बना राजनीतिज्ञों का सैन्य ज्ञान की समझ का अभाव है।
(3) सुरक्षा व्यवस्था की जानकारी प्राप्त करना - कैप्टन बी.एन. मालीवाल ने लिखा है कि हम युद्ध को तब तक नियन्त्रित, सीमित अथवा व्यवस्थित नहीं कर सकते, जब तक कि हम युद्ध के स्वभाव और लक्षणों को न समझ सकतें हों। सुरक्षा अथवा युद्ध ऐसा विषय है जिसे सिर्फ सैनिकों के सहारा नहीं छोड़ा जा सकता। देश की उच्चत्तर रक्षा संगठन ढांचे की जानकारी आवश्यक है।
(4) राष्ट्रीय मनोबल हेतु - आज राष्ट्रीय सुरक्षा एवं राष्ट्रीय मनोबल के संदर्भ में इजराइल का उदाहरण दुनिया के सामने है। तीन ओर से शत्रु मुल्कों से घिरे होने के बावजूद इजराइल की आन्तरिक सुरक्षा एवं बाह्य सुरक्षा व्यवस्था दुनिया के सामने मिसाल है। इसका मुख्य कारण सैनिक व्यवस्था के अलावा वहां के नागरिकों में राष्ट्रीय सुरक्षा जागरुकता एवं उच्च मनोबल है। असैन्य मोर्चे पर देश के नागरिको के द्वारा लगातार मिल रहे सहयोग से सेना का मानसिक स्तर भी उच्च रहता है।
(5) शान्ति एवं सुरक्षा की स्थापना - नक्सलवाद, आतंकवाद, उग्रवाद, भाषावाद, साम्प्रदायिकता, प्रादेशिकता, जन-जातिय विद्रोह जैसे समस्याओं का हल सैनिक माध्यम से नहीं निकाला जा सकता न ही इससे ये सभी समस्यायें समाप्त होने वाली हैं और न ही शान्ति एवं सुरक्षा की स्थापना की जा सकती है। इसके लिए जरूरी है एक विश्वास का वातावरण पैदा करने की। उपर्युक्त समस्याओं की तह तक जाकर मूल कारणों के तार्किक एवं व्यवहारिक उपाय ढूंढने से होगा। सैन्य विज्ञान आन्तरिक व बाह्य सुरक्षा समस्याओं के कारण, प्रभाव एवं उपाय पर विस्तृत प्रकाश डालता है। जिसके वर्तमान संदर्भ में अध्ययन की नितान्त आवश्यकता है।
(6) युद्ध के रोकथाम में - प्रसिद्ध सैन्य विचारक लिडिल हार्ट ने कहा है कि- यदि शान्ति चाहते हो तो युद्ध को समझो।[19] विश्व में युद्ध के रोकथाम के लिए सबसे आवश्यक है युद्ध के कारण, प्रभाव एवं परिणाम पर गहन चिन्तन, मनन एवं चर्चा करने की। इस विषय के अध्ययन से विश्व विनाश को रोकने में भी सक्रिय सहयोग मिलता है। आज विश्व के पास इतने घातक एवं विनाशक हथियार हैं कि समस्त पृथ्वी को हजारो बार नष्ट किया जा सकता है।
(7) शक्ति संतुलन बनाये रखने के लिए - युद्ध का एक बड़ा कारण शक्ति शून्यता है। इतिहास हमें बताता है कि निर्बल पर हमेशा शक्तिशाली ने आधिपत्य अथवा राज करने के लिए अत्याचार किया है। सैन्य विज्ञान हमें सिखलाती है कि न्यूनतम प्रतिरोधक क्षमता बनाये रखने के लिए शक्ति संतुलन आवश्यक है। यौद्धिक तैयारी एवं शक्ति संतुलन के लिए ही भारत ने 1998 में परमाणु परीक्षण किया था।
(8) असैन्य मोर्चे की तैयारी - आधुनिक युद्ध सम्पूर्ण युद्ध होते हैं एवं जिसमें अपरम्परागत युद्ध शैली के अस्त्र-शस्त्रों का प्रयोग किया जा सकता है तथा युद्ध के केन्द्र सैन्य एवं नागरिक ठिकानें दोनों हो सकते है। रणक्षेत्र में मोर्चा सम्हाल रहे सैनिकों के लिए सम्भव नहीं कि इतनी बड़ी आबादी की हर जगह मदद की जा सके। अतः नागरिक सुरक्षा के उपायों की विस्तृत जानकारी सैन्य विज्ञान के माध्यम से लिया जा सकता है।
(9) यौद्धिक आवश्यकता की पूर्ति - आधुनिक युद्ध अत्यन्त महंगे एवं खर्चीले हो गये हैं। 52 दिनों तक चले करगिल संघर्ष में भारत 10,000 करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च किया। किसी भी राज्य के लिए युद्ध की वित्तीय आवश्यकताओं की पूर्ति करना बेहद कठिन कार्य है। इसलिए सरकार युद्धकाल में दान या चंदे, ऋण जैसी सहायता जनता से लेती है। सैन्य विज्ञान युद्ध पर सम्पूर्ण प्रकाश डालता है एवं विद्यार्थी को इसकी गहरी समझ प्रदान कर जिम्मेदार नागरिक बना सकता हैं।
भारत में सैन्य विज्ञान
सैन्य विज्ञान विषय को सुरक्षा अध्ययन, रक्षा एवं सुरक्षा अध्ययन, रक्षा एवं स्त्रातेजिक अध्ययन, सुरक्षा एवं युद्ध अध्ययन नाम से भी अध्ययन-अध्यापन किया जाता है। गौरतलब है कि डिफेंस स्टडीज, वार स्टडीज, मिलिट्री साइंस और स्ट्रेटेजिक स्टडीज नाम से रक्षा मामलों की पढ़ाई भारत में होती है।
 
इस विषय के महत्व का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि दुनिया के कई प्रमुख देशों में डिफेंस स्टडीज की पढ़ाई स्कूल, कॉलेज और विश्वविद्यालय स्तरों पर होती है। इससे संबंधित कोर्स करने के बाद नौकरी के लिए तमाम विकल्प सामने आ रहे हैं। डिफेंस व स्ट्रैटजिक स्टडीज को मिलिट्री/डिफेंस स्टडीज, मिलिट्री साइंस, वॉर एंड नेशनल सिक्योरिटी स्टडीज, वॉर एंड स्ट्रैटजिक स्टडीज के नाम से भी जाना जाता है। इसके महत्व को देखकर पूर्व प्रधान मंत्री डॉ॰ मनमोहन सिंह ने 23 मई 2013 को बि‍नोला, गुड़गांव, हरियाणा में भारतीय राष्‍ट्रीय रक्षा विश्‍विद्यालय की आधारशि‍ला रखी। प्रस्‍तावि‍त भारतीय राष्‍ट्रीय रक्षा वि‍श्‍वि‍द्यालय 200 एकड़ से अधि‍क भूमि पर स्‍थि‍त होगा। यह 2018 में पूरी तरह से कार्य करना शुरू करेगा। नक्सलवाद, आतंकवाद, उग्रवाद, भाषावाद, साम्प्रदायिकता, प्रादेशिकता, जन-जातिय विद्रोह जैसे समस्याओं का हल सैनिक माध्यम से नहीं निकाला जा सकता न ही इससे ये सभी समस्यायें समाप्त होने वाली हैं और न ही शान्ति एवं सुरक्षा की स्थापना की जा सकती है।
 
इसके लिए जरूरी है एक विश्वास का वातावरण पैदा करने की। उपर्युक्त समस्याओं की तह तक जाकर मूल कारणों के तार्किक एवं व्यवहारिक उपाय ढूंढने से होगा। सैन्य विज्ञान आन्तरिक व बाह्य सुरक्षा समस्याओं के कारण, प्रभाव एवं उपाय पर विस्तृत प्रकाश डालता है। जिसके वर्तमान संदर्भ में अध्ययन की नितान्त आवश्यकता है। प्रसिद्ध सैन्य विचारक लिडिल हार्ट ने कहा है कि- यदि शान्ति चाहते हो तो युद्ध को समझो। विश्व में युद्ध के रोकथाम के लिए सबसे आवश्यक है युद्ध के कारण, प्रभाव एवं परिणाम पर गहन चिन्तन, मनन एवं चर्चा करने की। इस विषय के अध्ययन से विश्व विनाश को रोकने में भी सक्रिय सहयोग मिलता है। आज विश्व के पास इतने घातक एवं विनाशक हथियार हैं कि समस्त पृथ्वी को हजारो बार नष्ट किया जा सकता है। आधुनिक युद्ध सम्पूर्ण युद्ध होते हैं एवं जिसमें अपरम्परागत युद्ध शैली के अस्त्र-शस्त्रों का प्रयोग किया जा सकता है तथा युद्ध के केन्द्र सैन्य एवं नागरिक ठिकानें दोनों हो सकते है। रणक्षेत्र में मोर्चा सम्हाल रहे सैनिकों के लिए सम्भव नहीं कि इतनी बड़ी आबादी की हर जगह मदद की जा सके।
 
अतः नागरिक सुरक्षा के उपायों की विस्तृत जानकारी सैन्य विज्ञान के माध्यम से लिया जा सकता है। किसी भी राज्य के लिए युद्ध की वित्तीय आवश्यकताओं की पूर्ति करना बेहद कठिन कार्य है। इसलिए सरकार युद्धकाल में दान या चंदे, ऋण जैसी सहायता जनता से लेती है। सैन्य विज्ञान युद्ध पर सम्पूर्ण प्रकाश डालता है एवं विद्यार्थी को इसकी गहरी समझ प्रदान कर जिम्मेदार नागरिक बना सकता हैं।[20]
 
सैन्य विज्ञान के क्षेत्र में अवसर
सैन्य विज्ञान के द्वारा देश के प्रति हमारे क्या कर्त्तव्य हैं तथा समाज में रहकर मातृभूमि की रक्षा किस प्रकार करनी चाहिए तथा स्वयं को एक आदर्श सैनिक के रूप में प्रस्तुत करने का अवसर प्राप्त करते हैं। आज का विद्यार्थी कल का जिम्मेदार नागरिक अथवा सैनिक बनकर सुरक्षा हित के मुद्दों को गहराई से समझ सकता है। इस क्षेत्र में करियर की ढेर सारी संभावनाएं हैं। यह आपको एक देश से दूसरे देश के साथ वैश्विक मामले संबंध आदि की जानकारी देता है। इस फील्ड में कोर्स करने के बाद आप सोशियो-इकोनॉमिक स्पेशलिस्ट, इंटरनेशनल फील्ड में रिसर्चर बन सकते हैं।
 
इसके साथ ही आप इंडियन नेवी, एयर फोर्स, डिफेंस जर्नलिज्म में इंडियन आर्मी ऑफिसर, इंडियन डिफेंस ऑफिसर, ग्राउंड ड्यूटी ऑफिसर, रिसर्च ऑफिसर, मिलिट्री ऑफिसर बन सकते हैं। डिफेंस एंड स्ट्रैटजिक स्टडीज में बैचलर्स या मास्टर्स डिग्री लेने वाले उम्मीदवार लेक्चरर, कॉलेज के प्राध्यापक, विश्वविद्यालय में प्रोफेसर का जॉब कर सकते हैं या अंतर्राष्ट्रीय संबंध, युद्ध के भूगर्भ संबंधी मामलों, भू राजनीतिक मामलों, सामाजिक-आर्थिक व सामरिक क्षेत्रों में रिसर्च कर सकते हैं। इसके अलावा रोजगार के अवसर मुख्य तौर पर भारतीय सेना, वायु सेना, नौसेना, एजुकेशन कॉर्पोरेशन्स, डिफेंस जर्नलिज्म में मौजूद हैं।
 
अगर आपने इस फील्ड में मास्टर डिग्री हासिल कर ली तो न्यूजपेपर, मैगजीन आदि में राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर आलेख लिख सकते हैं। युद्ध संचालन की पद्धति और प्रक्रिया अब राजनीतिज्ञों का मुख्य विषय बन गया है, क्योंकि सबसे बड़े अस्त्र अर्थात आणविक हथियारों का नियन्त्रण एवं प्रयोग राजनीतिज्ञों के हाथ में है न कि सेनानायकों के। सैन्य विज्ञान का विद्यार्थी को सैनिक मामलों में पूर्व से पर्याप्त ज्ञान होने के कारण एक कुशल नेतृत्व क्षमता का परिचय दे सकता है। क्योंकि आज कि सबसे बड़ी विडम्बना राजनीतिज्ञों का सैन्य ज्ञान की समझ का अभाव है।
 
काम के प्रमुख क्षेत्र--
रक्षा अनुसंधान और विश्लेषण, रक्षा नीति बनाने, टैक्टिकल सर्विसेज, राष्ट्रीय सुरक्षा योजना एवं क्रियान्वयन और सिविल डिफेंस, प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए, सशस्त्र सेना, राष्ट्रीय सुरक्षा संगठन, रक्षा पत्रकारिता, अकादमिक रिसर्च, राजनयिक, विदेश नीति बनाने, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार, नीति बनाने व सोचने वाले, टैंकों में शामिल होना, सुरक्षा प्रदाता एजेंसियां, कॉलेज व यूनिवर्सिटी में शिक्षण, सरकार और यूजीसी के लिए पुस्तक लेखन व प्रकाशन।
 
सन्दर्भ
1. "जानिए सैन्य विज्ञान/ रक्षा एवं स्त्रातेजिक अध्ययन में कैसे बनाएं करियर" लेखक-आसिफ अहमद Saturday, August 26, 2017, Punjab kesri https://web.archive.org/web/20171204061338/http://www.punjabkesari.in/blogs/news/how-to-prepare-for-the-study-of-defense-and-scholarly-study-career-666553
 
2. जैन, श्रीमती पुष्पा -सम्पूर्ण सैन्य विज्ञान भाग-1, विश्वविद्यालय प्रकाशन, ग्वालियर, पृष्ठ-3
 
3. मिश्र, डॉ॰ सुरेन्द्र कुमार -भारतीय सैन्य संगठन, संस्करण-2007, माडर्न पब्लिशर्ज, जालन्धर, पृष्ठ-1
 
4. कपूर, आर.के. -सैन्य विज्ञान, संस्करण-1979, अजन्ता प्रकाशन, मेरठ, पृष्ठ-1
 
5. गुप्ता, मेजर धनपाल -सरल सैन्य विज्ञान, संस्करण-1976-77, रस्तोगी पब्लिकेशन्स, मेरठ, पृष्ठ-3
 
6. पाण्डेय, डॉ॰बाबूराम -सैन्य अध्ययन, संस्करण-1993, प्रकाश बुक डिपो, बरेली, पृष्ठ-4
 
7. भटनागर, डॉ॰ अनिल -सैन्य विज्ञान, आनन्द पब्लिशर्स, ग्वालियर, पृष्ठ-4
 
8. पूर्वोक्त संदर्भ सं. 4, पृष्ठ-5
 
9. पूर्वोक्त संदर्भ सं. 3, पृष्ठ-4
 
10. पूर्वोक्त संदर्भ सं. 3, पृष्ठ-5
 
11. पूर्वोक्त संदर्भ सं. 3, पृष्ठ-6
 
12. पूर्वोक्त संदर्भ सं. 3, पृष्ठ-6
 
13. पूर्वोक्त संदर्भ सं. 7, पृष्ठ-10
 
14. पूर्वोक्त संदर्भ सं. 5, पृष्ठ-7
 
15. पूर्वोक्त संदर्भ सं. 7, पृष्ठ-12
 
16. पूर्वोक्त संदर्भ सं. 2, पृष्ठ-10
 
17. पूर्वोक्त संदर्भ सं. 6, पृष्ठ-31
 
18. पूर्वोक्त संदर्भ सं. 3, पृष्ठ-9
 
19. पूर्वोक्त संदर्भ सं. 3, पृष्ठ-10
 
 
 
 
 
डॉ.नीरज भारद्वाज
सैन्य विज्ञान विभाग
 
साइंस कॉलेज ग्वालियर [[सदस्य:Dr.neeraj bhardwaj|Dr.neeraj bhardwaj]] ([[सदस्य वार्ता:Dr.neeraj bhardwaj|वार्ता]]) 17:48, 2 जुलाई 2021 (UTC)
 
== तारादेवी : एक अद्भुत शक्ति ==
 
तारा (देवी)
हिंदू देवी,दुर्गा या पार्वती का एक रूप
 
हिन्दू धर्म में तारा दस महाविद्याओं में से द्वितीय महाविद्या हैं। 'तारा' का अर्थ है, 'तारने वाली'। ये शक्ति की स्वरूप हैं।
 
सामान्य तथ्य:
Nepal, 18th centuryDrawings; watercolorsOpaque watercolor on paperGift of Dr. and Mrs. Robert S. Coles (M.81.206.8)South and Southeast Asian Art
 
मप्र के प्रसिद्ध देवी मंदिर, जहां पहाड़ों पर विराजमान है मां शक्ति----
 
11जुलाई 2021 से गुप्त नवरात्रि पर्व की शुरूआत के साथ ही माता के मंदिरों में लाखों की संख्या में श्रृद्धालुओं का पहुंचना शुरू हो जायेगा। हर कोई अपनी आराध्य के दर्शन कर उनके आर्शीवाद का लाभ लेने के लिए व्याकुल है। देशभर में माता के कई ऐसे प्रसिद्ध मंदिर है जहां भक्त अपनी मनोकामना लेकर जाते है और झोली भर के लौटते है। मप्र में भी मां शक्ति विभिन्न रूपों में विराजमान है।
 
माता की आराधना के पर्व नवरात्र पर हम आपकों बता रहे है मप्र में स्थित माता के ऐसे मंदिरों के बारे में जो दूर पहाडिय़ों पर स्थित है और उनके दर्शन मात्र से हर व्यक्ति के दुखों का निवारण हो जाता है। देवासी की टेकरी स्थित मां भवानी का मंदिर मध्यप्रदेश के देवास जिले का नाम आते ही मां चामुंडा और तुलजा भवानी टेकरी का स्मरण हो आता है।
 
कहते हैं देवास का नाम ही दो देवियों का वास से प्रचलन में आया है। ऊंचे भवन पर विराजित करोड़ों लोगों की आस्था का यह सदन बरसों पहले ऋषि-मुनियों की तपोस्थली भी रहा है। देवास की टेकरी पर मां भवानी का यह मंदिर काफी प्रसिद्ध है। लोक मान्यता है कि यहां देवी मां के दो स्वरूप अपनी जाग्रत अवस्था में है।
 
इन दोनों स्वरूपों को छोटी मां और बड़ी मां के नाम से जाना जाता है। बड़ी मां को तुलजा भवानी और छोटी मां को चामुण्डा देवी का स्वरूप माना गया है। टेकरी में दर्शन करने वाले श्रद्धालु बड़ी और छोटी माँ के साथ-साथ भेरूबाबा के दर्शन अनिवार्य मानते हैं। नवरात्र के दिन यहाँ दिन-रात लोगों का ताँता लगा रहता है।
 
 
इन दिनों यहाँ माता की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। मैहर की मां शारदा मध्यप्रदेश में चित्रकूट के समीप सतना जिले की मैहर शहर में 600 फुट की ऊंचाई पर त्रिकुटा पहाड़ी पर मां दुर्गा के शारदीय रूप श्रद्धेय देवी माँ शारदा का मंदिर है, जो मैहर देवी मंदिर के नाम से प्रसिद्ध हैं। यह हिन्दुओं का महत्वपूर्ण धार्मिक एवं आस्थावान स्थान है। यहां श्रद्धालुजन माता का दर्शन कर उसी तरह पहुंचते हैं जैसे जम्मू में मां वैष्णो देवी का दर्शन करने जाते हैं।
मां मैहर देवी के मंदिर तक पहुंचने के लिए लगभग हजार सीढिय़ां तय करनी पड़ती है। महा वीर आला-उदल को वरदान देने वाली मां शारदा देवी को पूरे देश में शारदा मा के नाम से जाना जाता है। इस स्थान पर माता सती का हार गिर गया था। जिसकी वजह से यहां का नाम मैहर पड़ गया।
मैहर से कुछ ही दूर पर आल्हा ऊदल का अखाड़ा है। मान्यता है कि वे अब भी यहां दर्शनों के लिए आते है, जिसकी वजह से मंदिर में रात को कोई नहीं ठहरता है।
दतिया की पीताम्बरा देवी शक्तिपीठ पीताम्बरा पीठ दतिया ज़िला, मध्य प्रदेश में स्थित है। यह देश के लोकप्रिय शक्तिपीठों में से एक है।
 
कहा जाता है कि कभी इस स्थान पर श्मशान हुआ करता था, लेकिन आज एक विश्वप्रसिद्ध मन्दिर है। स्थानील लोगों की मान्यता है कि मुकदमे आदि के सिलसिले में माँ पीताम्बरा का अनुष्ठान सफलता दिलाने वाला होता है। पीताम्बरा पीठ के प्रांगण में ही माँ धूमावती देवी का मन्दिर है, जो भारत में भगवती धूमावती का एक मात्र मन्दिर है। यहाँ माँ पीताम्बरा से जुड़ी एक और बात बहुत ही प्रसिद्ध है।
ऐसा माना जाता है कि पीताम्बरा देवी एक दिन में तीन बार अपना रुप बदलती हैं। यही एक और मुख्य कारण है जिससे पीताम्बरा देवी की महिमा और भी अधिक बढ़ जाती है।
दतिया की तारादेवी मध्य प्रदेश के दतिया जिले में तारादेवी का मंदिर भी पहाड़ पर बना है। ये शहर से करीब 4 किलोमीटर दूर है।यहां विभिन्न मान्यताओं के चलते रात को कोई भी भक्त नहीं ठहरता। इसकी स्थापना श्रीस्वामी जी महाराज द्वारा की गई हैं । ये शक्ति का रूप है और यह स्थान सिद्ध माना जाता है।
माँ तारा तारा पीठ दतिया स्वामी जी महाराज के द्वारा तारापीठ की स्थापना की गई थी माँ तारा देवी यहां पर शवयम साक्षात रहती है ऐसा स्वामी जी महाराज ने कहा था उनको आभास हुआ और तारा माई ने दर्शन दिए और स्वामी जी से कहा कि मुझे स्थान दो मैं यहां पर विराजमान होना चाहती हूं तो स्वामी जी महाराज ने कठोर तप किया और माई तारा की प्राण प्रतिष्ठा की योग ब्राह्मणों के द्वारा तारापीठ का माई का विग्रह प्रतिष्ठित किया गया तंत्र साधना का आज पूरे भारतवर्ष में दतिया तारापीठ जाना जाता है ।जो कि पंचम कवि कटोरिया पहाड़ी पर स्थित है दतिया मध्य प्रदेश में यहां से स्वामी जी महाराज बन खंडेश्वर महादेव जो कि शमशान में बसा था दतिया वहां पर प्रभु पूज्य पाद श्री स्वामी जी महाराज माता पीतांबरा की घोर तपस्या की और मां पीतांबरा शक्ति पीठ का विधिवत 100 ब्राह्मणों के द्वारा माई की प्राण प्रतिष्ठा हुई स्वामी जी महाराज ने ऐसे ब्राह्मण चुने थे जोकि अपने कर्मकांड को और पूजा-पाठ को बेचते ना हो हूं विक्रय ना करते हो स्वामी महाराज ने कहा की आज मंगलवार है माई का दिन है जो मंगलवार के दिन माता पितांबरा से अपने दिल की बात मुकदमा में जीत की बात कहता है राज्य में जीत की बात कहता है उसे जीत की प्राप्ति होती है ।कर्ज से मुक्ति प्रदान होती है आज के दिन मंगलवार के दिन धन से विहीन व्यक्ति धनवान बन जाता है ।
स्वयं माई स्वामी जी महाराज का जाप करती थी माता पीतांबरा करती थी माता पीतांबरा स्वामी जी महाराज से बात करती थी।
स्वामी जी महाराज में माता पीतांबरा के दर्शन होते थे माता पीतांबरा में स्वामी जी महाराज के दर्शन होते थे यह सत्य है माता पीतांबरा उस दिन रोई थी जिस दिन स्वामी जी महाराज ने अपने प्राणों को छोड़ा था
माता पितांबरा स्वामी जी महाराज शिव थे
शिव और शक्ति ने मिलकर माता पीतांबरा शक्ति पीठ जो आज भारतवर्ष में दतिया नगरी का सौभाग्य है जाना जाता है आज भक्तों के दिलों में दतिया बस चुकी है माई बस चुकी हैं आज मां पीतांबरा के भारतवर्ष में बहुत कम मंदिर हैं ना के बराबर समझो माता पीतांबरा की साधना गुप्त साधना है जो कि ब्रह्मास्त्र विद्या के नाम से जानी जाती है ब्रह्मास्त्र विद्या के साधकों और ब्राह्मणों को स्वामी जी महाराज ने एक बात लिखी और कहीं की माता की साधना को विक्रय मत करना
अगर विक्रय करने की कोशिश की तो उसके परिणाम भोगना होगा।
क्योंकि यह कोई साधना बिक्री की चीज नहीं है ब्रह्मास्त्र विद्या है माता पीतांबरा के जितने भी संसार में मंदिर हैं शक्तिपीठ हैं उन पर 10 घंटे प्रतिदिन पूजा पाठ होता रहेगा वहां पर जनकल्याण और राष्ट्र कल्याण सेवा पूजा होती रहेगी लोगों का भला करने में राष्ट्र का कल्याण करने में साधक निशुल्क सेवा करेंगे तो माता पीतांबरा 1000 साल तक वहां पर रहेंगी यही सत्य है ऐसा स्वामी जी महाराज ने कहा था ।
स्वामी जी महाराज की प्रेरणा से मां बगलामुखी शक्तिपीठ रेलवे स्टेशन पिंगोरा भरतपुर राजस्थान मैं भक्तों की साधकों की भूमि बन चुका है यहां पर होती है साधना तंत्र मंत्र यंत्र देख कर गया है रोज सुचारू रूप से होती हैं माई की कृपा से दूर दूर से आते हैं साधक स्वामी जी महाराज की कृपा और उनके कथासार के अनुसार होती है पूजा जनकल्याण में राष्ट्र कल्याण निशुल्क पूजा होती है कराई जाती है ।हवन पूजन तर्पण अर्चन की क्रियाएं तंत्र साधना यंत्र मंत्र जब ताप क्रियाएं निरंतर योग्य साधकों के द्वारा योगी लगातार 12 साल से निरंतर साधना करने में लीन है माई के चरणों में मां पीतांबरा के चरणों में मां त्रिपुर सुंदरी के चरणों में करते हैं साधना भक्तों की सेवा में हमेशा रहते हैं तैयार जनकल्याण में किसी पर भी कोई भी आपदा आती है तो उसकी सेवा हवन के द्वारा करते है अनुष्ठान द्वारा करते हैं कुछ दिनों के बाद स्वामी जी महाराज की मूर्ति स्थापना भी होगी इस सपने को लेकर के यहां के साधन निरंतर साधना में लगे हुए हैं माता में लीन हैं माता पर करते करते हैं प्यार जोकि अपने भक्तों के साथ साधना में रहते हैं दिन 2 महाविद्या यहां पर पूजा पद्धति से उनकी होती है पूजा शनिवार को होते हैं दर्शन करती हैं मनोकामना पूरी ब्रह्मास्त्र विद्या और श्री विद्या का हो चुका है आगाज सन 201४ में हुई थी माता पितांबरा की स्थापना सन 201७ में में माता त्रिपुरा सुंदरी की हुई है स्थापना प्राण प्रतिष्ठा उससे पहले भी यहां पर साधक करती आ रही थी शाहदरा सन 200५ से आज तक हो रही है साधना कठोर जब तब से खड़ा किया है माता पीतांबरा का आश्रम 1 दिन पूरे भारतवर्ष में जाना जाएगा यह बता पीतांबरा शक्ति पीठ स्वामी जी महाराज की कृपा की होगी बरसा माता पीतांबरा अपनी कृपा बरसाती है यहां लोगों की होती है मनोकामना पूरी शनिवार को लोगों को लगता है ता ता मंगलवार की रात्रि को होती है तंत्र साधना शुक्रवार के दिन महिलाएं कन्याएं एम आई का व्रत शनिवार के दिन लोग करते हैं हल्दी के ढेर पर दीपदान शनिवार के दिन पीपल पर रहती है । धूमावती माँ का धागा बांधा जाता है जिससे भक्तों की मनोकामना पूर्ण होती है। यहाँ पर गाय के गोबर का साथिया बनाया जाता है व लोगों की जल्दी मनोकामना पूरी माता पितांबरा करती हैं कलयुग में भक्तों की रक्षा भरतपुर राजस्थान में माता पीतांबरा का मंदिरम अपने आप में पिगोरा रेलवे स्टेशन कै सामनै है सकति पीठ माता पितांबरा साक्षात निवास है।
जबलपुर में मदन महल पहाड़ जबलपुर शहर के मदन महल पहाड़ों पर मां शारदा विराजमान है।
कहा जाता है कि यहां के गोंडकालीन रानी दुर्गावती भी पूजन के लिए आती थी। यहां झण्डा प्रथा इन्होंने ही शुरू की थी। बताया जाता है कि कभी यहां चीता भी माता के दर्शनों के लिए आया करता था। सलकनपुर की मां बिजासनदेवी सीहोर जिले में सलकनपुर नामक गांव है।
 
यहां स्थित 800 फिट ऊंची पहाड़ी पर विराजमान है बिजासन देवी। यह देवी मां दुर्गा का अवतार है। सलकनपुर का मां विजयासन धाम प्रसिद्ध शक्तिपीठों में शामिल है। कहा जाता है कि राक्षस रक्तबीज के वध के बाद माता जिस स्थान पर बैठी थीं, उसी स्थान को विजयासन के रूप में जाना जाता है।
 
इसी पहाड़ी पर सैकड़ों जगहों पर रक्तबीज से युद्ध के अवशेष नजर आते हैं। नवरात्र में इस स्थान पर लाखों श्रद्धालु मन्नत पूरी होने पर चढ़ावा-चढ़ाने, जमाल चोटी उतारने और तुलादान कराने पहुंचते हैं। देवी मां का यह मंदिर राजधानी भोपाल से 75 किमी दूर है। वहीं यह पहाड़ी मां नर्मदा से 15 किमी देर स्थित है।
 
इस मंदिर में पहुंचने के लिए भक्तों को 1400 सीढिय़ों का रास्ता पार करना पड़ता है। जबकि इस पहाड़ी पर जानके के लिए कुछ वर्षों से सडक़ मार्ग भी बना दिया गया है। देवी की प्रतिमा स्वयं भू है। यह प्रतिमा माता पार्वती की है।
डॉ नीरज भारद्वाज
9340086890
Daily हलचल
http://dailyhulchul.com/ [[सदस्य:Dr.neeraj bhardwaj|Dr.neeraj bhardwaj]] ([[सदस्य वार्ता:Dr.neeraj bhardwaj|वार्ता]]) 15:02, 3 जुलाई 2021 (UTC)