"ऋषभदेव": अवतरणों में अंतर

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[[साँचा:हिन्दू दर्शन|वैदिक दर्शन ]] में [[ऋग्वेद]], [[अथर्ववेद संहिता|अथर्ववेद]] ,अठारह [[पुराण|पुराणों]] व [[मनुस्मृति]] जैसे अधिकाँश ग्रंन्थो मे ऋषभदेव का वर्णन आता है |<ref>{{Cite book|title=An Antiquty of Jainism|last=Bothra|first=Lata|publisher=Shri Jain Swetamber Khartargachha Sangha, Kolkata
Chaturmass Prabandh Samiti|year=२००६|isbn=|location=Kolkata|pages=१३६}}</ref> [[साँचा:हिन्दू दर्शन|वैदिक दर्शन]] में ऋषभदेव को विष्णु के 24 अवतारों में से एक के रूप में संस्तवन किया गया है। वहीं [[शिव पुराण]] मे इन्हे [[शिव|शिवजी]] केछठा अवतार के रुप मे स्थान दिया गया हैहैंं |
 
 
[[भागवत पुराण|भागवत]] में ''अर्हन्'' राजा के रूप में इनका विस्तृत वर्णन है। [[भागवत पुराण|श्रीमद्भागवत्]] के पाँचवें स्कन्ध के अनुसार मनु के पुत्र प्रियव्रत के पुत्र आग्नीध्र हुये जिनके पुत्र राजा नाभि (जैन धर्म में नाभिराय नाम से उल्लिखित) थे। राजा नाभि के पुत्र ऋषभदेव हुये जो कि महान प्रतापी सम्राट हुये। भागवत् पुराण अनुसार भगवान ऋषभदेव का विवाह [[इन्द्र]] की पुत्री [[जयन्ती]] से हुआ। इससे इनके सौ पुत्र उत्पन्न हुये। उनमें [[भरत चक्रवर्ती]] सबसे बड़े एवं गुणवान थे ये भरत ही भारतवर्ष के प्रथम चक्रवर्ती सम्राट हुए;जिनके नाम से भारत का नाम भारत पड़ा |<ref>श्रीमद्धभागवत पंचम स्कन्ध, चतुर्थ अध्याय, श्लोक ९</ref> उनसे छोटे कुशावर्त, इलावर्त, ब्रह्मावर्त, मलय, केतु, भद्रसेन, इन्द्रस्पृक, विदर्भ और कीकट ये नौ राजकुमार शेष नब्बे भाइयों से बड़े एवं श्रेष्ठ थे। उनसे छोटे कवि, हरि, अन्तरिक्ष, प्रबुद्ध, पिप्पलायन, आविर्होत्र, द्रुमिल, चमस और करभाजन थे।