"लाडनूं": अवतरणों में अंतर
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लाड़नू,
राजस्थान के निर्माण से पुर्व लाङनू, जोधपुर रियासत कि सीमा पर बसा एक महत्वपुर्ण कस्बा था। शिलालेखों तथा इतिहासविदों के अनुसार लाङनू प्राचीन अहिछत्रपुर का हिस्सा था, जिस पर करीब 2000 वर्षो तक नागवंशीय राजाओं का अधिकार रहा। बाद मे परमार राजपुतो ने उन से अहिछत्रपुर को छिन लिया, उनके बाद मुगल ने आधिपत्य जमाया। अन्तत जोधपुर के राठौड राजाओ का अधिकार रहा।
यह कस्बा एक प्राचिन व्यापारिक मार्ग पर बसा हुआ है। इस मार्ग से होकर कई लुटेरे गुजरे तो कभी हारी हुई सैनाये, पुरातात्वीक साक्ष्य इसके 2000 वर्ष पहले से आबाद होने के सबुत देते है। वही 1857 के विद्रोह के कुचले जाने बाद हारे हुये सैनिक भागते हुये इधर से गुजरे तो वे इतिहास में कालो की फौज के नाम से दर्ज हुये।
कही कही लाडनू को बुडी चन्देरी कहा गया है, पर इसका प्रमाण कही नही मिलता । कई बार हम अपने आप को प्राचीनता से जोडने के लिऐ इतिहास के साथ जोड तोड करने की गलती करते है। इसी क्रम मे चन्दनवरदाई लिखित "प्रथ्वीराज-रासो" में वर्णीत चन्देरी के साथ, लाडनू का सम्बध जोड कर प्राचीनतता पाने की कोशिश की गयी है। लाडनू नामकरण पर और भी कई कथाये ओर दन्तकथाये प्रचलीत है पर कोई भी प्रमाण या सम्पुर्ण तथ्य उपलब्ध नहीं करती।
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