अमृतम पत्रिका, ग्वालियर से साभार....
पैसा है तो सब पूछते हैं कैसा है।
पैसा छठी इन्द्रिय है, इसके बिना पांचन इंद्रियां शिथिल हो जाता है।
टकाटक रहने के लिए टका जरूरी है।
टका से सब अच्छा बुरा ढका रहता है।
जिसके पास टका है, उससे सब लटका है।
चमचों की भीड़ इन्हीं के यहां देख सकते हैं।
**टकाटक रहने हेतु समझें…..**
टका धर्मष्टका कर्म ,टका हि परमं पदम।
यस्य गृहे टका नास्ति ,हा! टकां टकटकायते ॥१॥
आना अंशकलाः प्रोक्ता रुप्योऽसौ भगवान स्वयम्।
अतस्तं सर्व इच्छंति रुप्यम हि गुणवत्तमम॥२।।
अर्थात टका धर्म है, टका ही कर्म है और टका ही परमपद है।
जिसके घर में टका नहीं है, वह हाय टका ! हाय टका ! सोचता हुआ टके की ओर टकटकी लगाये रहता है।
सोलह आने के टके का प्रत्येक आना मानो एक कला है और इस प्रकार सोलह कला पूर्ण यह रूपया साक्षात् सोलह कला पूर्ण भगवान हैं. इसीलिए हे गुणवान रूपराम ! सभी जन तुम्हारी ही इच्छा करते हैं।
बिन धन- सगा भी साथ छोड़ देता है।
बस पैसा नीच लोगों के पास नहीं होना चाहिए-
कहा गया है कि-
औरत पछतानी पति मूर्ख पाए के।
लक्ष्मी दुखियानी घर नीचन के जाए के।।
पैसों के अहंकार में कई लोग सीधे सादे लोगों का दिल दुखा देते हैं, उन्हें ये याद रखना चाहिए कि-
मत करना जलील किसी
फकीर को अपनी चौखट पर,
कटोरा बदलने में खुदा
बड़ा माहिर होता है।।
पंकज उदास की ये गजल सुनकर तो ऐसा लगता है कि आदमी कितना ही सिर पटक ले, लिंच धनवान हमेशा स्त्री ही रहेगी…
पंकज उदास की इस ग़ज़ल ने औरतों के अहंकार को बढ़ा दिया
एक तू ही धनवान है गोरी.. .
{{स्रोतहीन|date=मार्च 2021}}
'''पैसा''' [[भारत]] की राष्ट्रीय मुद्रा [[रुपया]] का सौवा हिस्सा है। यह नाम [[बांग्लादेश]], [[पाकिस्तान]], [[नेपाल]] में भी है। यह बांग्लादेश के अलावा सभी देशों में रुपये के {{frac|1|100}} भाग होता है। जबकि यह बांग्लादेश में टका इसके {{frac|1|100}} भाग का होता है।
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